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चूड़ी से लेकर सुराही तक से नक्सली बना रहे बम, देसी तकनीक सुरक्षाबलों के लिए चुनौती

झारखंड में नक्सलवाद एक बड़ी समस्या है. नक्सलियों के खात्मे के लिए राज्य के कई जिलों में लगातार नक्सल अभियान (Naxal Operation) चलाए जा रहे हैं और सुरक्षाबलों को सफलता भी मिल रही है. लेकिन नक्सलियों के देसी तकनीक से बनाए गए बम सुरक्षाबलों के लिए चुनौती साबित हो रहे हैं.

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Published : Aug 17, 2021, 6:04 PM IST

Updated : Aug 18, 2021, 7:23 PM IST

रांची: झारखंड में नक्सल अभियान (Naxal Operation) में लगे सुरक्षाबलों के सामने सबसे बड़ी चुनौती नक्सलियों के द्वारा देसी तकनीक से इजाद किए गए एक दर्जन से ज्यादा बम हैं. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि वैसे घरेलू उपयोग के समान जिसे खराब मान कर हम फेंक देते हैं उसका इस्तेमाल भी नक्सली बम बनाने में करते हैं. देसी तकनीक के बल पर नक्सली कैसे-कैसे बमों का निर्माण कर रहे हैं यह ईटीवी भारत आपको बता रहा है.

इसे भी पढे़ं: जानिए नक्सलियों के नए हथियार, हाईटेक गैजेट नहीं ओल्ड टेक्निक से बना रहे सुरक्षा घेरा


सबसे बड़ा खतरा है लैंडमाइंस
झारखंड में केंद्रीय सुरक्षाबलों के जवान हों या फिर पुलिस के, उनके लिए सड़कों और पगडंडियों पर नक्सलियों के द्वारा लगाए गए लैंडमाइंस एक बड़ी चुनौती है. नक्सलियों के साथ आमने-सामने की लड़ाई हो या फिर जंगल के भीतर चलाए जाने वाले सर्च अभियान. नक्सलियों द्वारा बिछाए गए तरह-तरह के बम सुरक्षाबलों के लिए मौत का पैगाम लेकर आ रहा है.

नक्सलियों ने 50 से अधिक तरह के बमों का किया निर्माण

झारखंड के नक्सली संगठन देसी तकनीक के बल पर कुछ खास किस्म के बमों का निर्माण करने में सफल रहे हैं. जिसका इस्तेमाल वे सुरक्षाबलों को नुकसान पहुंचाने के लिए कर रहे हैं. नक्सलियों ने 50 से अधिक तरह के बमों का निर्माण कर लिया है. इसमें डायरेक्शनल बम, तीर बम, टाइम बम, घड़ी बम, सुराही बम, सुतली बम, टिफिन बम, सिरिंज बम, रेडियो बम, पॉउच बम, पिठ्ठू बम, चूड़ी बम, ग्रेनाइट बम, बंदूक बम, स्प्रिंग बम, कपाट बम, पर्स बम मुख्य है.

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नई तकनीक से बम का इजात

इसे भी पढे़ं: सावधान! यहां हर कदम पर है बमों का जाल, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ के बाद अब झारखंड की बारी


सबसे खतरनाक है डायरेक्शनल बम

झारखंड जगुआर के असिस्टेंट कमांडेंट ओपी सिंह के अनुसार वर्तमान समय में डायरेक्शन बम का इस्तेमाल नक्सली बहुत ज्यादा कर रहे हैं. इससे पहले छत्तीसगढ़ में इस बम का प्रयोग नक्सली करते थे. छत्तीसगढ़ से ही इस बम की तकनीक झारखंड पहुंची है. डायरेक्शनल बम एक तरह का जुगाड़ लांचर है जिसे चलाने के लिए मानव बल की जरूरत नहीं होती. लैंडमाइंस की तरह ही दूर बैठे तार की मदद से नक्सली इसका संचालन कर सकते हैं. इसकी खासियत है कि इसे सिर्फ जमीन में ही नहीं लगाया जा सकता है, बल्कि पेड़ों और पहाड़ों पर भी लगाया जा सकता है.

