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Kargil Vijay Diwas: याद आए वीर शहीद नागेश्वर महतो, पत्नी को पति के खोने का गम तो है पर फक्र उससे ज्यादा

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Published : Jul 26, 2021, 12:02 AM IST

26 जुलाई कारगिल विजय दिवस, उन वीर शहीदों को याद नमन करने का दिन, भारत माता के वीर सपूतों को श्रद्धांजलि देने का दिन है. साल 1999 में भारत-पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध में सैकड़ों भारतीय सैनिकों ने जान गंवाई, उनमें से एक वीर सपूत रांची की धरती से भी था. नायब सूबेदार नागेश्वर महतो, जिन्होंने पाक सैनिकों से लोहा लेते हुए कारगिल की धरती पर वीरगति को प्राप्त हुए थे. इस बलिदान के 22 साल हो रहे हैं, पर परिवार को दुख से ज्यादा नागेश्वर महतो की शहादत पर फक्र महसूस करते हैं.

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शहीद नागेश्वर महतो

रांचीः भारत-पाकिस्तान के बीच 1999 के कारगिल युद्ध की लड़ाई के दौरान एक खबर ने सबको दिलों को कचोट कर रख दिया. इसमें किसी के मांग का सिंदूर उड़ गया तो किसी की गोद सूनी हो गई, कई बच्चे अनाथ हो गए. संयुक्त बिहार के वक्त झारखंड के पिठोरिया वीर सपूत नागेश्वर महतो भी शामिल हैं. जिन्होंने भारत माता की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहूति दे दी.

इसे भी पढ़ें- कारगिल विजय दिवस विशेष: रांची के शहीद नागेश्वर महतो की शहादत को सलाम, कर गए चोटी फतह

आज कारगिल युद्ध के 22 साल बाद भी शहीद नागेश्वर महतो की पत्नी संध्या देवी अपने पति की तस्वीर को देख कर रो पड़ती हैं, उन्हें पति के खोने का गम तो है, पर उससे ज्यादा उन्हें फक्र है कि उनके पति नायब सूबेदार नागेश्वर महतो भारत माता की सेवा में खुद को बलिदान कर देश के लिए शहीद हो गए. कई साल से उनके दिल में दबी कसक एक भी है, जो रह-रहकर एक सवाल के रूप में उभरती है कि आखिर कब उन शहीद परिवारों को उचित सम्मान मिलेगा.

देखें पूरी खबर

घोषणाओं में ही सिमटकर रह गए वादे

रांची के शहीद नागेश्वर महतो की पत्नी संध्या देवी का कहना है कई घोषणाओं के बाद भी अब तक कारगिल में वीर सपूत शहीद नागेश्वर महतो की आदम कद प्रतिमा नहीं लगी. उन्होंने कहा कि नेताओं से लेकर अफसरों तक कई बार पत्र लिखकर प्रतिमा लगाने की मांग की गई, पर किसी ने भी ध्यान नहीं और ना ही उनके परिवारों को किसी को सरकार की ओर से नौकरी दी गई. राज्य सरकार की तरफ से एक पेट्रोल-पंप जरूर दिया गया है.

इसे भी पढ़ें- कारगिल विजय: जरा याद उन्हें भी कर लो... झारखंड के योद्धाओं की वीरगाथा

शहीद की पत्नी संध्या देवी ने कहा कि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात हुई है. उन्होंने आश्वासन दिया है कि उनकी आदम कद प्रतिमा लगाई जाएगी. उनकी बड़ी प्रतिमा अगर किसी चौक-चौराहे पर लग जाए तो उसे देखकर यहां युवाओं में भी देश के प्रति सम्मान जागेगा. जिससे उनमें भी देश सेवा के प्रति जज्बा जागेगा और रांची के साथ-साथ राज्य का भी सम्मान बढ़ेगा.

