रांची: 29 अगस्त को पूरा देश हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद की याद में खेल दिवस के रूप में मनाता है. उनकी सफलता में जिस शख्स का अहम योगदान था वो थे झारखंड के खूंटी जिले में जन्मे जयपाल सिंह मुंडा. आज जयपाल सिंह मुंडा यानि मरांग गोमके को लोग भूलते जा रहे हैं. जबकि हॉकी में इनका योगदान अविश्वसनीय रहा है. इन्हीं की कप्तानी में 1928 के ओलंपिक में भारत ने पहला स्वर्ण पदक जीता था.
झारखंड की अस्मिता इसकी पहचान को धरातल पर उतारने वाले जन्मजात मरांग गोमके, ग्रेट लीडर जयपाल सिंह मुंडा का खेल के प्रति समर्पण भुलाया नहीं जा सकता है. 29 अगस्त को पूरा देश खेल दिवस मनाता है. मेजर ध्यानचंद की जयंती के अवसर पर इस विशेष दिवस को मनाया जाता है. हालांकि मेजर ध्यानचंद के कप्तान रहे जयपाल सिंह मुंडा को लोग भूलते जा रहे हैं. हॉकी के प्रति इनकी लगन और योगदान को भुला पाना संभव नहीं है.
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झारखंड अलग राज्य की परिकल्पना
3 जनवरी 1903 को रांची से सटे खूंटी जिले के टकरा पाहन टोली गांव में इनका जन्म हुआ था. बचपन से ही इनमें लीडरशिप की क्वालिटी कूट-कूट कर भरी थी. झारखंड अलग राज्य की परिकल्पना भी इसी ग्रेट लीडर ने ही की थी. 1928 के ओलंपिक में अपनी कप्तानी में भारतीय हॉकी टीम को स्वर्ण पदक इन्होंने ही दिलाया था. 1925 में ऑक्सफोर्ड ब्लू खिताब पाने वाले हॉकी के एकमात्र अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी जयपाल सिंह मुंडा ही थे.
ब्रिटेन भी हुआ कप्तानी का मुरीद
1928 में ओलंपिक गेम में ग्रेट ब्रिटेन द्वारा अपनी टीम की कप्तानी करने का ऑफर जयपाल सिंह मुंडा को दिया गया था. उस दौरान इस महान खिलाड़ी ने यह कहा था कि अगर वह खेलेंगे और कप्तानी करेंगे तो सिर्फ भारत के लिए ही. उस दौरान ब्रिटेन ने अपनी टीम को इस पूरे टूर्नामेंट से विदड्रॉ करा लिया. क्योंकि उन्हें डर था कि अगर इनकी कप्तानी में ब्रिटेन की टीम भारत की टीम से भिड़ती है, तो ब्रिटेन की टीम को हार का सामना जरूर करना पड़ेगा. उस दौरान भारत के खिलाफ खेलने वाली अधिकतर टीमें हार गई थी और भारत ने इस टूर्नामेंट में गोल्ड मेडल जीता था.
खिलाड़ी मानते हैं रोल मॉडल
राष्ट्रीय खेल दिवस के अवसर पर इस महान खिलाड़ी को झारखंड के राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी भी कम ही स्मरण करते हैं. हालांकि कुछ ऐसे भी खिलाड़ी हैं जो आज भी जयपाल सिंह मुंडा को अपना रोल मॉडल मानते हैं और उनसे प्रेरणा लेते हैं और वह यह भी मानते हैं कि अन्य खिलाड़ियों की तरह जयपाल सिंह मुंडा को भी सम्मान मिलना चाहिए, तब जाकर खेल दिवस सही मायने में सफल साबित होगा.