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क्या इस बार 'नाला' में खिलेगा कमल या जेएमएम करेगा देखरेख, सीटिंग विधायक से खास बातचीत - Jharkhand Assembly Election

नाला विधानसभा सीट पर सीपीआई का गढ़ माना जाता है. सीपीआई के नेता विशेश्वर खां यहां से 9 बार विधायक रहे थे. 2014 में जेएमएम के रविंद्र नाथ महतो बीजेपी को फिर से हराकर इस सीट पर कब्जा जमाया है. उनका दावा है कि नाला की जनता उन्हें फिर से जीताएगी.

विधायक रविंद्र नाथ महतो
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Published : Oct 31, 2019, 3:19 PM IST

Updated : Oct 31, 2019, 10:52 PM IST

रांचीः संथाल परगना प्रमंडल के जामताड़ा जिले में नाला विधानसभा क्षेत्र है. पश्चिम बंगाल के बिरभूम से सटा यह इलाका कभी कोयला खनन के लिए भी मशहूर था. लेकिन 90 के दशक आते-आते सभी खदानें बंद हो गईं. अब यहां के लोग पूरी तरह से कृषि और मजदूरी पर आश्रित हैं. स्वास्थ्य व्यवस्था लचर है.

रविंद्र नाथ महतो से खास बातचीत

इस इलाके के लोग बंगला भाषा बोलते हैं. जाहिर है यहां पश्चिम बंगाल का प्रभाव है. शायद यही वजह है कि राज्य गठन से पहले तक नाला विधानसभा सीट पर सीपीआई का कब्जा हुआ करता था. यहां से सीपीआई के विशेश्वर खां लंबे समय तक जीतते रहे, लेकिन अब राजनीति बदली है. यहां सीपीआई पीछे जा चुकी है. अब मुकाबला बीजेपी और जेएमएम के बीच होता है.

2005 में झारखंड में हुए पहले विधानसभा चुनाव के वक्त जेएमएम की टिकट पर रवींद्र नाथ महतो ने बीजेपी के सत्यानंद झा बाटुल को शिकस्त दी थी, लेकिन 2009 में बीजेपी के सत्यानंद झा बाटुल ने रवींद्र नाथ महतो को हराकर तत्कालीन सरकार में कृषि मंत्री की कुर्सी हासिल की थी. उनकी दो शादी के कारण बाटुल विवादों में रहे. जिसका खामियाजा उन्हें 2014 के चुनाव में भुगतना पड़ा.

ये भी पढ़ें- मंत्री नीरा यादव ने ईटीवी भारत से की बेबाक बातचीत, उपलब्धियों के बीच कमियों को भी किया स्वीकार

रवींद्र नाथ महतो का नाला पर कब्जा
इस वक्त इस सीट पर जेएमएम के रवींद्र नाथ महतो का कब्जा है. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान रवींद्र नाथ महतो ने स्वीकार किया कि नाला में समस्याओं की फेहरिस्त काफी लंबी है जिसे वह दूर करने का काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि उनकी पहल से कई स्कूल प्लस-टू में अपग्रेड हुए. कई जगह सरकारी अस्पताल खुले. मुख्यालय से जोड़ने के लिए सड़कों का निर्माण हुआ. विधायक रवींद्र महतो ने कहा कि उन्होंने अपने एमएलए फंड की ज्यादातर राशि पेयजल की समस्या दूर करने और पीसीसी सड़कों के निर्माण में खर्च की है.

नाला में मजदूरी के लिए पलायन करते हैं लोग
नाला विधानसभा क्षेत्र एक पिछड़े इलाके में शुमार है. पश्चिम बंगाल की सीमा पर होने के कारण यहां के लोग मजदूरी करने के लिए चले जाते हैं. पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती इलाकों में बंद कोयला खदानों में यहां के लोग मजदूरी करते हैं. जान जोखिम में डालकर कोयला निकालते हैं. इसके बदले वहां के ठेकेदार इन्हें पैसे देने में कोई कमी नहीं करते.