डायरेक्शनल बम होता है हाई एक्सप्लोसिव

डायरेक्शन बम का लांचर की तरह ही एक पाइपनुमा संरचना होती है जिसमें एक तरफ का हिस्सा बंद रहता है. पाइप में हाई एक्सप्लोसिव भरा होता है. उसमें रॉड के गोलीनुमा छोटे-छोटे टुकड़े सैकड़ों की संख्या में रहता है. विस्फोटक के पास एक दो तार के बराबर छेद होता है जहां तार लगा होता है. इस देसी लांचर को दूर किसी पेड़, पहाड़ पर लगाकर अपराधी-नक्सली कहीं दूर चले जाते हैं. जैसे ही सुरक्षाबल उस पेड़ या पहाड़ के नजदीक पहुंचते हैं वैसे ही अपराधी-नक्सली तार को बैट्री की मदद से स्पार्क कर देते हैं और विस्फोटक में आग लगते ही ब्लास्ट होता है. उसमें पड़े सभी रॉड के टुकड़े खाली दिशा में तेजी से निकलते हैं और उनके रास्ते में जो मिलता है, उसके शरीर को छेद देता है.

इसे भी पढे़ं: कभी नक्सली संगठन में रहकर बड़े कांड को देता था अंजाम, अब ग्रामीणों के लिए बना मसीहा


मानव बम भी प्रयोग कर चुके हैं नक्सली

नक्सली एक बार मानव बम का भी प्रयोग कर चुके हैं. नक्सलियों का इरादा कितना खतरनाक है यह आपको जानकर हैरानी होगी. गढ़वा के बूढ़ा पहाड़ में पुलिस और नक्सलियों के बीच हुए एनकाउंटर में एक जवान शहीद हो गए थे. नक्सलियों ने क्रूरता दिखाते हुए जवान का पेट चीरकर उसमें बम लगा दिया था.


नक्सलियों ने किया तीर बम का इजात

नक्सलियों ने अब तीर बम का भी इजात कर लिया है. एक तीर में नक्सली सर्किट लगाकर उसके मुंह पर विस्फोटक बांध देते हैं. विस्फोटक जब जमीन से टकराता है तब उसमें विस्फोट हो जाता है. तीर बम का इस्तेमाल नक्सली सुरक्षाबलों के वाहनों पर करते हैं ताकि थोड़ी देर के लिए सुरक्षाबल इधर उधर हो जाए और उनपर नक्सलियों को हमला करने का मौका मिल जाए.

इसे भी पढे़ं: नक्सलियों के मंसूबे पर फिरा पानी, पुलिस ने दलमा की पहाड़ी पर लगाए 14 लैंडमाइंस को किया डिफ्यूज



आम लोगों के इस्तेमाल करने वाले सामानों का बम बनाने में करते हैं प्रयोग
आमतौर पर हम जिन चीजों को बेकार समझकर उसे कबाड़ी वालों को दे देते हैं या फिर उन्हें कचरे में फेंक देते हैं. उसका इस्तेमाल भी नक्सली बम को बनाने के लिए कर रहे हैं. नक्सली पुराने घड़े, दवाई की सिरिंज, लेडीज पर्स, सूटकेस, सर्फ का डब्बा, टिफिन बॉक्स के अलावा केन तक का इस्तेमाल कर बम बना रहे हैं.

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बम में इसका उपयोग



कहां से आता है विस्फोटक
नक्सलियों तक विस्फोटक पहुंचाने में पत्थर, कोयला, बॉक्साइट और आयरन ओर की खदानें मदद कर रही है. खनन में इस्तेमाल होने वाले विस्फोटक ही नक्सलियों तक पहुंचते रहे हैं. इसका खुलासा पूर्व में गिरफ्तार नक्सलियों ने भी किया है. नक्सलियों के निशानदेही पर भारी मात्रा में विस्फोटकों का जखीरा भी मिलता रहा है. पत्थर के धंधेबाज, कोयला माफिया नक्सलियों को विस्फोटक उपलब्ध कराने में मदद करते रहे हैं.

इसे भी पढे़ं: खूंटी: नक्सलियों के खात्मे के साथ-साथ उनकी संपत्तियों को खंगाल रही पुलिस, आत्मसमर्पण करने की भी अपील



जगुआर में विशेष ट्रेनिंग

नक्सलियों के द्वारा जुगाड़ तंत्र के जरिए खतरनाक बम बनाए जा रहे हैं. झारखंड पुलिस को भी यह जानकारी है कि नक्सलियों के द्वारा कई तरह के बमों का निर्माण किया गया है. यही वजह है कि झारखंड जगुआर मुख्यालय में नक्सल अभियान में भाग लेने वाले जवानों को हर तरह के बमों की जानकारी दी जा रही है, ताकि जवान सतर्क रहें और शिकार होने से बच सकें.



