रांची: किसी भी राज्य में विधानसभा को लोकतंत्र का मंदिर के रुप में जाना जाता है. जहां जनता के द्वारा निर्वाचित विधायक अपनी स्थानीय समस्या को सत्र के दौरान उठाते हैं. मगर सत्रावधि छोटा होने से झारखंड के अधिकांश विधायक सदन में सवाल खड़ा नहीं कर पाते हैं. संवैधानिक व्यवस्था के तहत एक सत्र से दूसरे सत्र की अधिकतम अंतराल 06 महीने का होना चाहिए. मगर विडंबना यह रही है कि बजट सत्र को छोड़कर मानसून सत्र और शीतकालीन सत्र सिर्फ औपचारिकता के तहत बुलाई जाती रही है.
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लंबे समय से चल रही है परंपरा
विधानसभा का सत्र का छोटा होना लंबे समय से जारी है. इस बार भी शीतकालीन सत्र की अवधि को देखने से यही पता चलता है. पिछले साल कोरोना के कारण सरकार एक दिवसीय विशेष सत्र बुलाकर शीतकालीन सत्र को आहुत नहीं कर पाई थी.उससे पहले 2020 में कोरोना के कारण ही 18 से 22 सितंबर तक मानसून सत्र का आयोजन किया गया था. जबकि 2019 में 22 से 26 जुलाई तक मानसून सत्र चला था. इस बार मानसून सत्र भी महज 3 से 9 सितंबर तक आहुत की गई थी. इसके बाद 16 से 22 दिसंबर तक शीतकालीन सत्र आहुत किया गया है जिसमें महज 5 कार्य दिवस ही होगा.
सत्तापक्ष और विपक्ष का एक दूसरे पर आरोप
सत्र के छोटा होने पर सत्ता पक्ष और विपक्ष आमने सामने रहा है.एक दूसरे को दोषारोपण करने के सिवा अब तक इस दिशा में कोई ठोस पहल नहीं की गई है. बीजेपी विधायक और पूर्व स्पीकर सी पी सिंह ने सत्र के छोटा होने के पीछे सरकार को जिम्मेवार बताया है. उनका कहना है कि सरकार सदन में विधायक के सवाल का जवाब देने से भागती है इसलिए कार्यवधि कम रखा जाता है.वहीं संसदीय कार्यमंत्री आलमगीर आलम ने 16 दिसंबर से शुरू हो रहे शीतकालीन सत्र से उम्मीद जताते हुए कहा है कि इस बार अधिक से अधिक विधायक अपने अपने क्षेत्र की समस्या सदन में रखेंगे और उसका समाधान सरकार के द्वारा किया जाएगा.
साल में तीन बार आहूत होते हैं सत्र
विधानसभा सत्र सामान्य तौर पर साल में तीन बार आहूत किए जाते हैं. जो कि बजट सत्र, मानसून सत्र और शीतकालीन सत्र के रुप में जाना जाता है. संवैधानिक व्यवस्था के तहत राज्य सरकार की अनुशंसा पर राज्यपाल द्वारा सदन की कार्यवाही प्रत्येक 06 माह में कम से कम एक बार बुलाया जाता है.इसी के तहत एक बार फिर शीतकालीन सत्र 16 से 22 दिसंबर तक चलेगा जिसमें सरकार अनुपूरक बजट और कई बिल भी सदन के पटल पर रखने जा रही है.