ये भी पढ़ें- क्या इस बार भी किंग मेकर की भूमिका में होंगे बाबूलाल, गठबंधन की रूप-रेखा पर वेट एंड वॉच की स्थिति में JVM

लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मिली थी बढ़त
दुमका लोकसभा क्षेत्र में नाला विधानसभा क्षेत्र आता है. 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में यहां से बीजेपी को अप्रत्याशित बढ़त मिली थी. लिहाजा, दुमका में जेएमएम सुप्रीमो शिबू सोरेन के हराने में नाला विधानसभा की जनता ने बड़ी भूमिका निभाई, लेकिन सीटिंग विधायक रवींद्र महतो का मानना है कि विधानसभा चुनाव में लोग स्थानीय मुद्दों को तवज्जो देते हैं. उन्होंने कहा कि बीजेपी के 65 पार का नारा हवाबाजी साबित होगा. जेएमएम के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने सरकार की खामियों की मजबूती से उठाया है. इधर, राज्य सरकार की पहल से नाला और दुमका के बीच रेल लाइन जोड़ना का रास्ता साफ होने से बीजेपी को माइलेज मिलने की संभावना है.

रांचीः संथाल परगना प्रमंडल के जामताड़ा जिले में नाला विधानसभा क्षेत्र है. पश्चिम बंगाल के बिरभूम से सटा यह इलाका कभी कोयला खनन के लिए भी मशहूर था. लेकिन 90 के दशक आते-आते सभी खदानें बंद हो गईं. अब यहां के लोग पूरी तरह से कृषि और मजदूरी पर आश्रित हैं. स्वास्थ्य व्यवस्था लचर है.

रविंद्र नाथ महतो से खास बातचीत

इस इलाके के लोग बंगला भाषा बोलते हैं. जाहिर है यहां पश्चिम बंगाल का प्रभाव है. शायद यही वजह है कि राज्य गठन से पहले तक नाला विधानसभा सीट पर सीपीआई का कब्जा हुआ करता था. यहां से सीपीआई के विशेश्वर खां लंबे समय तक जीतते रहे, लेकिन अब राजनीति बदली है. यहां सीपीआई पीछे जा चुकी है. अब मुकाबला बीजेपी और जेएमएम के बीच होता है.

2005 में झारखंड में हुए पहले विधानसभा चुनाव के वक्त जेएमएम की टिकट पर रवींद्र नाथ महतो ने बीजेपी के सत्यानंद झा बाटुल को शिकस्त दी थी, लेकिन 2009 में बीजेपी के सत्यानंद झा बाटुल ने रवींद्र नाथ महतो को हराकर तत्कालीन सरकार में कृषि मंत्री की कुर्सी हासिल की थी. उनकी दो शादी के कारण बाटुल विवादों में रहे. जिसका खामियाजा उन्हें 2014 के चुनाव में भुगतना पड़ा.

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रवींद्र नाथ महतो का नाला पर कब्जा
इस वक्त इस सीट पर जेएमएम के रवींद्र नाथ महतो का कब्जा है. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान रवींद्र नाथ महतो ने स्वीकार किया कि नाला में समस्याओं की फेहरिस्त काफी लंबी है जिसे वह दूर करने का काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि उनकी पहल से कई स्कूल प्लस-टू में अपग्रेड हुए. कई जगह सरकारी अस्पताल खुले. मुख्यालय से जोड़ने के लिए सड़कों का निर्माण हुआ. विधायक रवींद्र महतो ने कहा कि उन्होंने अपने एमएलए फंड की ज्यादातर राशि पेयजल की समस्या दूर करने और पीसीसी सड़कों के निर्माण में खर्च की है.

नाला में मजदूरी के लिए पलायन करते हैं लोग
नाला विधानसभा क्षेत्र एक पिछड़े इलाके में शुमार है. पश्चिम बंगाल की सीमा पर होने के कारण यहां के लोग मजदूरी करने के लिए चले जाते हैं. पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती इलाकों में बंद कोयला खदानों में यहां के लोग मजदूरी करते हैं. जान जोखिम में डालकर कोयला निकालते हैं. इसके बदले वहां के ठेकेदार इन्हें पैसे देने में कोई कमी नहीं करते.

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लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मिली थी बढ़त
दुमका लोकसभा क्षेत्र में नाला विधानसभा क्षेत्र आता है. 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में यहां से बीजेपी को अप्रत्याशित बढ़त मिली थी. लिहाजा, दुमका में जेएमएम सुप्रीमो शिबू सोरेन के हराने में नाला विधानसभा की जनता ने बड़ी भूमिका निभाई, लेकिन सीटिंग विधायक रवींद्र महतो का मानना है कि विधानसभा चुनाव में लोग स्थानीय मुद्दों को तवज्जो देते हैं. उन्होंने कहा कि बीजेपी के 65 पार का नारा हवाबाजी साबित होगा. जेएमएम के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने सरकार की खामियों की मजबूती से उठाया है. इधर, राज्य सरकार की पहल से नाला और दुमका के बीच रेल लाइन जोड़ना का रास्ता साफ होने से बीजेपी को माइलेज मिलने की संभावना है.