2 केजी से लेकर 100 केजी का बम
नक्सली संगठन पहले सड़क के बीचों-बीच लैंडमाइंस लगाया करते थे. सड़क पर लगे लैंडमाइंस इतने खतरनाक और शक्तिशाली होते थे कि उसके चपेट में आने से एंटी लैंडमाइंस वाहन भी क्षतिग्रस्त हो जाता था. नक्सलियों की इस योजना को नाकामयाब करने के लिए नक्सल ऑपरेशन के दौरान जवान पैदल ही दुर्गम इलाकों में जाने लगे, जिसके बाद नक्सलियों ने नए लैंडमाइंस इजाद किए, जो 2 से 10 किलो के हैं. अब वैसे इलाके जहां नक्सलियों ने छोटे प्रेशर बम लगाए है वहां पर जवानों का पैदल चलना भी मुश्किल है, क्योंकि जवान जैसे ही उन इलाकों से गुजरेंगे उसमें विस्फोट हो जाएगा और बड़ी संख्या में जवान हताहत होंगे.

इसे भी पढे़ं: नक्सलियों ने मंदिर पर भी लिख डाला फरमान, ग्रामीणों को मानसिक और सामाजिक तौर पर कर रहा है प्रभावित



पुलिस और ग्रामीण होते रहे हैं शिकार

पुलिस और केंद्रीय सुरक्षाबलों के जवान हों या फिर नक्सल प्रभावित इलाकों के रहने वाले ग्रामीण वो अक्सर सड़कों के अंदर बिछे बारूद का शिकार हो रहे हैं. झारखंड के चाईबासा, लोहरदगा, सरायकेला खरसावां, पलामू, गढ़वा और लातेहार के नक्सल प्रभावित इलाकों के साथ-साथ पूरे बूढ़ा पहाड़ एरिया में नक्सलियों ने बड़े पैमाने पर प्रेशर बम लगाकर रखा है. वहां सड़क मार्ग जानलेवा साबित होता है. इन सड़कों के कई हिस्सों में लैंडमाइंस बिछा है. चाहे जंगल के भीतर दाखिल होने वाले कच्चे-पक्के रास्ते हों, या फिर पक्की सड़कें. कोई भी राह आसान नहीं है.

सड़कों पर चलना खतरों से खाली नहीं

आम ग्रामीण हों या फिर पुलिस के जवान किसी का भी सड़कों पर चहल-कदमी जोखिम भरा होता है. इन सड़कों पर पैदल चलना तक दूभर हो गया है. बेफिक्री से जमीन पर रखा गया कोई भी कदम जानलेवा साबित हो सकता है. बुलेट प्रूफ वाहन हो या एंटी लैंडमाइन व्हिकल, या फिर आम मोटर गाड़ियां किसी की भी राह सड़कों पर आसान नहीं है. इन दिनों नक्सल प्रभावित इलाकों में सड़कों और जमीन के इर्द-गिर्द जमीन के नीचे लैंडमाइंस को खोज निकालने का काम जोर-शोर से चल रहा है. ऑपरेशन चला कर पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवान बारूदी सुरंगों और कई तरह के प्रेशर बम सहित आईईडी को नष्ट करने में जुटे हुए हैं. इस दौरान इस तरह के विस्फोट से आए दिन धरती थर्रा उठती है.

रांची: झारखंड में नक्सल अभियान (Naxal Operation) में लगे सुरक्षाबलों के सामने सबसे बड़ी चुनौती नक्सलियों के द्वारा देसी तकनीक से इजाद किए गए एक दर्जन से ज्यादा बम हैं. आपको यह जानकर हैरानी होगी कि वैसे घरेलू उपयोग के समान जिसे खराब मान कर हम फेंक देते हैं उसका इस्तेमाल भी नक्सली बम बनाने में करते हैं. देसी तकनीक के बल पर नक्सली कैसे-कैसे बमों का निर्माण कर रहे हैं यह ईटीवी भारत आपको बता रहा है.

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सबसे बड़ा खतरा है लैंडमाइंस
झारखंड में केंद्रीय सुरक्षाबलों के जवान हों या फिर पुलिस के, उनके लिए सड़कों और पगडंडियों पर नक्सलियों के द्वारा लगाए गए लैंडमाइंस एक बड़ी चुनौती है. नक्सलियों के साथ आमने-सामने की लड़ाई हो या फिर जंगल के भीतर चलाए जाने वाले सर्च अभियान. नक्सलियों द्वारा बिछाए गए तरह-तरह के बम सुरक्षाबलों के लिए मौत का पैगाम लेकर आ रहा है.

