रांचीः कोरोना की तीसरी लहर (Third Wave of Corona) की आशंका के बीच झारखंड में नक्सली संगठनों के लिए पुलिस ने बड़ा ऑफर (Police offered Naxalites) दिया है. वैसे नक्सली जो हथियार डालकर मुख्यधारा में लौटेंगे, उनके इलाज की सारी व्यवस्था झारखंड पुलिस की तरफ से की जाएगी. इसके लिए पुलिस ने जेल में बंद कैदियों का भी हवाला दिया गया कि जेल में 90 प्रतिशत वैक्सीनेसन (Vaccination) हो चुका है.
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कोरोना (Corona) की मार देश-दुनिया में हर तबके पर पड़ी है. सुविधाओं से दूर दुर्गम जंगल और बीहड़ में रहने वाले नक्सलियों ने भी संक्रमण से अपनी जान गंवाई है. भाकपा माओवादियों की सेंट्रल कमिटी (Central Committee of CPI-Maoists) ने भी माना है कि उन्हें बीमारी की वजह से काफी नुकसान उठाना पड़ा है. पत्र में उन्होंने बीमारी से कई नक्सलियों की मौत का जिक्र भी किया है. जिसमें केंद्रीय कमिटी सदस्य और तेलंगाना राज्य कमिटी (Telangana State Committee) के यापा नारायणा (Yapa Narayana) की मौत भी 21 जून 2021 को कोरोना वायरस (Corona Virus) के चलते हुए, इसका भी जिक्र है.
पुलिस की बड़ी पेशकश
आतंक का पर्याय बने नक्सली संगठन अब कोविड-19 (Covid-19) के संक्रमण की तीसरे लहर की आशंका के बीच दहशत में हैं. यूं तो पूरा देश कहें या पूरी दुनिया ही कोरोना की तीसरे लहर की आशंका के बीच दहशत में हैं. लेकिन जंगल में रहकर चुनी हुई सरकार को हटाकर सत्ता में बैठने का ख्वाब देखने वाले माओवादियों (Maoists) का हाल कोरोना ने बेहाल कर दिया है. हालांकि तीसरी लहर के पहले नक्सलियों के पास एक गोल्डन चांस है, खुद की जान बचाने का. झारखंड पुलिस मुख्यालय (Jharkhand Police Headquarters) की तरफ से नक्सलियों को कोरोना से बचकर जिंदगी गुजारने का बड़ा ऑफर दिया गया है. शर्त बस यही है कि वो मुख्यधारा में लौट आते हैं तो उनके इलाज की सारी व्यवस्था पुलिस की तरफ से की जाएगी.
कहां कर सकते संपर्क हैं
प्रदेश में नक्सली जिस भी जिला या इलाके में हों, वो अपने नजदीकी थाना में सीधे संपर्क कर सकते हैं. अगर किसी बात की शंका है तो वो सीधे मुख्यालय से संपर्क कर खुद को कानून के हवाले कर सकते हैं. झारखंड पुलिस के आईजी अभियान अमोल होमकर ने बताया कि नक्सली संगठन लोकल थाना (Local Police Station) से लेकर पुलिस मुख्यालय (Police Headquarters) तक किसी से भी संपर्क कर मुख्यधारा में जुड़ सकते हैं. उन्होंने कहा कि वह मुख्यधारा से जुड़ने के लिए पहले आत्मसमर्पण (Surrender) करें, उनके इलाज की सारी व्यवस्था पुलिस की ओर से की जाएगी.
जेल में 90 प्रतिशत लोगों का वैक्सीनेशन
झारखंड के अलग-अलग जेलों में बंद लगभग 1000 से अधिक नक्सली कैडरों को वैक्सीन लगाई जा चुकी है. आत्मसमर्पण कर चुके कुख्यात नक्सली कमांडर कुंदन पाहन (Naxalite Commander Kundan Pahan) हो या फिर बड़ा विकास, सभी जेल में रहते हुए वैक्सीन का दोनों डोज ले चुके हैं. इसके अलावा झारखंड के सभी जिलों में 90% तक कैदियों को वैक्सीनेट किया जा चुका है.
पुलिस का अनुमान आत्मसमर्पण में आएगी तेजी
झारखंड पुलिस की इस पेशकश ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि नक्सली अपनी जान बचाने के लिए पुलिस की इस पेशकश के साथ आ सकते हैं. ताकि वो कोरोना जैसी जानलेवा बीमारी से अपनी जान बचा सके. झारखंड पुलिस के अधिकारियों को उम्मीद है कि कोरोना की तीसरी लहर के पहले कई बड़े नक्सली आत्मसमर्पण कर सकते हैं. माओवादियों के समर्पण कि शुरुआत हजारीबाग से हो चुकी है. आज यानी 8 जुलाई 2021 को हजारीबाग में तीन नक्सलियों ने पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया है. पुलिस मुख्यालय को उम्मीद है कि आने वाले दिनों में इस नई आत्मसमर्पण नीति की पेशकश (Surrender Policy Offer) के कहत सरेंडर करने वाले नक्सलियों की संख्या बढ़ेगी.
