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75 की उम्र में भी शिबू की शख्सियत नहीं हुई है फीकी, आज भी किसी को दे सकते हैं मात

प्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा का नेतृत्व कर रहे सोरेन 70 के दशक से सूबे में आदिवासियों के हितों की लड़ाई लड़ रहे हैं. एकीकृत बिहार में हजारीबाग और मौजूद झारखंड के रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में जन्मे सोरेन अपनी युवावस्था में महाजनी प्रथा के खिलाफ लोगों को गोलबंद करने में लगे.

शिबू सोरेन (फाइल फोटो)
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Published : May 16, 2019, 3:09 PM IST

रांची: झारखंड की राजनीति में शिबू सोरेन एक ऐसी शख्सियत हैं जिनकी चर्चा के बिना कभी भी प्रदेश की राजनीतिक इतिहास की इबारत लिखना संभव नहीं होगा. यही वजह है कि देश और राज्य में सत्तारूढ़ बीजेपी हर बार सोरेन को शिकस्त देने की कोशिश में दुमका में 'मुंह की खाती'आ रही है. बिहार से अलग झारखंड बनने के बाद हुए लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी ने दुमका सीट पर जीत के लिए कोशिश की लेकिन अभी तक उसे सफलता नहीं मिली है.

आदिवासियों के हित की लड़ाई है सोरेन का मजबूत पक्ष
प्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा का नेतृत्व कर रहे सोरेन 70 के दशक से सूबे में आदिवासियों के हितों की लड़ाई लड़ रहे हैं. एकीकृत बिहार में हजारीबाग और मौजूद झारखंड के रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में जन्मे सोरेन अपनी युवावस्था में महाजनी प्रथा के खिलाफ लोगों को गोलबंद करने में लगे. ट्राइबल कम्युनिटी के होते हुए उन्होंने शराबबंदी और आदिवासियों को शिक्षित करने पर जोर ने उन्हें अपनी कम्युनिटी में दिशोम गुरु की उपाधि दिलवाई.


75 की उम्र के सोरेन बीजेपी के लिए बन गए हैं चुनौती
दरअसल, जिस उम्र का स्लैब के आधार पर बीजेपी ने अपनी सिटिंग एमपी का टिकट काट रही है, वहीं उसी उम्र में सोरेन बीजेपी के लिए एक चैलेंज बने हुए हैं. उनके साथ रहनेवाले लोग मानते हैं कि सोरेन एक व्यक्ति नहीं बल्कि विचारधारा हैं. यही वजह है कि इस उम्र में भी उनकी स्वीकार्यता कायम है.

ये भी पढ़ें- ओडिशा की लड़की के साथ रांची में दुष्कर्म की कोशिश, अपनी हिम्मत से ऐसे बची लड़की

सोरेन व्यक्ति नहीं एक विचारधारा हैं
झामुमो सुप्रीमो के करीब विजय सिंह कहते हैं कि सोरेन व्यक्ति नहीं एक विचारधारा हैं और इतिहास पलट कर देखें तो विचारधारा कभी भी आउटडेटेड नहीं होती है. जेपी मूवमेंट के बाद सोरेन की विचारधारा से प्रभावित होकर यहां जेएमएम में ज्वाइन करने वाले सिंह कहते हैं कि महाजनी प्रथा के विरुद्ध सोरेन का चलाया गया अभियान और आदिवासियों को हड़िया-दारु से खुद को अलग रखने की अपील अब भी प्रासंगिक है.

आदिवासियों के बीच सोरेन से जुड़ी कई कहानियां हैं प्रचलित
70 के दशक में सोरेन की छवि क्रांतिकारी के रूप में बनकर उभरी जिसने हाशिये पर जा रहे आदिवासियों की आवाज उठाई।इस वजह से अभी भी उनसे जुड़ी कई कहानियां प्रचलित हैं। दरअसल संथाल परगना इलाके में शिबू सोरेन को लेकर एक ऐसी मान्यता प्रचलित थी कि वह एक समय में कहीं से भी आ जा सकते हैं। इतना ही नहीं उनके ऊपर तीर धनुष के अलावा किसी भी शास्त्र का असर नहीं होता है यही वजह है कि वहां आदिवासी इन्हें अपना दिशोम गुरु बुलाते हैं।


तीन बार सीएम और आठ बार सांसद रह चुके हैं गुरुजी
इन सबके बीच अगर राजनीतिक स्केल से सोरेन की प्रसिद्धि को नापा जाए तो यह बात और स्पष्ट होगी. अभी तक राज्य में 10 मुख्यमंत्री बने हैं. उनमे से तीन बार सोरेन ने राज्य की कमान संभाली है. पहली बार राज्य की कमान उन्हें 2 मार्च 2005 को मिली, लेकिन उसके 10 दिन के अंदर ही इस्तीफा देना पड़ा.