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रांचीः संथाल परगना प्रमंडल के जामताड़ा जिले में नाला विधानसभा क्षेत्र है. पश्चिम बंगाल के बिरभूम से सटा यह इलाका कभी कोयला खनन के लिए भी मशहूर था. लेकिन 90 के दशक आते-आते सभी खदानें बंद हो गईं. अब यहां के लोग पूरी तरह से कृषि और मजदूरी पर आश्रित हैं. स्वास्थ्य व्यवस्था लचर है. 



इस इलाके के लोग बंगला भाषा बोलते हैं. जाहिर है यहां पश्चिम बंगाल का प्रभाव है. शायद यही वजह है कि राज्य गठन से पहले तक नाला विधानसभा सीट पर सीपीआई का कब्जा हुआ करता था. यहां से सीपीआई के विशेश्वर खां लंबे समय तक जीतते रहे, लेकिन अब राजनीति बदली है. यहां सीपीआई पीछे जा चुकी है. अब मुकाबला बीजेपी और जेएमएम के बीच होता है.

 

2005 में झारखंड में हुए पहले विधानसभा चुनाव के वक्त जेएमएम की टिकट पर रवींद्र नाथ महतो ने बीजेपी के सत्यानंद झा बाटुल को शिकस्त दी थी, लेकिन 2009 में बीजेपी के सत्यानंद झा बाटुल ने रवींद्र नाथ महतो को हराकर तत्कालीन सरकार में कृषि मंत्री की कुर्सी हासिल की थी. उनकी दो शादी के कारण बाटुल विवादों में रहे. जिसका खामियाजा उन्हें 2014 के चुनाव में भुगतना पड़ा. 



जेवीएम के रवींद्र नाथ महतो नाला पर कब्जा 

इस वक्त इस सीट पर जेवीएम के रवींद्र नाथ महतो का कब्जा है. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान रवींद्र नाथ महतो ने स्वीकार किया कि नाला में समस्याओं की फेहरिस्त काफी लंबी है जिसे वह दूर करने का काम कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि उनकी पहल से कई स्कूल प्लस-टू में अपग्रेड हुए. कई जगह सरकारी अस्पताल खुले. मुख्यालय से जोड़ने के लिए सड़कों का निर्माण हुआ. विधायक रवींद्र महतो ने कहा कि उन्होंने अपने एमएलए फंड की ज्यादातर राशि पेयजल की समस्या दूर करने और पीसीसी सड़कों के निर्माण में खर्च की है.



नाला में मजदूरी के लिए पलायन करते हैं लोग

नाला विधानसभा क्षेत्र एक पिछड़े इलाके में शुमार है. पश्चिम बंगाल की सीमा पर होने के कारण यहां के लोग मजदूरी करने के लिए चले जाते हैं. पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती इलाकों में बंद कोयला खदानों में यहां के लोग मजदूरी करते हैं. जान जोखिम में डालकर कोयला निकालते हैं. इसके बदले वहां के ठेकेदार इन्हें पैसे देने में कोई कमी नहीं करते. 



लोकसभा चुनाव में बीजेपी को मिली थी बढ़त

दुमका लोकसभा क्षेत्र में नाला विधानसभा क्षेत्र आता है. 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में यहां से बीजेपी को अप्रत्याशित बढ़त मिली थी. लिहाजा, दुमका में जेएमएम सुप्रीमो शिबू सोरेन के हराने में नाला विधानसभा की जनता ने बड़ी भूमिका निभाई, लेकिन सीटिंग विधायक रवींद्र महतो का मानना है कि विधानसभा चुनाव में लोग स्थानीय मुद्दों को तवज्जो देते हैं. उन्होंने कहा कि बीजेपी के 65 पार का नारा हवाबाजी साबित होगा. जेएमएम के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने सरकार की खामियों की मजबूती से उठाया है. इधर, राज्य सरकार की पहल से नाला और दुमका के बीच रेल लाइन जोड़ना का रास्ता साफ होने से बीजेपी को माइलेज मिलने की संभावना है.

 


Conclusion:
Last Updated : Oct 31, 2019, 10:52 PM IST
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