रांचीः झारखंड कर्मचारी चयन आयोग की ओर बनाये गए संशोधित नियुक्ति नियामवली के खिलाफ दायर याचिका पर बुधवार को झारखंड हाई कोर्ट की डबल बेंच में सुनवाई हुई. राज्य सरकार की ओर से हाई कोर्ट के आदेश के आलोक में जवाब पेश किया गया. लेकिन अदालत ने राज्य सरकार के जवाब पर असंतोष व्यक्त करते हुए कई बिंदुओं पर आपत्ति जाहिर की है. अब मामले की अलगी सुनवाई 20 जुलाई को निर्धारित की गई है.
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झारखंड हाई कोर्ट के मुख्य नयायाधीश डॉ रवि रंजन और न्ययाधीश सुजीत नारायण प्रसाद की अदालत में इस मामले पर सुनवाई हुई. सरकार की ओर से सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता मुकुल रस्तोगी ने पक्ष रखा. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सरकार के अधिवक्ता से जानना चाहा कि राज्य कर्मचारी चयन आयोग के माध्यम से होने वाली परीक्षा में हिंदी और अंग्रेजी को हटा कर उर्दू को शामिल किया गया. इसको लेकर राज्य सरकार ने डाटाबेस तैयार किया है. क्या कुछ कमेटी का गठन किया गया. कमेटी ने क्या अपना मंतव्य दिया है. इससे संबंधित सभी रिकॉर्ड अदालत में बिंदुवार पेश करें. इस पर सरकार की ओर से स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई. अदालत ने उन्हें समय देते हुए जवाब पेश करने का निर्देश दिया है.
प्रार्थी रमेश हांसदा की ओर से दायर याचिका में संशोधित नियमावली को चुनौती दी गयी है. याचिका में कहा गया है कि नयी नियमावली में राज्य के संस्थानों से ही दसवीं और प्लस टू की परीक्षा पास करने की अनिवार्य किया गया है. जो संविधान की मूल भावना और समानता के अधिकार का उल्लंघन है. वैसे उम्मीदवार जो राज्य के निवासी होते हुए भी राज्य के बाहर से पढ़ाई किए हों, उन्हें नियुक्ति परीक्षा से नहीं रोका जा सकता है. नयी नियमावली में संशोधन कर क्षेत्रीय एवं जनजातीय भाषाओं की श्रेणी से हिंदी और अंग्रेजी को बाहर कर दिया गया और उर्दू, बांग्ला और उड़िया को रखा गया है. उर्दू को जनजातीय भाषा की श्रेणी में रखा जाना राजनीतिक फायदे के लिए है. इस स्थिति में किसी खास वर्ग को सरकारी नौकरी में अधिक अवसर देना और हिंदी भाषी अभ्यर्थियों के अवसर में कटौती करना संविधान की भावना के अनुरूप नहीं है. इसलिए नई नियमावली में निहित दोनों प्रावधानों को रद्द की जाए.