रांचीः झारखंड हाई कोर्ट की ओर से स्वतः संज्ञान लिए गए दो मामलों की गुरुवार को सुनवाई हुई. प्रदेश में अदालतों की सुरक्षा के मामले पर कोर्ट ने सरकार से सुरक्षा की प्रगति रिपोर्ट मांगी है. इसके अलावा राज्य के सरकारी अस्पताल की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था के मामले में लिए गए स्वत: संज्ञान याचिका पर झारखंड हाई कोर्ट ने सरकार के जवाब पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की है.
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झारखंड हाई कोर्ट सहित राज्य के सभी जिलों के न्यायालय और उपमंडल न्यायालय की सुरक्षा व्यवस्था ठीक करने के मामले में लिए गए स्वतः संज्ञान याचिका पर हाई कोर्ट में सुनवाई हुई. अदालत ने इस पर सख्त रुख अपनाते हुए राज्य सरकार को शीघ्र सुरक्षा व्यवस्था ठीक करने का निर्देश दिया है. इसके अलावा उन्हें 2 सप्ताह में न्यायालयों की सुरक्षा व्यवस्था में अब तक क्या-क्या कार्य किया गया है, इसकी अद्यतन प्रगति रिपोर्ट अदालत में पेश करने को कहा है. सरकार का जवाब आने के बाद मामले पर आगे सुनवाई की जाएगी.
झारखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डॉ. रवि रंजन और न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत में इस मामले पर सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान राज्य सरकार की ओर से बताया गया कि अदालतों की सुरक्षा के लिए संशोधित डीपीआर तैयार किया गया है. संबंघित विभाग को इसके अनुमोदन के लिए भेजा गया है, अनुमोदन शुरू होते ही आगे की कार्यवाही की जाएगी. अदालतों की सुरक्षा के लिए हाईकोर्ट में दो साल पहले से जनहित याचिका दायर की गयी है.
पूर्व में इस पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने सभी अदालतों में सीसीटीवी कैमरा, वॉयस रिकॉर्ड की सुविधा के साथ लगाने का निर्देश दिया है. अदालतों के अंदर और बाहर सीसीटीवी कैमरा लगाने को कहा गया है. इसके अलावा निचली अदालतों के कार्यालयों में भी सीसीटीवी कैमरे लगेंगे. अदालत के बाहर लगे कैमरे की निगरानी जिला प्रशासन करेगा जबकि अदालतों और कार्यालयों के अंदर लगे कैमरे की निगरानी हाई कोर्ट करेगा, मामले की अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद होगी.
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राज्य के सरकारी अस्पताल की लचर व्यवस्था पर सरकार के जवाब से हाई कोर्ट नाराज
राज्य के सरकारी अस्पताल की लचर व्यवस्था मामले में लिए गए स्वत: संज्ञान याचिका पर झारखंड हाई कोर्ट में सुनवाई हुई. अदालत ने राज्य सरकार के जवाब पर कड़ी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि कोर्ट के द्वारा पूछा जाता है कि अस्पतालों की वर्तमान स्थिति क्या है तो सरकार के द्वारा आगामी योजना बताई जा रही है. अदालत ने सरकार को फिर से मामले में जवाब पेश करने को कहा है. कोर्ट ने अपने मामले में सरकार को यह बताने को कहा है कि वर्तमान में कितने चिकित्सक नियुक्त हैं? कितने चिकित्सक के पद रिक्त हैं? अस्पताल में क्या-क्या सुविधाएं हैं? सरकारी अस्पतालों को कितना अनुदान दिया जाता है? 21 अक्टूबर तक तमाम बिंदु पर जवाब पेश करने को कहा है.
झारखंड हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डॉ. रवि रंजन और न्यायाधीश सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत मे इस मामले पर सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान न्यायाधीश ने सरकारी अधिवक्ता से जानना चाहा कि पिछली सुनवाई के दौरान अस्पताल की वर्तमान स्थिति की जानकारी मांगी गई थी तो सरकार के द्वारा यह आगामी योजनाएं बनाकर क्यों पेश की गई है. ये योजनाएं कब तक पूरी होंगी इसकी समयबद्ध जानकारी नहीं दी गयी है. क्या जब तक नए अस्पताल नहीं बन जाएंगे, मरीजों को अस्पतालों में अपने हाल पर छोड़ दिया जाएगा. अस्पतालों में मरीजों का इलाज अभी-भी जमीन पर हो रहा है, उन्हें सभी सुविधाएं नहीं मिल रही है. वर्तमान स्थिति से निपटने के लिए सरकार क्या कर रही है? और क्या कदम उठा रही है? इसकी जानकारी देने में सरकार क्यों हिचक रही है? अदालत ने 21 अक्टूबर तक अस्पतालों की बदहाली दूर करने पर सरकार को रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया.
इस मामले पर सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से यह बताया गया कि एमजीएम अस्पताल में अतिरिक्त एक हजार बेड बढ़ाने की योजना है. इसके अलावा देवघर, पलामू, हजारीबाग में भी मेडिकल कॉलेज खोला गया है, यहां भी भविष्य में क्षमता बढ़ेगी. इस पर अदालत ने नाराजगी जाहिर की और वर्तमान स्थिति की जानकारी मांगी. स्वास्थ्य सचिव को यह बताने को कहा कि राज्य के सरकारी अस्पतालों को कितना अनुदान मिलता है? अस्पतालों में क्या क्या सुविधाएं हैं? अस्पतालों में कितने चिकित्सक हैं? और कितने पद रिक्त हैं?
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जमशेदपुर के आदित्यपुर की रहने वाली अमृता कुमारी को उसके पति ने आग लगाकर जला दिया और फरार हो गया. कुछ लोगों ने उसे एमजीएम अस्पताल में भर्ती कराया. अस्पताल ने सिर्फ एक बेड देकर इलाज की खानापूर्ति कर दी. 90 फीसदी से अधिक जली इस महिला को बर्न वार्ड में भर्ती नहीं किया गया, इस कारण महिला की मौत हो गयी थी. उसके बाद अदालत ने मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए उसे जनहित याचिका में बदलकर सुनवाई करने का आदेश दिया था, उसी याचिका पर गुरुवार को सुनवाई हुई.