Kargil Vijay Diwas Tribute to martyr Nageshwar Mahato of Ranchi
वीर शहीद नागेश्वर महतो का परिवार

जिम्मेदारी से संभाल रही हूं पति की विरासत- संध्या देवी

शहीद की पत्नी संध्या देवी अपने पति की विरासत को सहेजने में वो सफल रहीं. बड़ा बेटा मुकेश सरकार की ओर से आवंटित पेट्रोल-पंप का बिजनेस संभाल रहा है. मंझला बेटा अभिषेक हैदराबाद स्थित डिलॉयड कंपनी में सीए है. छोटा बेटा आकाश सीए की तैयारी कर रहा है. परिवार के सदस्यों में शहीद नागेश्वर महतो के एक बड़े भाई और एक छोटे भाई हैं, जो हमेशा संध्या और उनके बच्चों के साथ खड़े रहे. संध्या के माता पिता के साथ ही शहीद नागेश्वर के माता-पिता का भी काफी पहले ही देहांत हो चुका है.

इसे भी पढ़ें- विजय दिवस: जब कारगिल में शहीद नागेश्वर का शव झारखंड पहुंचा, तो भारत माता की जयकार से गूंज उठी थी रांची

हमें अपने भाई पर गर्व है

उनके सबसे बड़े बेटे मुकेश महतो का कहना है कि पिता को खोने का दर्द बहुत बड़ा होता है, पर उससे ज्यादा फक्र की बात यह है कि उनकी वजह से आज कहीं भी सिर उठाकर खड़े हो सकते हैं. उनके पिता नागेश्वर महतो देश के लिए शहीद हुए हैं, ऐसे देश सेवा के जज्बे को युवाओं में जगाने की आवश्यकता है और उनके नक्शे कदम पर चलने की जरूरत है.

Kargil Vijay Diwas Tribute to martyr Nageshwar Mahato of Ranchi
वीर शहीद नागेश्वर महतो

शहीद नागेश्वर महतो के भाई भीम महतो अपने बचपन के दिनों को साझा करते हुए बताते हैं कि बचपन से ही नागेश्वर चंचल स्वभाव के थे, आज भले ही वह हम लोगों के बीच में नहीं हो लेकिन उनकी शहादत और बलिदान के कारण वह हमेशा हम लोगों के बीच बने हुए हैं. उनकी वजह से ही आज हमें हर जगह सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है.

संयुक्त बिहार के वक्त रांची के पिठोरिया में नागेश्वर महतो का जन्म साल 1961 में हुआ था. परिवार में पांच भाई और एक बहन है. नागेश्वर महतो भाइयों में चौथे स्थान पर थे. उनका पालन-पोषण भाइयों के साथ ही हुआ था.

इसे भी पढ़ें- कारगिल युद्ध का इतिहास : भारतीय जवानों ने यूं लिखी जीत की गाथा

नागेश्वर को मिली थी बोफोर्स तोप की जिम्मेदारी

नागेश्वर महतो बचपन से ही चंचल स्वभाव के रहे. उनकी सेना में बहाली 29 अक्टूबर 1980 में हुई. सैन्य जीवन में उनको कई उपाधियां मिलीं. साल 1999 में जब कारगिल में भारत और पाकिस्तान की जंग छिड़ी. नायब सूबेदार नागेश्वर महतो की ड्यूटी टेक्निकल स्टाफ के तौर पर लगाई गई थी. उन्हें कारगिल युद्ध में अहम भूमिका निभाने वाले बोफोर्स तोप की जिम्मेदारी दी गई थी.

बोफोर्स तोप लगातार आग उगल रहे थे, इस तोप के सामने दुश्मनों के छक्के छूट गए थे. लगातार गोलीबारी के बीच तोप की गड़बड़ियों को दुरुस्त करने की जिम्मेदारी नायब सूबेदार नागेश्वर महतो के कंधे पर थी. नायब सूबेदार नागेश्वर महतो को कारगिल युद्ध के बीच 1 घंटे का विराम मिला था. उस वक्त सूबेदार नागेश्वर महतो अपनी तोप को ठीक कर रहे थे.

Kargil Vijay Diwas Tribute to martyr Nageshwar Mahato of Ranchi
वीर शहीद नागेश्वर महतो के अंतिम विदाई की तस्वीर

पाकिस्तान सैनिकों ने किया था छल

पाकिस्तान के सैनिक ऊंचाई पर थे और भारतीय सैनिक तलहटी में नीचे की तरफ थे. इस बात का फायदा पाकिस्तान के सैनिकों को मिल गया और युद्ध विराम के बीच ही उन्होंने युद्ध विराम का उल्लंघन करते हुए बोफोर्स तोप को नुकसान पहुंचाने के लिए एक गोला नागेश्वर महतो की तरफ उछाल दिया. वो गोला नागेश्वर महतो के ठीक बगल में आकर फटा, जोरदार धमाका हुआ और नायब सूबेदार वीरगति को प्राप्त हो गए.

