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विजय दिवस: नागेश्वर महतो के जज्बे को झारखंड का सलाम! जानिए क्यों हुए शहीद से युवा प्रभावित - रांची न्यूज

शहीद नागेश्वर महतो बचपन से ही चंचल स्वभाव के रहे थे. उनकी सेना में बहाली 29 अक्टूबर 1980 में हुई. इसके बाद वो ताउम्र देश के प्रति समर्पित होकर भारत माता की सेवा करते रहे. इस दौरान उन्हें कई उपाधियां भी दी गई. जब भी वह छुट्टी में अपने पैतृक गांव पिठोरिया आते तो युवाओं के अंदर देश के प्रति जज्बा भरते थे. उनकी शहादत और शौर्य से लबरेज जीवन पर लोग फक्र करते हैं.

नागेश्वर महतो के जज्बे को झारखंड का सलाम
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Published : Jul 25, 2019, 5:39 PM IST

रांची: वीर भूमि के रणबांकुरों ने जहां स्वतंत्रता से पहले आंदोलनों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. वहीं, स्वतंत्रता के बाद की लड़ाइयों में भी तत्कालीन बिहार और अब झारखंड की मिट्टी में जन्मे सेनानी देश की धरोहर साबित हुए हैं. कारगिल युद्ध के दौरान झारखंड के जवानों ने अपना शौर्य दिखाते हुए दुश्मनों को नाको चने चबवाए. इस दौरान कई जवान शहीद हुए. यहां की धरती ने सदियों से जन्म ले रहे सपूतों के दिलों में देशभक्ति की भावना को प्रवाहित किया है. झारखंड के शहीद नागेश्वर महतो की शौर्यगाथा के इस दूसरे भाग में ईटीवी भारत बताएगा उनके जीवन से जुड़े उन पहलुओं के बारे में जिनसे झारखंड के युवा प्रभावित हुए.

वीडियो में देखें ये स्पेशल स्टोरी

झारखंड के लाल शहीद वीर नागेश्वर महतो की अमर गाथा आज तक लोगों की जुबां पर है. हर युवा उनके जज्बे को सलाम करते हुए देश की सेवा में खुद को न्योछावर करने के लिए समर्पित है. झारखंड की मिट्टी के लाल शहीद नागेश्वर महतो 13 जून 1999 को कारगिल युद्ध के दौरान हमेशा-हमेशा के लिए भारत माता की गोद में समा गए. चाहे उनका पैतृक गांव हो या फिर समूचा झारखंड उनकी वीरगाथा कि हर तरफ कसमें खाई जाती हैं. कुछ ऐसे व्यक्तित्व के रहे झारखंड के पिठोरिया निवासी शहीद वीर नागेश्वर महतो.

शहीद नागेश्वर महतो बचपन से ही चंचल स्वभाव के रहे. उनकी सेना में बहाली 29 अक्टूबर 1980 में हुई. इसके बाद वो ताउम्र देश के प्रति समर्पित होकर भारत माता की सेवा करते रहे. इस दौरान उन्हें कई उपाधियां भी दी गई. जब भी वह छुट्टी में अपने पैतृक गांव पिठोरिया आते तो युवाओं के अंदर देश के प्रति जज्बा भरते थे. उनकी शहादत और शौर्य से लबरेज जीवन पर लोग फक्र करते हैं. आज उनके पैतृक गांव पिठोरिया से कई ऐसे जवान हैं जो देश की सेवा में लगे हुए हैं. नागेश्वर महतो की ही प्रेरणा से आज झारखंड के कई युवा एयरफोर्स, नेवी, इंडियन आर्मी जैसी सेनाओं में तैनात हैं. आज भले ही शहीद नागेश्वर महतो भारत माता की गोद में समा गए हो, लेकिन लोगों के दिलों में वो आज भी जिंदा हैं. 15 अगस्त हो या फिर 26 जनवरी नागेश्वर महतो की याद में हर साल उनके पैतृक गांव में झंडा तोलन किया जाता है.

शहीद नागेश्वर महतो के छोटे भाई भीम महतो का कहना है कि उनके भाई हर युवाओं के दिलों में जिंदा हैं. उनके खोने का गम तो जरूर है, लेकिन उससे ज्यादा फक्र इस बात का होता है कि उन्होंने देश की रक्षा में अपनी जिंदगी न्योछावर कर दी. हालांकि उनको एक बात का मलाल जरूर है कि उनके घर से सेना में कोई भी नहीं जा सका. लेकिन भीम महतो का कहना है कि आने वाले दिनों में हमारे घर के नौजवान देश की सेवा करने के लिए सेना में भर्ती जरूर होंगे.

शहीद नागेश्वर महतो के सबसे छोटे बेटे आकाश कुमार की मानें, तो बचपन में ही सिर से पिता का साया उठ गया. उनके नहीं रहने का गम हमेशा रहेगा, लेकिन गर्व इस बात का होता है कि नागेश्वर महतो ने देश की सेवा में अपने प्राणों की आहुति दे दी. आकाश कुमार ने युवाओं से गुजारिश की वो भी बड़े होकर देश की सेवा करें.

