रांची: झारखंड की पहचान जंगल-झाड़ से होती है. झारखंड की भू-भाग के करीब 30 फीदसी क्षेत्र वन क्षेत्र में आता है. वन से मिलने वाले प्रत्यक्ष लाभ तो सभी को सामने दिखाई देते हैं लेकिन अप्रत्यक्ष लाभ के बारे में कुछ लोग ही जानते हैं. उन्हीं कुछ लोगों में शामिल हैं रांची जिले के बनलोटवा के ग्रामीण. यहां के लोग पिछले 14 साल से जंगल बचाने को लेकर अभियान चला रहे हैं, जो बेहद कारगर साबित हो रहा है.
ओरमांझी स्थित बनलोटवा गांव के लोगों ने जंगल संरक्षण के लिए 14 साल पहले इस अभियान की शुरूआत की थी. उस समय गांव के लोगों ने 365 एकड़ में फैले जंगल में अभियान शुरू किया था और महिलाओं ने वृक्षों को रक्षा सूत्र बांधकर वन के सरक्षण का संकल्प लिया था. यह परंपरा तब से चली आ रही है.
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जानकारी के अनुसार ग्रामीणों के प्रोटेक्टेड एरिया में लोग जंगल का पत्ता नहीं चुनते और सूखी लकड़ियां भी नहीं उठाते. इसकी वजह यह बताई जाती है कि सूखी पत्तियां या सूखी डाली जब नीचे गिरेंगे तो दिमक या अन्य हानिकारक किटाणु पहले सूखी पत्तियों और डाली को खायेंगे और इससे पेड़ सुरक्षित रहेगा.
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बनलोटवा गांव के वन संरक्षक शंकर महतो का कहना है कि उनके गांव से शुरू हुआ यह अभियान आस-पास के कई गांवों में भी फैल चुका है. इस गांव का खास बात यह भी है कि यह गांव नशामुक्त है. इस अभियान से ना सिर्फ आसपास के लोग प्रभावित हुए बल्कि सरकारी महकमा भी इसकी सरहना कर रहा है, तभी तो एनसीसी समेत कई विभाग के छात्रों के यहां भ्रमण के लिए लाया जाता है. ताकि वो यहां से कुछ सीख सकें.
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हमारे शास्त्रों में भी एक पेड़ लगाने का बड़ा महत्व माना गया है. वन मानव के लिए एक वरदान है. इसलिए ईटीवी भारत समस्त लोगों से अपील करता है कि बनलोटवा के ग्रामीणों की तरह ही आप भी ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगायें और बचायें ताकि हम रोग और प्रदूषण से बच सकें.