नक्सलियों ने 50 से अधिक तरह के बमों का किया निर्माण

झारखंड के नक्सली संगठन देसी तकनीक के बल पर कुछ खास किस्म के बमों का निर्माण करने में सफल रहे हैं. जिसका इस्तेमाल वे सुरक्षाबलों को नुकसान पहुंचाने के लिए कर रहे हैं. नक्सलियों ने 50 से अधिक तरह के बमों का निर्माण कर लिया है. इसमें डायरेक्शनल बम, तीर बम, टाइम बम, घड़ी बम, सुराही बम, सुतली बम, टिफिन बम, सिरिंज बम, रेडियो बम, पॉउच बम, पिठ्ठू बम, चूड़ी बम, ग्रेनाइट बम, बंदूक बम, स्प्रिंग बम, कपाट बम, पर्स बम मुख्य है.

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सबसे खतरनाक है डायरेक्शनल बम

झारखंड जगुआर के असिस्टेंट कमांडेंट ओपी सिंह के अनुसार वर्तमान समय में डायरेक्शन बम का इस्तेमाल नक्सली बहुत ज्यादा कर रहे हैं. इससे पहले छत्तीसगढ़ में इस बम का प्रयोग नक्सली करते थे. छत्तीसगढ़ से ही इस बम की तकनीक झारखंड पहुंची है. डायरेक्शनल बम एक तरह का जुगाड़ लांचर है जिसे चलाने के लिए मानव बल की जरूरत नहीं होती. लैंडमाइंस की तरह ही दूर बैठे तार की मदद से नक्सली इसका संचालन कर सकते हैं. इसकी खासियत है कि इसे सिर्फ जमीन में ही नहीं लगाया जा सकता है, बल्कि पेड़ों और पहाड़ों पर भी लगाया जा सकता है.

डायरेक्शनल बम होता है हाई एक्सप्लोसिव

डायरेक्शन बम का लांचर की तरह ही एक पाइपनुमा संरचना होती है जिसमें एक तरफ का हिस्सा बंद रहता है. पाइप में हाई एक्सप्लोसिव भरा होता है. उसमें रॉड के गोलीनुमा छोटे-छोटे टुकड़े सैकड़ों की संख्या में रहता है. विस्फोटक के पास एक दो तार के बराबर छेद होता है जहां तार लगा होता है. इस देसी लांचर को दूर किसी पेड़, पहाड़ पर लगाकर अपराधी-नक्सली कहीं दूर चले जाते हैं. जैसे ही सुरक्षाबल उस पेड़ या पहाड़ के नजदीक पहुंचते हैं वैसे ही अपराधी-नक्सली तार को बैट्री की मदद से स्पार्क कर देते हैं और विस्फोटक में आग लगते ही ब्लास्ट होता है. उसमें पड़े सभी रॉड के टुकड़े खाली दिशा में तेजी से निकलते हैं और उनके रास्ते में जो मिलता है, उसके शरीर को छेद देता है.

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मानव बम भी प्रयोग कर चुके हैं नक्सली

नक्सली एक बार मानव बम का भी प्रयोग कर चुके हैं. नक्सलियों का इरादा कितना खतरनाक है यह आपको जानकर हैरानी होगी. गढ़वा के बूढ़ा पहाड़ में पुलिस और नक्सलियों के बीच हुए एनकाउंटर में एक जवान शहीद हो गए थे. नक्सलियों ने क्रूरता दिखाते हुए जवान का पेट चीरकर उसमें बम लगा दिया था.


नक्सलियों ने किया तीर बम का इजात

नक्सलियों ने अब तीर बम का भी इजात कर लिया है. एक तीर में नक्सली सर्किट लगाकर उसके मुंह पर विस्फोटक बांध देते हैं. विस्फोटक जब जमीन से टकराता है तब उसमें विस्फोट हो जाता है. तीर बम का इस्तेमाल नक्सली सुरक्षाबलों के वाहनों पर करते हैं ताकि थोड़ी देर के लिए सुरक्षाबल इधर उधर हो जाए और उनपर नक्सलियों को हमला करने का मौका मिल जाए.

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आम लोगों के इस्तेमाल करने वाले सामानों का बम बनाने में करते हैं प्रयोग
आमतौर पर हम जिन चीजों को बेकार समझकर उसे कबाड़ी वालों को दे देते हैं या फिर उन्हें कचरे में फेंक देते हैं. उसका इस्तेमाल भी नक्सली बम को बनाने के लिए कर रहे हैं. नक्सली पुराने घड़े, दवाई की सिरिंज, लेडीज पर्स, सूटकेस, सर्फ का डब्बा, टिफिन बॉक्स के अलावा केन तक का इस्तेमाल कर बम बना रहे हैं.