इसे भी पढ़ें- कारगिल विजय दिवस: ऑपरेशन विजय को 20 साल पूरे

इस लड़ाई में 13 जून 1999 को पाकिस्तानी सैनिकों की ओर से किए गए छल में नायब सूबेदार नागेश्वर महतो शहीद हुए. जिसके बाद सूबेदार की पत्नी संध्या देवी को कारगिल युद्ध में उनके पति के शहादत होने की जानकारी एक पत्र के माध्यम से दी गई. आखिरकार 60 दिन तक लगातार चली इस लड़ाई में भारत विजयी हुआ. वीर सैनिकों ने पाकिस्तान को पीछे खदेड़ने में कामयाब रही और 26 जुलाई 1999 को कारगिल की चोटी पर भारत का तिरंगा शान से लहराया.

रांचीः भारत-पाकिस्तान के बीच 1999 के कारगिल युद्ध की लड़ाई के दौरान एक खबर ने सबको दिलों को कचोट कर रख दिया. इसमें किसी के मांग का सिंदूर उड़ गया तो किसी की गोद सूनी हो गई, कई बच्चे अनाथ हो गए. संयुक्त बिहार के वक्त झारखंड के पिठोरिया वीर सपूत नागेश्वर महतो भी शामिल हैं. जिन्होंने भारत माता की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहूति दे दी.

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आज कारगिल युद्ध के 22 साल बाद भी शहीद नागेश्वर महतो की पत्नी संध्या देवी अपने पति की तस्वीर को देख कर रो पड़ती हैं, उन्हें पति के खोने का गम तो है, पर उससे ज्यादा उन्हें फक्र है कि उनके पति नायब सूबेदार नागेश्वर महतो भारत माता की सेवा में खुद को बलिदान कर देश के लिए शहीद हो गए. कई साल से उनके दिल में दबी कसक एक भी है, जो रह-रहकर एक सवाल के रूप में उभरती है कि आखिर कब उन शहीद परिवारों को उचित सम्मान मिलेगा.

देखें पूरी खबर

घोषणाओं में ही सिमटकर रह गए वादे

रांची के शहीद नागेश्वर महतो की पत्नी संध्या देवी का कहना है कई घोषणाओं के बाद भी अब तक कारगिल में वीर सपूत शहीद नागेश्वर महतो की आदम कद प्रतिमा नहीं लगी. उन्होंने कहा कि नेताओं से लेकर अफसरों तक कई बार पत्र लिखकर प्रतिमा लगाने की मांग की गई, पर किसी ने भी ध्यान नहीं और ना ही उनके परिवारों को किसी को सरकार की ओर से नौकरी दी गई. राज्य सरकार की तरफ से एक पेट्रोल-पंप जरूर दिया गया है.

इसे भी पढ़ें- कारगिल विजय: जरा याद उन्हें भी कर लो... झारखंड के योद्धाओं की वीरगाथा

शहीद की पत्नी संध्या देवी ने कहा कि झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात हुई है. उन्होंने आश्वासन दिया है कि उनकी आदम कद प्रतिमा लगाई जाएगी. उनकी बड़ी प्रतिमा अगर किसी चौक-चौराहे पर लग जाए तो उसे देखकर यहां युवाओं में भी देश के प्रति सम्मान जागेगा. जिससे उनमें भी देश सेवा के प्रति जज्बा जागेगा और रांची के साथ-साथ राज्य का भी सम्मान बढ़ेगा.

Kargil Vijay Diwas Tribute to martyr Nageshwar Mahato of Ranchi
वीर शहीद नागेश्वर महतो का परिवार

जिम्मेदारी से संभाल रही हूं पति की विरासत- संध्या देवी

शहीद की पत्नी संध्या देवी अपने पति की विरासत को सहेजने में वो सफल रहीं. बड़ा बेटा मुकेश सरकार की ओर से आवंटित पेट्रोल-पंप का बिजनेस संभाल रहा है. मंझला बेटा अभिषेक हैदराबाद स्थित डिलॉयड कंपनी में सीए है. छोटा बेटा आकाश सीए की तैयारी कर रहा है. परिवार के सदस्यों में शहीद नागेश्वर महतो के एक बड़े भाई और एक छोटे भाई हैं, जो हमेशा संध्या और उनके बच्चों के साथ खड़े रहे. संध्या के माता पिता के साथ ही शहीद नागेश्वर के माता-पिता का भी काफी पहले ही देहांत हो चुका है.

