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चेहरे बदले लेकिन छोटे विधानसभा सत्र पर नहीं बदले सवाल, जानिए किसने कहा- नुकसान में रहते हैं नए विधायक

29 जुलाई से झारखंड विधानसभा का मानसून सत्र शुरू हो रहा है. हर बार की तरह एकबार फिर छोटे सत्र को लेकर आवाज उठने लगी है. हालांकि आवाज उठाने वाले चेहरे बदले हुए हैं.

jharkhand Legislative Assembly
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Published : Jul 24, 2022, 4:36 PM IST

Updated : Jul 24, 2022, 5:01 PM IST

रांचीः राजनीति भी कमाल की चीज है. कुर्सी और जिम्मेवारी बदलते ही नेताओं और माननीयों की सोच भी बदल जाती है. कल तक जो विपक्ष में रहते लंबे सत्र के पैरोकार होते हैं. उनकी सोच और नीति सत्ता संभालते ही एकदम से बदल जाती है. कल तक सत्ता में रहते चंद दिनों का विधानसभा सत्र भी लंबा लगता था, उनके विधानसभा में बैठने का स्थान बदलने (सत्ता पक्ष से विपक्ष) मात्र से सोच व्यापक हो जाता है और उसके केंद्र में जनता की समस्याएं और मुद्दे होते हैं.

आज ईटीवी भारत इस विषय पर चर्चा इसलिए कर रहा है क्योंकि 29 जुलाई से झारखंड विधानसभा का मानसून सत्र शुरू हो रहा है और उससे ठीक पहले झारखंड भाजपा के पूर्व मंत्री, विधानसभा के पूर्व स्पीकर और विधायक सीपी सिंह ने छोटे सत्र को लेकर एक बयान दिया है कि चाहे जिसकी भी सत्ता हो, हर कोई छोटा सत्र की आहूत कराना चाहता है. उन्होंने कहा कि छोटे सत्र का सबके ज्यादा नुकसान उन नए विधायकों को उठाना पड़ता है जो सदन में नए हों या पहली बार जीत कर आएं हों. उन्होंने कहा कि ऐसे कई विधायकों को तो छोटे सत्र की वजह से अपने क्षेत्र की समस्याएं, सदन में उठाने का मौका तक नहीं मिलता और जनता की आवाज उनकी समस्याएं राज्य के सर्वोच्च सदन यानि विधानसभा में नहीं उठ पाती.

देखें पूरी खबर

कांग्रेस-झामुमो-राजद के नेता अब बताते हैं कि कैसे छोटा सत्र भी हो सकता है लाभकारीः यह सत्ताधारी दल होने का ही असर है कि विपक्ष की भूमिका में जो दल 2014-19 तक भाजपा शासनकाल में लंबे सत्र के प्रबल हिमायती थे अब वह बता रहे हैं कि विधानसभा के छोटे सत्र को भी जनता के लिए लाभकारी बनाया जा सकता है. कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता कहते हैं कि अगर विपक्ष, सदन में सार्थक भूमिका निभाए और हो हंगामा की जगह, जनता के मुद्दे पर सार्थक चर्चा करे तो न सिर्फ सरकार अपने विधायी कार्य निपटा लेगी, बल्कि जनसरोकार के मुद्दों का भी हल निकालने में मदद मिलेगी.

झारखंड जैसे छोटे राज्यों में साल के कम से कम 60 कार्यदिवस का हो सत्रः पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और भाजपा नेता कहते हैं कि वह पूर्व की सरकार में भी लंबे कार्यदिवस वाले सत्र के लिए अपनी आवाज उठाते रहे हैं और आज भी कहते हैं कि झारखंड जैसे राज्य में कम से कम साल में 60 दिनों का सत्र जरूर होना चाहिए. ताकि हर विधायक को अपने अपने क्षेत्र की समस्याएं उठाने का मौका मिले और महत्वपूर्ण मुद्दों पर सार्थक बहस और चर्चा का गवाह विधानसभा बने.


इन मुद्दों पर सरकार को घेरने की तैयारीः भाजपा के वरिष्ठ नेता ने कहा कि भ्र्ष्टाचार के मामले, मुख्यमंत्री के विधायक प्रतिनिधि से ईडी की पूछताछ, महिला आईएएस अधिकारी का करप्शन, बिजली, पानी, स्वास्थ्य, महिला सुरक्षा सहित कई मुद्दे हैं जिसपर विपक्ष ने सरकार को सदन में घेरने की तैयारी कर रखी है. परंतु छोटे सत्र में इनमें से कितने मुद्दों के लिए समय मिल सकेगा, इसपर विपक्ष अभी से ही निराश है.