राजनीतिक सफर
दोबारा 27 अगस्त 2008 से लेकर 18 जनवरी 2009 तक वह राज्य के मुख्यमंत्री रहे. उसके बाद तीसरी बार 30 दिसंबर 2009 से लेकर 31 दिसंबर 2010 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे. इतना ही नहीं 1980 के बाद 1989, 1991, 1996, 2004, 2009 और 2014 में वह दुमका से सांसद बने. वहीं 2002 में एक बार उन्हें राज्यसभा सांसद होने का भी मौका मिला. साथ ही वो ऐसे परिवार के मुखिया हैं जिसमें दो पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके हैं और फिलहाल दो विधायक और एक एमपी हैं.

ये भी पढ़ें- चारा घोटाला मामले में सुनवाई, सशरीर उपस्थित हुए 85 अभियुक्त

विवादों से भी नाता रहा है शिबू सोरेन का
ऐसा नहीं है कि सोरेन का विवादों से रिश्ता नहीं है. सोरेन पर पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की सरकार बचाने के दौरान रिश्वत लेने का आरोप भी लगा. इतना ही नहीं अपने पीए शशिनाथ झा की हत्या से भी उनका नाम जोड़ा गया. वहीं 70 के दशक में जामताड़ा जिले में चिरुडीह हत्याकांड में भी उनका नाम आया. बावजूद इसके मौजूदा दौर में सत्तारूढ़ दलों के लिए सोरेन अभी भी एक चुनौती बने हुए हैं.

रांची: झारखंड की राजनीति में शिबू सोरेन एक ऐसी शख्सियत हैं जिनकी चर्चा के बिना कभी भी प्रदेश की राजनीतिक इतिहास की इबारत लिखना संभव नहीं होगा. यही वजह है कि देश और राज्य में सत्तारूढ़ बीजेपी हर बार सोरेन को शिकस्त देने की कोशिश में दुमका में 'मुंह की खाती'आ रही है. बिहार से अलग झारखंड बनने के बाद हुए लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी ने दुमका सीट पर जीत के लिए कोशिश की लेकिन अभी तक उसे सफलता नहीं मिली है.

आदिवासियों के हित की लड़ाई है सोरेन का मजबूत पक्ष
प्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल झारखंड मुक्ति मोर्चा का नेतृत्व कर रहे सोरेन 70 के दशक से सूबे में आदिवासियों के हितों की लड़ाई लड़ रहे हैं. एकीकृत बिहार में हजारीबाग और मौजूद झारखंड के रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में जन्मे सोरेन अपनी युवावस्था में महाजनी प्रथा के खिलाफ लोगों को गोलबंद करने में लगे. ट्राइबल कम्युनिटी के होते हुए उन्होंने शराबबंदी और आदिवासियों को शिक्षित करने पर जोर ने उन्हें अपनी कम्युनिटी में दिशोम गुरु की उपाधि दिलवाई.


75 की उम्र के सोरेन बीजेपी के लिए बन गए हैं चुनौती
दरअसल, जिस उम्र का स्लैब के आधार पर बीजेपी ने अपनी सिटिंग एमपी का टिकट काट रही है, वहीं उसी उम्र में सोरेन बीजेपी के लिए एक चैलेंज बने हुए हैं. उनके साथ रहनेवाले लोग मानते हैं कि सोरेन एक व्यक्ति नहीं बल्कि विचारधारा हैं. यही वजह है कि इस उम्र में भी उनकी स्वीकार्यता कायम है.

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सोरेन व्यक्ति नहीं एक विचारधारा हैं
झामुमो सुप्रीमो के करीब विजय सिंह कहते हैं कि सोरेन व्यक्ति नहीं एक विचारधारा हैं और इतिहास पलट कर देखें तो विचारधारा कभी भी आउटडेटेड नहीं होती है. जेपी मूवमेंट के बाद सोरेन की विचारधारा से प्रभावित होकर यहां जेएमएम में ज्वाइन करने वाले सिंह कहते हैं कि महाजनी प्रथा के विरुद्ध सोरेन का चलाया गया अभियान और आदिवासियों को हड़िया-दारु से खुद को अलग रखने की अपील अब भी प्रासंगिक है.

