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रास सांसद महेश पोद्दार का दावा, उद्योग-व्यापार दे सकेंगे इस संकट का तात्कालिक समाधान

राज्यसभा सांसद महेश पोद्दार ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से कोरोना संकट की वजह से बदली सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों और सामने आई चुनौतियों का सामना करने के लिए लघु और मध्यम उद्योगों को संरक्षण देने का आग्रह किया है. सांसद महेश पोद्दार ने कहा कि आग लगने पर कुएं की खुदाई शुरू करने के बजाए दमकल बुलाना ज्यादा बेहतर होता है.

MP Mahesh Poddar, CM Hemant Soren, impact of corona in Jharkhand, lockdown in Jharkhand, industry-trade in Jharkhand, सांसद महेश पोद्दार, सीएम हेमंत सोरेन, झारखंड में कोरोना का असर, झारखंड में लॉकडाउन, झारखंड में उद्योग-व्यापार
रास सांसद महेश पोद्दार
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Published : May 6, 2020, 8:44 PM IST

रांची: प्रदेश से राज्यसभा में बीजेपी के सांसद महेश पोद्दार ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से कोरोना संकट की वजह से बदली सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों और सामने आई चुनौतियों का सामना करने के लिए लघु और मध्यम उद्योगों को संरक्षण देने का आग्रह किया है. पोद्दार ने कहा कि राज्य में बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन और अन्य प्रदेशों से लौटे प्रवासी श्रमिकों को नियोजित करने के उद्देश्य से शुरू की गई नई योजनाएं, संभव है कि दीर्घकाल में बेहतर नतीजे दे. लेकिन तात्कालिक चुनौती से निपटने में राज्य के लघु उद्योग ही सहायक हो सकते हैं. राज्य सरकार को उद्योग-व्यापार जगत के प्रतिनिधियों से इन विषयों पर विमर्श कर ठोस पहल करनी चाहिए.

'आग लगने पर कुएं की खुदाई शुरू करने के बजाए दमकल बुलाना ज्यादा बेहतर होता है'
सांसद महेश पोद्दार ने कहा कि आग लगने पर कुएं की खुदाई शुरू करने के बजाए दमकल बुलाना ज्यादा बेहतर होता है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार 9 लाख प्रवासी श्रमिकों के रोजगार की चिंता में 5 वर्षों में 20 हजार करोड़ रुपए की लागत से मनरेगा के 25 करोड़ मानव दिवस सृजित करने की तैयारी में है. इस योजना से मजदूरों में प्रतिवर्ष 4,000 करोड़ यानि प्रतिमाह 333 करोड़ रुपए बटेंगे.

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'औसतन 5,000 प्रतिमाह प्रवासी मजदूर अपने घरों को यानि झारखंड को भेजते हैं'

राज्य में मनरेगा पर पहले से आश्रित राज्य के श्रमिकों को छोड़ केवल प्रवासियों को ही देखें तो प्रति श्रमिक, प्रति माह करीब 3,700 रुपए का हिसाब बैठता है, जिसे कतई काफी नहीं माना जा सकता. सच्चाई यह है कि इससे करीब डेढ़ गुना यानि औसतन 5,000 रुपए प्रतिमाह प्रवासी मजदूरों की ओर से अपने घरों को यानि झारखंड को भेजी जाती है. इस तरह सामान्य दिनों में प्रवासी मजदूरों की वजह से करीब 450 करोड़ रुपए झारखंड में आते हैं.

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'उद्योग-व्यापार अगर मजबूत हुए तो त्वरित नतीजे देंगे'

सांसद ने कहा कि यह भी याद रखना होगा कि लौट रहे प्रवासियों का स्किल उद्योग-व्यापार के लिए ही उपयुक्त है, मनरेगा या अन्य नई योजनाओं के लिए नहीं. दूसरे प्रदेशों में भी ये औद्योगिक/व्यापारिक इकाईयों में ही नियोजित थे. बेहतर होगा कि दीर्घकालिक लक्ष्यों को ध्यान में रखकर योजनाएं शुरू करने के साथ-साथ राज्य के उद्योग-व्यापार को प्रोत्साहन दिया जाना भी जरूरी है. उद्योग-व्यापार अगर मजबूत हुए तो त्वरित नतीजे देंगे. संकट में पड़े उद्योगों को सरकार मदद करे तो सभी प्रवासियों को संभालना इनके लिए बड़ी बात नहीं.