रांची: वीर भूमि के रणबांकुरों ने जहां स्वतंत्रता से पहले आंदोलनों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया. वहीं, स्वतंत्रता के बाद की लड़ाइयों में भी तत्कालीन बिहार और अब झारखंड की मिट्टी में जन्मे सेनानी देश की धरोहर साबित हुए हैं. कारगिल युद्ध के दौरान झारखंड के जवानों ने अपना शौर्य दिखाते हुए दुश्मनों को नाको चने चबवाए. इस दौरान कई जवान शहीद हुए. यहां की धरती ने सदियों से जन्म ले रहे सपूतों के दिलों में देशभक्ति की भावना को प्रवाहित किया है. झारखंड के शहीद नागेश्वर महतो की शौर्यगाथा के इस दूसरे भाग में ईटीवी भारत बताएगा उनके जीवन से जुड़े उन पहलुओं के बारे में जिनसे झारखंड के युवा प्रभावित हुए.

वीडियो में देखें ये स्पेशल स्टोरी

झारखंड के लाल शहीद वीर नागेश्वर महतो की अमर गाथा आज तक लोगों की जुबां पर है. हर युवा उनके जज्बे को सलाम करते हुए देश की सेवा में खुद को न्योछावर करने के लिए समर्पित है. झारखंड की मिट्टी के लाल शहीद नागेश्वर महतो 13 जून 1999 को कारगिल युद्ध के दौरान हमेशा-हमेशा के लिए भारत माता की गोद में समा गए. चाहे उनका पैतृक गांव हो या फिर समूचा झारखंड उनकी वीरगाथा कि हर तरफ कसमें खाई जाती हैं. कुछ ऐसे व्यक्तित्व के रहे झारखंड के पिठोरिया निवासी शहीद वीर नागेश्वर महतो.

शहीद नागेश्वर महतो बचपन से ही चंचल स्वभाव के रहे. उनकी सेना में बहाली 29 अक्टूबर 1980 में हुई. इसके बाद वो ताउम्र देश के प्रति समर्पित होकर भारत माता की सेवा करते रहे. इस दौरान उन्हें कई उपाधियां भी दी गई. जब भी वह छुट्टी में अपने पैतृक गांव पिठोरिया आते तो युवाओं के अंदर देश के प्रति जज्बा भरते थे. उनकी शहादत और शौर्य से लबरेज जीवन पर लोग फक्र करते हैं. आज उनके पैतृक गांव पिठोरिया से कई ऐसे जवान हैं जो देश की सेवा में लगे हुए हैं. नागेश्वर महतो की ही प्रेरणा से आज झारखंड के कई युवा एयरफोर्स, नेवी, इंडियन आर्मी जैसी सेनाओं में तैनात हैं. आज भले ही शहीद नागेश्वर महतो भारत माता की गोद में समा गए हो, लेकिन लोगों के दिलों में वो आज भी जिंदा हैं. 15 अगस्त हो या फिर 26 जनवरी नागेश्वर महतो की याद में हर साल उनके पैतृक गांव में झंडा तोलन किया जाता है.

शहीद नागेश्वर महतो के छोटे भाई भीम महतो का कहना है कि उनके भाई हर युवाओं के दिलों में जिंदा हैं. उनके खोने का गम तो जरूर है, लेकिन उससे ज्यादा फक्र इस बात का होता है कि उन्होंने देश की रक्षा में अपनी जिंदगी न्योछावर कर दी. हालांकि उनको एक बात का मलाल जरूर है कि उनके घर से सेना में कोई भी नहीं जा सका. लेकिन भीम महतो का कहना है कि आने वाले दिनों में हमारे घर के नौजवान देश की सेवा करने के लिए सेना में भर्ती जरूर होंगे.

शहीद नागेश्वर महतो के सबसे छोटे बेटे आकाश कुमार की मानें, तो बचपन में ही सिर से पिता का साया उठ गया. उनके नहीं रहने का गम हमेशा रहेगा, लेकिन गर्व इस बात का होता है कि नागेश्वर महतो ने देश की सेवा में अपने प्राणों की आहुति दे दी. आकाश कुमार ने युवाओं से गुजारिश की वो भी बड़े होकर देश की सेवा करें.

