रांची: झारखंड विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष को लेकर मामला अभी भी फंसा हुआ है. तकनीकी पेंच झारखंड विकास मोर्चा के बीजेपी और कांग्रेस में विलय को लेकर फंस गया है. दरअसल, एक तरफ जहां झारखंड विकास मोर्चा के एक विधायक के रूप में बाबूलाल मरांडी ने बीजेपी में पार्टी के विलय का दावा किया है. वहीं, दूसरी तरफ पार्टी से दो निलंबित विधायक बंधु तिर्की और प्रदीप यादव ने झाविमो का कांग्रेस में विलय का दावा किया है.
हालांकि, इन सब को लेकर स्पीकर रविंद्र नाथ महतो ने पहले ही क्लियर किया कि वह लीगल ओपिनियन के बाद ही कोई कदम उठाएंगे. दरअसल, 28 फरवरी से झारखंड विधानसभा का बजट सत्र शुरू होना है. ऐसे में स्पीकर को अगले कुछ दिनों में इसे लेकर तस्वीर साफ करनी पड़ सकती है.
क्या है तकनीकी पेंच
दरअसल, मरांडी ने अपने विलय के पीछे झाविमो की कार्यसमिति के दो तिहाई बहुमत होने का दावा किया, लेकिन सदन में पार्टी के संगठनात्मक स्ट्रक्चर को महत्व नहीं दिया जाता. वहां दो तिहाई जनप्रतिनिधि के विलय को फैसले का आधार बनाया जा सकता है. दरअसल, 2014 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद झारखंड विकास मोर्चा के 8 में से 6 विधायक बीजेपी में चले गए और उनके इस विलय को तत्कालीन स्पीकर ने भी मान्यता दी थी.
वहीं, विधानसभा सूत्रों की मानें तो बजट सत्र को लेकर बीजेपी के विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी के बजाय सीपी सिंह को आमंत्रण भेजा गया. ऐसे में कन्फ्यूजन वाली स्थिति बनी हुई है कि विधानसभा ने मरांडी को बीजेपी का विधायक दल का नेता नहीं माना है.
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पिछले विधानसभा अध्यक्ष के निर्णय को आधार बनाएं तो तिर्की और यादव के कांग्रेस में विलय को मान्यता मिल सकती है. हालांकि, अभी तक झारखंड विधानसभा के स्पीक रविंद्र नाथ महतो के फैसले का इंतजार है. विधानसभा के बजट सत्र शुरू होने से पहले 27 फरवरी को सभी दलों के विधायक दल के नेता को बैठक के लिए स्पीकर ने बुलाया है.