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'रास्ता तलाशने का प्रयास करना चाहिए'
उन्होंने कहा कि इस मसले पर केंद्र-राज्य का विवाद उचित नहीं और न अगली-पिछली सरकारों को कोसने से बात नहीं बनेगी. राज्य सरकार अगर स्थानीय उद्योग-व्यापार को ताकत देगी तो रोजगार, राजस्व और अर्थव्यवस्था की मजबूती की दृष्टि से यह राज्य के लिए ही फायदेमंद होगा. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री को राज्य के उद्योग-व्यापार जगत के प्रतिनिधियों के साथ विमर्श कर रास्ता तलाशने का प्रयास करना चाहिए.

रांची: प्रदेश से राज्यसभा में बीजेपी के सांसद महेश पोद्दार ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से कोरोना संकट की वजह से बदली सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों और सामने आई चुनौतियों का सामना करने के लिए लघु और मध्यम उद्योगों को संरक्षण देने का आग्रह किया है. पोद्दार ने कहा कि राज्य में बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन और अन्य प्रदेशों से लौटे प्रवासी श्रमिकों को नियोजित करने के उद्देश्य से शुरू की गई नई योजनाएं, संभव है कि दीर्घकाल में बेहतर नतीजे दे. लेकिन तात्कालिक चुनौती से निपटने में राज्य के लघु उद्योग ही सहायक हो सकते हैं. राज्य सरकार को उद्योग-व्यापार जगत के प्रतिनिधियों से इन विषयों पर विमर्श कर ठोस पहल करनी चाहिए.

'आग लगने पर कुएं की खुदाई शुरू करने के बजाए दमकल बुलाना ज्यादा बेहतर होता है'
सांसद महेश पोद्दार ने कहा कि आग लगने पर कुएं की खुदाई शुरू करने के बजाए दमकल बुलाना ज्यादा बेहतर होता है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार 9 लाख प्रवासी श्रमिकों के रोजगार की चिंता में 5 वर्षों में 20 हजार करोड़ रुपए की लागत से मनरेगा के 25 करोड़ मानव दिवस सृजित करने की तैयारी में है. इस योजना से मजदूरों में प्रतिवर्ष 4,000 करोड़ यानि प्रतिमाह 333 करोड़ रुपए बटेंगे.

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'औसतन 5,000 प्रतिमाह प्रवासी मजदूर अपने घरों को यानि झारखंड को भेजते हैं'

राज्य में मनरेगा पर पहले से आश्रित राज्य के श्रमिकों को छोड़ केवल प्रवासियों को ही देखें तो प्रति श्रमिक, प्रति माह करीब 3,700 रुपए का हिसाब बैठता है, जिसे कतई काफी नहीं माना जा सकता. सच्चाई यह है कि इससे करीब डेढ़ गुना यानि औसतन 5,000 रुपए प्रतिमाह प्रवासी मजदूरों की ओर से अपने घरों को यानि झारखंड को भेजी जाती है. इस तरह सामान्य दिनों में प्रवासी मजदूरों की वजह से करीब 450 करोड़ रुपए झारखंड में आते हैं.

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'उद्योग-व्यापार अगर मजबूत हुए तो त्वरित नतीजे देंगे'

सांसद ने कहा कि यह भी याद रखना होगा कि लौट रहे प्रवासियों का स्किल उद्योग-व्यापार के लिए ही उपयुक्त है, मनरेगा या अन्य नई योजनाओं के लिए नहीं. दूसरे प्रदेशों में भी ये औद्योगिक/व्यापारिक इकाईयों में ही नियोजित थे. बेहतर होगा कि दीर्घकालिक लक्ष्यों को ध्यान में रखकर योजनाएं शुरू करने के साथ-साथ राज्य के उद्योग-व्यापार को प्रोत्साहन दिया जाना भी जरूरी है. उद्योग-व्यापार अगर मजबूत हुए तो त्वरित नतीजे देंगे. संकट में पड़े उद्योगों को सरकार मदद करे तो सभी प्रवासियों को संभालना इनके लिए बड़ी बात नहीं.

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'रास्ता तलाशने का प्रयास करना चाहिए'
उन्होंने कहा कि इस मसले पर केंद्र-राज्य का विवाद उचित नहीं और न अगली-पिछली सरकारों को कोसने से बात नहीं बनेगी. राज्य सरकार अगर स्थानीय उद्योग-व्यापार को ताकत देगी तो रोजगार, राजस्व और अर्थव्यवस्था की मजबूती की दृष्टि से यह राज्य के लिए ही फायदेमंद होगा. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री को राज्य के उद्योग-व्यापार जगत के प्रतिनिधियों के साथ विमर्श कर रास्ता तलाशने का प्रयास करना चाहिए.

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