रांचीः झारखंड मत्स्य पालन के क्षेत्र में अग्रणी राज्यों में शामिल हो चुका है. यहां तक की अब मछलियों का निर्यात भी कर रहा है. झारखंड सरकार नीलक्रांति की राह पर किसानों की आय बढ़ाने के लिए मत्स्य पालन को बढ़ावा दे रही है. मत्स्य पालन से ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को रोजगार भी मिल रहा है. मत्स्य पालन को व्यवसाय बनाने से मछली का उत्पादन में काफी वृद्धि हुई है और सबसे ज्यादा खुशी मत्स्य पालन को इस वक्त मानसून के सही समय पर आने से हुई है और अपने तालाबों और हैचरी की तैयारी में लग चुके हैं. बरसात के शुरू होते ही तालाबों में होने वाली खरपतवार को साफ कर तैयार कर रहे हैं.
कांके डैम में किए जा रहे मत्स्य पालन को लेकर तैयारी जोरों पर है. मानसून आने के साथ ही मत्स्य बीज को छोटे तालाब में डाला जाता है जिसके बाद फिर वहां से निकालकर बड़े तालाब या फिर डैम बने आरएफएफ में डाला जाता है. कांके मत्स्य पालन समिति के सचिव बलिराम प्रसाद ने कहा कि इस बार मानसून सही समय पर आया है जिससे उम्मीद है कि मत्स्य का उत्पादन काफी अच्छा होगा. इसके कारण कृषि से जुड़े सभी लोग खुश हैं.
चाहे वह मत्स्य पालन से ही जुड़े क्यों न हों. उन्होंने कहा कि मत्स्य पालन को लेकर पूरी तरह से तैयारी हो चुकी है. छोटे तालाब में मछली का अंडा डाल दिया गया है. दो से 3 इंच होने के बाद छोटे तालाब से निकालकर आरएफएफ में डाला जाएगा. बीते वर्ष मानसून सही समय से न आने के कारण मत्स्य पालन के क्षेत्र में हम लोग काफी पिछड़ गए थे क्योंकि मछली का ग्रोथ अच्छा नहीं हो पाया था.
मानसून पर आधारित है मत्स्य पालन
वहीं, तालाब की साफ-सफाई कर रहे हैं राम विलास नायक बताते हैं कि सही समय पर इस बार मानसून आया है इसलिए तालाब की साफ सफाई की जा रही है. ताकि तालाब में मछली डालने के बाद उसका ग्रोथ अच्छा हो सके. मानसून का यही समय होता है. जब मछली को तालाब में या फिर आरएफएफ में डाला जाता है. मत्स्य पालन पूरी तरह से मानसून पर आधारित होता है.
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तालाबों और जलाशयों को मत्स्य पालन से जोड़ा जाएगा
झारखंड में मत्स्य पालन बड़े पैमाने पर होता है. 2001 में 14 हजार मीट्रिक टन मात्र मत्स्य पालन उत्पादन होता था, हाल के सालों में लगातार वृद्धि हुई है और अब धीरे-धीरे अन्य राज्यों में भी यहां से निर्यात किया जा रहा है. मत्स्य पालन विभाग के निदेशक एचएन द्विवेदी ने कहा कि मत्स्य पालन के क्षेत्र में झारखंड काफी अच्छा करने का प्रयास कर रहा है और आगे भी करता रहेगा.
नए-नए केज और आरएफएफ कल्चर के जरिए मत्स्य से पालन किया जा रहा है. इसके लिए लगातार विभाग प्रयासरत है. भविष्य में इस राज्य की मांग के अनुरूप मत्स्य उत्पादन कर सके इसके लिए मत्स्य पालक हो इसके लिए नई तकनीकी और जानकारियां दी जा रही हैं. मत्स्य पालकों को प्रशिक्षण के साथ-साथ मत्स्य बीज (स्पॉन) भी दिए जाते हैं. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि वैश्विक महामारी कोरोना वायरस को देखते हुए नए-नए तालाब और जलाशयों को भी मत्स्य पालन से जोड़ा जाएगा, ताकि अधिक से अधिक लोगों को रोजगार मिले और मत्स्य पालन में बढ़ावा मिल सके.
2017 से 2020 का उत्पादन
- वर्ष 2017-18 में 1 लाख 90 हजार मीट्रिक टन उत्पादन हुआ
- वर्ष 2018-19 में 2 लाख 8 हजार 400 मीट्रिक टन का उत्पादन हुआ
- वर्ष 2019-20में 2 लाख 2,3000 मीट्रिक टन का उत्पादन हुआ
- वर्ष 2020-21 में 2 लाख 40 मीट्रिक टन उत्पादन करने का लक्ष्य रखा गया है
राज्य सरकार भी राज्य के किसानों को कृषि के क्षेत्र में आगे बढ़ने को लेकर अपनी अग्रणीय भूमिका निभा रही है, चाहे वह मत्स्य पालन का क्षेत्र हो कृषि या फिर पशुपालन का, हर क्षेत्र में सरकार किसानों को हरसंभव मदद पहुंचाने का प्रयास कर रही है. कृषि मंत्री बादल पत्रलेख ने कहा कि मत्स्य पालन के क्षेत्र में झारखंड बीते कई वर्षों से अग्रिम भूमिका निभा रहा है. झारखंड मत्स्य पालन के क्षेत्र के साथ-साथ अंडे के क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर बनेगा. इसको लेकर राज्य सरकार कृषि निर्यात नीति बनाने जा रही है, ताकि यहां के किसानों को विदेशी मार्केट भी मिल सके.