आदिवासियों के बीच सोरेन से जुड़ी कई कहानियां हैं प्रचलित
70 के दशक में सोरेन की छवि क्रांतिकारी के रूप में बनकर उभरी जिसने हाशिये पर जा रहे आदिवासियों की आवाज उठाई।इस वजह से अभी भी उनसे जुड़ी कई कहानियां प्रचलित हैं। दरअसल संथाल परगना इलाके में शिबू सोरेन को लेकर एक ऐसी मान्यता प्रचलित थी कि वह एक समय में कहीं से भी आ जा सकते हैं। इतना ही नहीं उनके ऊपर तीर धनुष के अलावा किसी भी शास्त्र का असर नहीं होता है यही वजह है कि वहां आदिवासी इन्हें अपना दिशोम गुरु बुलाते हैं।


तीन बार सीएम और आठ बार सांसद रह चुके हैं गुरुजी
इन सबके बीच अगर राजनीतिक स्केल से सोरेन की प्रसिद्धि को नापा जाए तो यह बात और स्पष्ट होगी. अभी तक राज्य में 10 मुख्यमंत्री बने हैं. उनमे से तीन बार सोरेन ने राज्य की कमान संभाली है. पहली बार राज्य की कमान उन्हें 2 मार्च 2005 को मिली, लेकिन उसके 10 दिन के अंदर ही इस्तीफा देना पड़ा.

राजनीतिक सफर
दोबारा 27 अगस्त 2008 से लेकर 18 जनवरी 2009 तक वह राज्य के मुख्यमंत्री रहे. उसके बाद तीसरी बार 30 दिसंबर 2009 से लेकर 31 दिसंबर 2010 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे. इतना ही नहीं 1980 के बाद 1989, 1991, 1996, 2004, 2009 और 2014 में वह दुमका से सांसद बने. वहीं 2002 में एक बार उन्हें राज्यसभा सांसद होने का भी मौका मिला. साथ ही वो ऐसे परिवार के मुखिया हैं जिसमें दो पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके हैं और फिलहाल दो विधायक और एक एमपी हैं.

ये भी पढ़ें- चारा घोटाला मामले में सुनवाई, सशरीर उपस्थित हुए 85 अभियुक्त

विवादों से भी नाता रहा है शिबू सोरेन का
ऐसा नहीं है कि सोरेन का विवादों से रिश्ता नहीं है. सोरेन पर पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की सरकार बचाने के दौरान रिश्वत लेने का आरोप भी लगा. इतना ही नहीं अपने पीए शशिनाथ झा की हत्या से भी उनका नाम जोड़ा गया. वहीं 70 के दशक में जामताड़ा जिले में चिरुडीह हत्याकांड में भी उनका नाम आया. बावजूद इसके मौजूदा दौर में सत्तारूढ़ दलों के लिए सोरेन अभी भी एक चुनौती बने हुए हैं.

Intro:रांची। झारखंड की राजनीति में शिबू सोरेन एक ऐसी शख्सियत है जिनकी चर्चा के बिना कभी भी प्रदेश की राजनीतिक इतिहास की इबारत लिखना संभव नहीं होगा। यही वजह है कि देश और राज्य में सत्त्तारूढ़ बीजेपी हर बार सोरेन को शिकस्त देने की कोशिश में दुमका में 'मुंह की खाती'आ रही है। एकीकृत बिहार से अलग झारखण्ड बनने के बाद हुए लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी ने दुमका सीट पर जीत के लिए कोशिश की केकिन अभी तक उसे सफ़लता नहीं मिली है

महाजनी प्रथा का विरोध और आदिवासियों के हित की लड़ाई है सोरेन का मजबूत पक्ष
प्रदेश में प्रमुख विपक्षी दल झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के नेतृत्व कर रहे सोरेन 70 के दशक से सूबे में आदिवासियों के हितों की लड़ाई लड़ रहे हैं। एकीकृत बिहार में हजारीबाग और मौजूद झारखण्ड के रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में जन्मे सोरेन अपनी युवावस्था में महाजनी प्रथा के खिलाफ लोगों को गोलबंद करने में लगे। ट्राइबल कम्युनिटी के होते हुए उन्होंने शराब बंदी और आदिवासियों को शिक्षित करने पर जोर ने उन्हें अपनी कम्युनिटी में दिशोम गुरु की उपाधि दिलवाई।