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हमें अपने भाई पर गर्व है

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Kargil Vijay Diwas Tribute to martyr Nageshwar Mahato of Ranchi
वीर शहीद नागेश्वर महतो

शहीद नागेश्वर महतो के भाई भीम महतो अपने बचपन के दिनों को साझा करते हुए बताते हैं कि बचपन से ही नागेश्वर चंचल स्वभाव के थे, आज भले ही वह हम लोगों के बीच में नहीं हो लेकिन उनकी शहादत और बलिदान के कारण वह हमेशा हम लोगों के बीच बने हुए हैं. उनकी वजह से ही आज हमें हर जगह सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है.

संयुक्त बिहार के वक्त रांची के पिठोरिया में नागेश्वर महतो का जन्म साल 1961 में हुआ था. परिवार में पांच भाई और एक बहन है. नागेश्वर महतो भाइयों में चौथे स्थान पर थे. उनका पालन-पोषण भाइयों के साथ ही हुआ था.

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नागेश्वर को मिली थी बोफोर्स तोप की जिम्मेदारी

नागेश्वर महतो बचपन से ही चंचल स्वभाव के रहे. उनकी सेना में बहाली 29 अक्टूबर 1980 में हुई. सैन्य जीवन में उनको कई उपाधियां मिलीं. साल 1999 में जब कारगिल में भारत और पाकिस्तान की जंग छिड़ी. नायब सूबेदार नागेश्वर महतो की ड्यूटी टेक्निकल स्टाफ के तौर पर लगाई गई थी. उन्हें कारगिल युद्ध में अहम भूमिका निभाने वाले बोफोर्स तोप की जिम्मेदारी दी गई थी.

बोफोर्स तोप लगातार आग उगल रहे थे, इस तोप के सामने दुश्मनों के छक्के छूट गए थे. लगातार गोलीबारी के बीच तोप की गड़बड़ियों को दुरुस्त करने की जिम्मेदारी नायब सूबेदार नागेश्वर महतो के कंधे पर थी. नायब सूबेदार नागेश्वर महतो को कारगिल युद्ध के बीच 1 घंटे का विराम मिला था. उस वक्त सूबेदार नागेश्वर महतो अपनी तोप को ठीक कर रहे थे.

Kargil Vijay Diwas Tribute to martyr Nageshwar Mahato of Ranchi
वीर शहीद नागेश्वर महतो के अंतिम विदाई की तस्वीर

पाकिस्तान सैनिकों ने किया था छल

पाकिस्तान के सैनिक ऊंचाई पर थे और भारतीय सैनिक तलहटी में नीचे की तरफ थे. इस बात का फायदा पाकिस्तान के सैनिकों को मिल गया और युद्ध विराम के बीच ही उन्होंने युद्ध विराम का उल्लंघन करते हुए बोफोर्स तोप को नुकसान पहुंचाने के लिए एक गोला नागेश्वर महतो की तरफ उछाल दिया. वो गोला नागेश्वर महतो के ठीक बगल में आकर फटा, जोरदार धमाका हुआ और नायब सूबेदार वीरगति को प्राप्त हो गए.

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इस लड़ाई में 13 जून 1999 को पाकिस्तानी सैनिकों की ओर से किए गए छल में नायब सूबेदार नागेश्वर महतो शहीद हुए. जिसके बाद सूबेदार की पत्नी संध्या देवी को कारगिल युद्ध में उनके पति के शहादत होने की जानकारी एक पत्र के माध्यम से दी गई. आखिरकार 60 दिन तक लगातार चली इस लड़ाई में भारत विजयी हुआ. वीर सैनिकों ने पाकिस्तान को पीछे खदेड़ने में कामयाब रही और 26 जुलाई 1999 को कारगिल की चोटी पर भारत का तिरंगा शान से लहराया.

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