Intro:रांची

कारगिल विजय दिवस सीरीज 3- शहीद नागेश्वर महतो की जीवन गाथा

बाइट--- संध्या देवी शहीद नागेश्वर महतो की पत्नी
बाइट-- भीम महतो शहीद नागेश्वर महतो का छोटा भाई
बाइट-- आकाश कुमार शहीद नागेश्वर महतो का छोटा बेटा

20 साल पहले मिली एक खबर ने सबके दिलों को कचोट के रख दिया था किसी का मांग का सिंदूर उजड़ गया था तो किसी की कोक सुनी हो गई थी तो बच्चे अनाथ हो गए थे। हम बात कर रहे हैं संयुक्त बिहार के समय झारखंड से शहीद हुए वीर सपूत शहीद नागेश्वर महतो की आज भी उन की वीर गाथा सबके जुबां पर याद है ऐसे थे शहीद वीर सपूत शहीद वीर नागेश्वर महतो, वीर सपूत का जब पार्थिक सव पहुंचा तो सबकी आंखें नम हो गई। आज 20 साल बाद भी विधवा अपनी पति की तस्वीर देख फिर उनकी आंखों से आंसुओं का सैलाब बह निकला। पति का खोने का गम तो है लेकिन उससे ज्यादा फक्र इस बात की है कि उसके पति भारत माता के सेवा में खुद को बलिदान कर देश के लिए शहीद हो गया ।पत्नी और बेटे की आंखों से निकले आंसू की धारा एक साथ बह निकली शहीद अपने पीछे पत्नी और तीन बेटे को छोड़ खुद भारत माता के लिए शहीद हो गए कई साल से दिल में दबे कसक भी है जो रह-रह कर एक सवाल के रूप में उभरती थी कि आखिर कब होगी युद्ध में शहीद परिवारों की ख्वाहिश पूरी। आखिर कब उन शहीदों को मिलेगा उचित सम्मान आज भी उस सवाल का जवाब नहीं मिला है।


Body:भारत पाकिस्तान के बीच 1999 के कारगिल युद्ध की लड़ाई में हुए शहीद संयुक्त बिहार के पहले शहीद ,शहीद नागेश्वर महतो की वीर गाथा आज भी सबकी जुबां पर याद है शहीद नागेश्वर महतो की पत्नी संध्या देवी ने कहा कि मेरे पति कारगिल युद्ध में शहीद हो गए थे जो संयुक्त बिहार झारखंड के पहले शहीद थे,उस समय के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेई ने शहीद के परिवारों को सम्मान में कई घोषणाएं की थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री राबड़ी देवी आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने भी शहीद परिवार से मिलकर कई घोषणाएं की लेकिन झारखंड बिहार अलग होने के बाद सभी घोषणाएं धीरे-धीरे भुला दिया गया। राज्य सरकार और केंद्र सरकार ने महज एक पेट्रोल पंप देकर जख्मों पर मरहम तो जरूर लगा है उसके बाद काफी घोषणाएं पर उदासीन देखते हुए चुप्पी साध ली। जिसके बाद राज्य में कई सरकारें आई और चली गई लेकिन शहीद परिवारों के आंसुओं को कोई भी नहीं पोछा, घोषणाएं के बावजूद भी अब तक कारगिल में हुए वीर सपूत शहीद नागेश्वर महतो की आदमकद प्रतिमा अब तक नहीं लगी है ना ही उसके परिवार से किसी को नौकरी मिला है। शहीद की विधवा ने कहा कि 26 जनवरी 15 अगस्त के मौके पर शहीदों के सम्मान में सरकार घोषणाएं करती है लेकिन अब तक की गई तमाम घोषणाएं कब पूरी होगी इसका जवाब देने वाला कोई नहीं।


Conclusion:1999 के कारगिल युद्ध में मेरे पति ने अपने प्राणों की आहुति दी थी शहीदों का पार्थिव शरीर जब रांची आया तो हर आंख नम थी और जांबाज की शहादत को ताउम्र ना बुलाने की कसमे खाई गई लेकिन समय बीता तो जाबाजो की सहादत भूल गए शहादत पर घोषणाएं तो हुई लेकिन सम्मान अब भी बाकी है। सरकार ने शहर में शहीद की प्रतिमा लगाने का वादा किया था लेकिन उसे आज तक लगाने वाला कोई नहीं मिला वो कहती है कि नेताओं से लेकर अफसरों तक कई बार पत्र लिखकर प्रतिमा लगाने की मांग की है लेकिन इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया सरकार की ओर से एक पेट्रोल पंप दिया गया है और हाल के दिनों में उनके नाम से सड़क का नामकरण कर का उद्घाटन किया गया है लेकिन शहीद की प्रतिमा आज भी स्थापित होने का इंतजार कर रही है।


वही उसके सबसे छोटा बेटा अकाश कुमार ने कहा कि पिता का खोने का दर्द बहुत बड़ा होता है लेकिन उससे ज्यादा फक्र की बात होती है कि उनके वजह से आज कहीं भी सर उठा कर खड़ा हो सकते हैं उसके पिता देश के लिए शहीद हुए हैं और हर युवा को देश के प्रति निष्ठा रखने की जरूरत है बरसों से एक मांग है कि उनकी एक आदमकद प्रतिमा लगाए जाए ताकि आने वाले पीढ़ी उनकी वीरगाथा को जान सके
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