Body:75 की उम्र के सोरेन बीजेपी के लिए बन गए हैं चुनौती
दरअसल जिस उम्र का स्लैब के आधार पर बीजेपी ने अपने सिटिंग एमपी का टिकट काट रही है वहीं उसी उम्र में सोरेन बीजेपी के लिए एक चैलेंज बने हुए हैं। उनके साथ रहनेवाले लोग मानते हैं कि सोरेन एक व्यक्ति नही बल्कि विचारधारा हैं । यही वजह है कि इस उम्र में भी उनकी स्वीकार्यता कायम है। झामुमो सुप्रीमो के करीब विजय सिंह कहते हैं कि सोरेन व्यक्ति नहीं एक विचारधारा है और इतिहास पलट कर देखें तो विचारधारा कभी भी आउटडेटेड नहीं होती है। जेपी मूवमेंट के बाद सोरेन की विचारधारा से प्रभावित होकर यहां मुंह में ज्वाइन करने वाले सिंह कहते हैं कि महाजनी प्रथा के विरुद्ध सोरेन का चलाया गया अभियान और आदिवासियों को हड़िया-दारु से खुद को अलग रखने की अपील अब भी प्रासंगिक है।

आदिवासियों के बीच सोरेन से जुड़ी कई कहानियां हैं प्रचलित
70 के दशक में सोरेन की छवि क्रांतिकारी के रूप में बनकर उभरी जिसने हाशिये पर जा रहे आदिवासियों की आवाज उठाई।इस वजह से अभी भी उनसे जुड़ी कई कहानियां प्रचलित हैं। दरअसल संथाल परगना इलाके में शिबू सोरेन को लेकर एक ऐसी मान्यता प्रचलित थी कि वह एक समय में कहीं से भी आ जा सकते हैं। इतना ही नहीं उनके ऊपर तीर धनुष के अलावा किसी भी शास्त्र का असर नहीं होता है यही वजह है कि वहां आदिवासी इन्हें अपना दिशोम गुरु बुलाते हैं।




Conclusion:तीन बार सीएम और आठ बार सांसद रह चुके हैं सोरेन
इन सबके बीच अगर राजनीतिक स्केल से सोरेन की प्रसिद्धि को नापा जाए तो यह बात और स्पष्ट होगी। अभी तक राज्य में 10 मुख्यमंत्री बने हैं। उनमे से तीन बार सोरेन ने राज्य की कमान संभाली है। पहली बार राज्य की कमान उन्हें 2 मार्च 2005 को मिली लेकिन उसके 10 दिन के अंदर ही इस्तीफा देना पड़ा। दुबारा 27 अगस्त 2008 से लेकर 18 जनवरी 2009 तक वह राज्य के मुख्यमंत्री रहे। उसके बाद तीसरी बार 30 दिसंबर 2009 से लेकर 31 दिसंबर 2010 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे। इतना ही नहीं 1980 के बाद 1989, 1991, 1996, 2004, 2009 और 2014 में वह दुमका से सांसद बने। वहीं 2002 में एक बार उन्हें राज्यसभा सांसद होने का भी मौका मिला । साथ ही वो ऐसे परिवार के मुखिया हैं जिसमें दो पूर्व मुख्यमंत्री रह चुके हैं और फिलहाल दो विधायक और एक एमपी हैं।

जबकि विवादों से भी नाता रहा है शिबू सोरेन का
ऐसा नहीं है कि सोरेन का विवादों से रिश्ता नहीं है। सोरेन के ऊपर पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की सरकार बचाने के दौरान रिश्वत लेने का आरोप भी लगा। इतना ही नहीं अपने पीए शशिनाथ झा की हत्या ने भी उनका नाम जोड़ा गया। वहीं 70 के दशक में जामताड़ा जिले में चिरुडीह हत्याकांड में भी उनका नाम आया। बावजूद इसके मौजूदा दौर में सत्तारूढ़ दलों के लिए सोरेन अभी भी एक चुनौती बने हुए हैं।
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