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बम में इसका उपयोग



कहां से आता है विस्फोटक
नक्सलियों तक विस्फोटक पहुंचाने में पत्थर, कोयला, बॉक्साइट और आयरन ओर की खदानें मदद कर रही है. खनन में इस्तेमाल होने वाले विस्फोटक ही नक्सलियों तक पहुंचते रहे हैं. इसका खुलासा पूर्व में गिरफ्तार नक्सलियों ने भी किया है. नक्सलियों के निशानदेही पर भारी मात्रा में विस्फोटकों का जखीरा भी मिलता रहा है. पत्थर के धंधेबाज, कोयला माफिया नक्सलियों को विस्फोटक उपलब्ध कराने में मदद करते रहे हैं.

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जगुआर में विशेष ट्रेनिंग

नक्सलियों के द्वारा जुगाड़ तंत्र के जरिए खतरनाक बम बनाए जा रहे हैं. झारखंड पुलिस को भी यह जानकारी है कि नक्सलियों के द्वारा कई तरह के बमों का निर्माण किया गया है. यही वजह है कि झारखंड जगुआर मुख्यालय में नक्सल अभियान में भाग लेने वाले जवानों को हर तरह के बमों की जानकारी दी जा रही है, ताकि जवान सतर्क रहें और शिकार होने से बच सकें.



2 केजी से लेकर 100 केजी का बम
नक्सली संगठन पहले सड़क के बीचों-बीच लैंडमाइंस लगाया करते थे. सड़क पर लगे लैंडमाइंस इतने खतरनाक और शक्तिशाली होते थे कि उसके चपेट में आने से एंटी लैंडमाइंस वाहन भी क्षतिग्रस्त हो जाता था. नक्सलियों की इस योजना को नाकामयाब करने के लिए नक्सल ऑपरेशन के दौरान जवान पैदल ही दुर्गम इलाकों में जाने लगे, जिसके बाद नक्सलियों ने नए लैंडमाइंस इजाद किए, जो 2 से 10 किलो के हैं. अब वैसे इलाके जहां नक्सलियों ने छोटे प्रेशर बम लगाए है वहां पर जवानों का पैदल चलना भी मुश्किल है, क्योंकि जवान जैसे ही उन इलाकों से गुजरेंगे उसमें विस्फोट हो जाएगा और बड़ी संख्या में जवान हताहत होंगे.

इसे भी पढे़ं: नक्सलियों ने मंदिर पर भी लिख डाला फरमान, ग्रामीणों को मानसिक और सामाजिक तौर पर कर रहा है प्रभावित



पुलिस और ग्रामीण होते रहे हैं शिकार

पुलिस और केंद्रीय सुरक्षाबलों के जवान हों या फिर नक्सल प्रभावित इलाकों के रहने वाले ग्रामीण वो अक्सर सड़कों के अंदर बिछे बारूद का शिकार हो रहे हैं. झारखंड के चाईबासा, लोहरदगा, सरायकेला खरसावां, पलामू, गढ़वा और लातेहार के नक्सल प्रभावित इलाकों के साथ-साथ पूरे बूढ़ा पहाड़ एरिया में नक्सलियों ने बड़े पैमाने पर प्रेशर बम लगाकर रखा है. वहां सड़क मार्ग जानलेवा साबित होता है. इन सड़कों के कई हिस्सों में लैंडमाइंस बिछा है. चाहे जंगल के भीतर दाखिल होने वाले कच्चे-पक्के रास्ते हों, या फिर पक्की सड़कें. कोई भी राह आसान नहीं है.

सड़कों पर चलना खतरों से खाली नहीं

आम ग्रामीण हों या फिर पुलिस के जवान किसी का भी सड़कों पर चहल-कदमी जोखिम भरा होता है. इन सड़कों पर पैदल चलना तक दूभर हो गया है. बेफिक्री से जमीन पर रखा गया कोई भी कदम जानलेवा साबित हो सकता है. बुलेट प्रूफ वाहन हो या एंटी लैंडमाइन व्हिकल, या फिर आम मोटर गाड़ियां किसी की भी राह सड़कों पर आसान नहीं है. इन दिनों नक्सल प्रभावित इलाकों में सड़कों और जमीन के इर्द-गिर्द जमीन के नीचे लैंडमाइंस को खोज निकालने का काम जोर-शोर से चल रहा है. ऑपरेशन चला कर पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के जवान बारूदी सुरंगों और कई तरह के प्रेशर बम सहित आईईडी को नष्ट करने में जुटे हुए हैं. इस दौरान इस तरह के विस्फोट से आए दिन धरती थर्रा उठती है.

Last Updated : Aug 18, 2021, 7:23 PM IST
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