रांचीः राजनीति भी कमाल की चीज है. कुर्सी और जिम्मेवारी बदलते ही नेताओं और माननीयों की सोच भी बदल जाती है. कल तक जो विपक्ष में रहते लंबे सत्र के पैरोकार होते हैं. उनकी सोच और नीति सत्ता संभालते ही एकदम से बदल जाती है. कल तक सत्ता में रहते चंद दिनों का विधानसभा सत्र भी लंबा लगता था, उनके विधानसभा में बैठने का स्थान बदलने (सत्ता पक्ष से विपक्ष) मात्र से सोच व्यापक हो जाता है और उसके केंद्र में जनता की समस्याएं और मुद्दे होते हैं.

आज ईटीवी भारत इस विषय पर चर्चा इसलिए कर रहा है क्योंकि 29 जुलाई से झारखंड विधानसभा का मानसून सत्र शुरू हो रहा है और उससे ठीक पहले झारखंड भाजपा के पूर्व मंत्री, विधानसभा के पूर्व स्पीकर और विधायक सीपी सिंह ने छोटे सत्र को लेकर एक बयान दिया है कि चाहे जिसकी भी सत्ता हो, हर कोई छोटा सत्र की आहूत कराना चाहता है. उन्होंने कहा कि छोटे सत्र का सबके ज्यादा नुकसान उन नए विधायकों को उठाना पड़ता है जो सदन में नए हों या पहली बार जीत कर आएं हों. उन्होंने कहा कि ऐसे कई विधायकों को तो छोटे सत्र की वजह से अपने क्षेत्र की समस्याएं, सदन में उठाने का मौका तक नहीं मिलता और जनता की आवाज उनकी समस्याएं राज्य के सर्वोच्च सदन यानि विधानसभा में नहीं उठ पाती.

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कांग्रेस-झामुमो-राजद के नेता अब बताते हैं कि कैसे छोटा सत्र भी हो सकता है लाभकारीः यह सत्ताधारी दल होने का ही असर है कि विपक्ष की भूमिका में जो दल 2014-19 तक भाजपा शासनकाल में लंबे सत्र के प्रबल हिमायती थे अब वह बता रहे हैं कि विधानसभा के छोटे सत्र को भी जनता के लिए लाभकारी बनाया जा सकता है. कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता कहते हैं कि अगर विपक्ष, सदन में सार्थक भूमिका निभाए और हो हंगामा की जगह, जनता के मुद्दे पर सार्थक चर्चा करे तो न सिर्फ सरकार अपने विधायी कार्य निपटा लेगी, बल्कि जनसरोकार के मुद्दों का भी हल निकालने में मदद मिलेगी.

झारखंड जैसे छोटे राज्यों में साल के कम से कम 60 कार्यदिवस का हो सत्रः पूर्व विधानसभा अध्यक्ष और भाजपा नेता कहते हैं कि वह पूर्व की सरकार में भी लंबे कार्यदिवस वाले सत्र के लिए अपनी आवाज उठाते रहे हैं और आज भी कहते हैं कि झारखंड जैसे राज्य में कम से कम साल में 60 दिनों का सत्र जरूर होना चाहिए. ताकि हर विधायक को अपने अपने क्षेत्र की समस्याएं उठाने का मौका मिले और महत्वपूर्ण मुद्दों पर सार्थक बहस और चर्चा का गवाह विधानसभा बने.


इन मुद्दों पर सरकार को घेरने की तैयारीः भाजपा के वरिष्ठ नेता ने कहा कि भ्र्ष्टाचार के मामले, मुख्यमंत्री के विधायक प्रतिनिधि से ईडी की पूछताछ, महिला आईएएस अधिकारी का करप्शन, बिजली, पानी, स्वास्थ्य, महिला सुरक्षा सहित कई मुद्दे हैं जिसपर विपक्ष ने सरकार को सदन में घेरने की तैयारी कर रखी है. परंतु छोटे सत्र में इनमें से कितने मुद्दों के लिए समय मिल सकेगा, इसपर विपक्ष अभी से ही निराश है.

Last Updated : Jul 24, 2022, 5:01 PM IST
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