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कोरोना की दूसरी लहर में नक्सली संगठव को भारी नुकसान
झारखंड में नक्सली संगठनों को कोरोना के कारण काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है. भाकपा माओवादियों के सेंट्रल कमिटी की ओर से जारी पत्र में यह भी जिक्र है कि माओवादियों को बीमारी की वजह से काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है. खुफिया एजेंसियों की ओर से भी नक्सली संगठनों पर कोरोना के प्रभाव को लेकर एक रिपोर्ट केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजी गई है.
रिपोर्ट के मुताबिक, झारखंड में सरायकेला-खरसांवा, रांची और चाईबासा के ट्राइजंक्सन में कोरोना के कारण दो माओवादी जोनल कमांडर की मौत हो चुकी है. वहीं दस से अधिक माओवादी दस्ते के कैडर कोरोना पॉजिटिव हैं. जानकारी के मुताबिक, कोविड के कारण छतीसगढ़ और झारखंड में माओवादी संगठन को बड़ा नुकसान हुआ है. बस्तर में कोविड के कारण अबतक 13 से अधिक माओवादी अपनी जान गवां चुके हैं.
इलाज के लिए बाहर निकलना हुआ मुश्किल
झारखंड में सक्रिय नक्सली संगठनों में कई कैडर कोरोना का शिकार हुए, जिनका इलाज ग्रामीण इलाकों में रहने वाले तथाकथित चिकित्सकों ने किया. इलाज के दौरान कई लोगों की मौत भी हुई. लेकिन मौत की खबर जंगल से बाहर नहीं गई. संक्रमण के दौरान वैसे इलाकों में पुलिस का मूवमेंट भी काफी बढ़ गया था, जहां नक्सलियों के होने का संदेह था. इस वजह से नक्सली बीमार होने के बावजूद अपना इलाज नहीं करवा पाए.
आधार कार्ड की वजह से नहीं लगा टीका
नक्ललियों को कोरोना का टीका ना लगने की वजह से एक और वजह सामने आई है. ऐसा नहीं है कि नक्सलियों ने अपने दम पर वैक्सीन लेने की कोशिश नहीं की. उन्होंने सुदूर ग्रामीण इलाके से टीकाकरण केंद्र को चुना भी. लेकिन उनका आधार कार्ड लिंक (Aadhar Card Link) होने की वजह से और पकड़े जाने के डर से उनके टीका लेने के मंसूबे पर पानी फिर गया.
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कैडरों से नहीं मिल रहे नेता
खुफिया एजेंसियों (Intelligence Agencies) के मुताबिक, कोरोना की दूसरी लहर के बाद माओवादियों के बड़े नेता अपने छोटे कैडरों से मिल नहीं रहे हैं. माओवादियों के बड़े नेताओं ने कैडरों से मुलाकात बंद कर दी है. मिली जानकारी के मुताबिक माओवादियों ने कोविड-19 के खतरे को लेकर दस्तों के स्वरूप में भी बदलाव कर दिया है. उन्होंने बीमारी की वजह से एक दूरी बना ली है ताकि खुद संक्रमण से बचे रह सके.
लेवी देने वालों से भी संपर्क नहीं
पुलिस रिपेार्ट के मुताबिक, भाकपा माओवादी ना सिर्फ अपने कैडर (Cadre) बल्कि लेवी देने वालों के भी संपर्क में नहीं आ रहे. जिससे संगठन को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है. खुफिया एजेंसियों को मिली इनपुट के मुताबिक, सरायकेला-खरसावां, चाईबासा और रांची के अलग-अलग ग्रामीण क्षेत्रों के अस्पताल में माओवादियों ने अपना इलाज भी कराया है. केंद्रीय खुफिया विभाग को भेजी गई रिपोर्ट में बताया गया है कि कोरोना के कारण संक्रमित नक्सलियों की संख्या बढ़ भी सकती है या उनकी मौत का आंकड़ा भी बढ़ सकता है. राज्य पुलिस के अधिकारियों के मुताबिक, मृत नक्सलियों की संख्या के बारे में सत्यापन किया जा रहा है.
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नक्सलियों की ओर से जारी पत्र में क्या है
माओवादियों की ओर से जारी किए गए पत्र के मुताबिक, पिछले एक साल में देशभर में 160 माओवादियों की मौत पुलिस मुठभेड़ या अन्य वजहों से हुई है. माओवादियों की ओर से ही जारी आंकड़ों की मानें तो झारखंड-बिहार में 11 कैडर मारे गए हैं, सबसे अधिक मौते दंडकारण्य में हुई है, यहां 101 नक्सली कैडर मारे गए हैं. इसके अलावा ओडिशा में 14, महाराष्ट्र-मध्य प्रदेश-छत्तीसगढ़ में 8, आंध्र-ओडिशा सीमा क्षेत्र में 11, पश्चिमी घाटी में एक और तेलंगाना में 14 कॉमरेड (Comrade) शहीद हुए, 160 में 30 महिला नक्सली भी शामिल हैं, जिनकी मौत हुई है.