रांची: झारखंड के कई खिलाड़ियों ने अपने खेल से पूरी दुनिया को दिवाना बनाया है. दीपिका कुमारी, सलीमा टेंटे, निक्की प्रधान, महेंद्र सिंह धोनी, ऐसे ही खिलाड़ी है जिन्हें अब किसी पहचान की जरूरत नहीं है. लेकिन इन खिलाड़ियों को जो सफलता मिली है. उसे हासिल करने के लिए उन्होंने कितनी मुश्किलों का सामना किया शायद ही कोई जानता है. खिलाड़ियों की नर्सरी कही जानी वाली झारखंड में अब भी कई ऐसे खिलाड़ी हैं जो ऐसे ही कठिन हालात को हराते हुए अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश में जुटे हैं.
ये भी पढे़ं:- खेल गांव में दो दिवसीय प्रतिभा खोज चयन प्रतियोगिता, जिले के 500 खिलाड़ियों ने लिया हिस्सा
झारखंड में आसान नहीं है खिलाड़ी बनना: हालांकि झारखंड में सरकार खिलाड़ियों को सभी तरह की सुविधा मुहैया कराने का दावा करती है. लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है. यहां स्थानीय स्तर पर खेल रही खिलाड़ियों को देखकर ऐसा तो नहीं लगता कि सरकार इनके प्रति ज्यादा संजीदा है. जिन खिलाड़ियों को सहयोग की ज्यादा जरूरत है उन खिलाड़ियों को कोई मदद नहीं मिलती . संघर्ष के दिनों में खिलाड़ी क्या खा रहे हैं. कैसे रह रहे हैं. वह कहां रहते हैं .किस हालात में रहते हैं .उनके माता-पिता की आर्थिक स्थिति क्या है .इसे देखने और सुनने वाला कोई नहीं होता.
अनिता की सफलता के बाद बढ़े हौसले: इतने कठिन हालात के बावजूद ओरमांझी प्रखंड की चारीहुजीर गांव की अनीता का फीफा वर्ल्ड कप अंडर-17 भारतीय टीम में सेलेक्शन के बाद यहां कड़ी मेहनत कर रहे खिलाड़ियों का हौसला बढ़ गया है. लोग तो कह रहे हैं कि अनिता ने मार भात खाकर ये उपलब्धि हासिल की है. अनीता जैसी इस राज्य में सैकड़ों ऐसे खिलाड़ी है. जो प्रतिभावन और भरपूर टैलेंट के बावजूद गरीबी का दंश झेलने को मजबूर हैं. ओरमांझी प्रखंड के इरबा में करीब 200 ऐसे खिलाड़ी हैं जो प्रैक्टिस तो रोजाना करते हैं लेकिन आर्थिक संकट उनके लिए समस्या बनी हुई है.
ये भी पढ़ें:- अंडर-17 महिला फीफा वर्ल्ड कप 2022 के प्रशिक्षण के लिए झारखंड की 7 खिलाड़ियों का चयन, सीएम ने कहा- बेटियों ने किया कमाल
क्या कहते हैं कोच: इन खिलाड़ियों को प्रैक्टिस कराने वाले कोच आनंद कुमार कहते हैं कि जितने भी खिलाड़ी उनके संरक्षण में ट्रेनिंग ले रहे हैं .वे तमाम खिलाड़ी आर्थिक रूप से कमजोर ही नहीं बल्कि सिर्फ भात खा कर हर रोज इस ग्राउंड में पसीना बहाते हैं. इनके परिवार के समक्ष भुखमरी की हालात है. इसके बावजूद भविष्य की चिंता लिए ये खिलाड़ी 5 से 7 किलोमीटर पैदल चलकर दौड़ कर इस ग्राउंड तक पहुंचते हैं. अहले सुबह से ही इनका प्रशिक्षण यहां शुरू हो जाता है .खेल प्रशिक्षक आनंद इन खिलाड़ियों को हर दिन प्रैक्टिस करवाते हैं.
किट के लिए फैलाना पड़ता है हाथ: कोच के अनुसार इन खिलाड़ियों के जरूरी किट के लिए भी लिए उन्हें विभिन्न एनजीओ और कई लोगों के समक्ष हाथ फैलाना पड़ता है. राज्य सरकार के खेल विभाग की इस ओर कोई ध्यान नहीं है. लगातार इसे लेकर खिलाड़ियों की ओर से राज्य सरकार से मदद की गुहार लगाई जा रही है. इनमें अधिकतर खिलाड़ी नेशनल खेल चुकी है .कई मेडल इनके नाम है .अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी ये खिलाड़ी विदेशों में फुटबॉल खेल चुकी है. इसके बावजूद इन खिलाड़ियों की ओर न तो सरकार का ध्यान है और न हीं प्रशासन का.
ये भी पढ़ें:- अंडर-17 फीफा वर्ल्ड कप के लिए भारतीय टीम घोषित, झारखंड की 7 खिलाड़ियों को मिली जगह
बेहद खराब है अनिता के घर की हालत: फीफा वर्ल्ड कप अंडर-17 के भारतीय टीम में जगह बना चुकी अनिता के घर की हालत काफी खराब है. उसके घर को देखकर ऐसा लगता है कि सरकार की तमाम योजनाएं उसके घर से कोसों दूर हो. इतनी गरीबी के बावजूद अनिता की बहन विनिता भी खेल में करियर बना चाहती है. अनिता की मां अपनी बेटी की सफलता पर खुशी जाहिर करते हुए सरकार से मदद की मांग की है.
खिलाड़ियों को पहले मिले मदद: अब सवाल उठता है कि सफलता के बाद जिन खिलाड़ियों के लिए सरकार और निजी संस्थाओं के द्वारा घोषणाओं का अंबार लग जाता है. वहीं मदद के रूप में अगर संघर्ष कर रहे खिलाड़ियों को मिल जाए तो कई ऐसे खिलाड़ी सामने आएंगे जो देश और राज्य का नाम रौशन कर सकेंगे.