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मजदूरों के मन में बसा मनरेगा, रिकॉर्ड मानव दिवस सृजितः मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी

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Published : Dec 31, 2020, 6:11 PM IST

Updated : Dec 31, 2020, 9:09 PM IST

झारखंड में महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना कितनी सफल रही और इससे जुड़ कर कितने मजदूरों को रोजगार मिला, ये सवाल महत्वपूर्ण है. इसका जवाब जानने के लिए ईटीवी भारत ने मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी से खास बातचीत की. उन्होंने मनरेगा को मील का पत्थर बताया.

झारखंड में मनरेगा
झारखंड में मनरेगा

रांचीः कोविड-19 के दौर में गरीब राज्यों में शुमार झारखंड की ग्रामीण व्यवस्था को संभालने में मनरेगा से जुड़ी योजनाएं मील का पत्थर साबित हुई हैं. वित्तीय वर्ष 2020-21 के दिसंबर माह तक जितना मानव दिवस सृजित हुआ, उतना राज्य बनने के बाद से लेकर अब तक कभी देखने को नहीं मिला. मनरेगा की योजनाओं से ग्रामीण क्षेत्र के मजदूरों को जोड़ने के लिए ग्रामीण विकास विभाग ने भी एड़ी चोटी का जोर लगाया. मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कहा कि पिछले साल श्रमिकों के पारिश्रमिक मद में 1,092 करोड़ों रुपए वितरित किए गए थे जबकि वित्तीय वर्ष 2020-21 के दिसंबर माह में ही पारिश्रमिक मद में 1,623 करोड़ से ज्यादा की राशि वितरित की जा चुकी है.

मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी से खास बातचीत

इस वित्तीय वर्ष 10 लाख जॉब कार्ड बने

झारखंड में साल 2020 के दिसंबर माह तक 26 लाख 31 हजार लोगों को मनरेगा के तहत काम मिला जबकि पिछले साल 17 लाख 63 हजार लोगों को काम मिला था. मनरेगा आयुक्त ने कहा कि इस वित्तीय वर्ष में 900 लाख मानव दिवस सृजित करने का लक्ष्य है, जो जनवरी से पहले ही पूरा हो जाएगा. उन्होंने कहा कि वित्तीय वर्ष के अंत तक 1200 लाख से भी ज्यादा मानव दिवस सृजित हो सकता है.

झारखंड में मनरेगा
मनरेगा की सफलता

पारिश्रमिक बेहद कम

मनरेगा के मजदूरों को सरकार द्वारा तय न्यूनतम मजदूरी दर से भी कम यानी सिर्फ 194 रुपए मिलता हैं. ऐसे में लोग क्यों नहीं दूसरे प्रदेशों में जाना चाहेंगे? इस सवाल के जवाब में मनरेगा आयुक्त ने कहा कि पारिश्रमिक जरूर कम है और राज्य सरकार अपनी तरफ से 31 रुपए अतिरिक्त देने की तैयारी कर रही है लेकिन संपत्ति के नजरिए से देखें तो मनरेगा से मजदूरों को बहुत फायदा होता है. एक तो उन्हें रोजगार मिलता है और दूसरी तरफ बिना लागत से कई तरह के शेड और बागवानी तैयार हो जाती है.

ये भी पढ़ें-झारखंड हाईकोर्ट ने साल 2020 में दिए कौन-कौन चर्चित फैसले, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

पंचायत चुनाव नहीं होने का प्रभाव

मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी ने कहा कि उनके हिसाब से पंचायत चुनाव होने से पूर्व जिस प्रशासनिक कमेटी वाली व्यवस्था की बात सुनने को मिल रही है, उससे मनरेगा को और गति मिलेगी. ईटीवी भारत के ब्यूरो चीफ राजेश सिंह ने पूछा कि ऐसा क्यों है कि भ्रष्टाचार में लिप्त मनरेगाकर्मी फिर से बहाल किए जा रहे हैं? इस पर मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी ने कहा कि मनरेगा में गड़बड़ी की जांच जिला स्तर पर होती है और उपायुक्त की अनुशंसा पर कार्रवाई की जाती है. भ्रष्टकर्मियों की दुबारा बहाली के मसले का सही जवाब जिला स्तर पर ही मिल सकता है.

उन्होंने माना कि इस योजना में गड़बड़ी होती है और इसे चेक करने के लिए सोशल ऑडिट कराया जाता है. कोविड-19 के दौर में झारखंड में तीन योजनाएं शुरू की गई- बिरसा हरित ग्राम योजना, नीलांबर-पीतांबर जल समृद्धि योजना और पोटो हो खेल मैदान योजना. इन तीन योजनाओं की बदौलत बड़ी संख्या में रोजगार का सृजन हुआ है. उन्होंने कहा कि बिरसा हरित ग्राम योजना के तहत लगाए गए करीब 14 फीसदी पौधे सूख गए और मवेशियों का चारा बन गए. उनकी तरफ से हर एक पौधे की गिनती कराई जा रही है और उसकी जगह नए पौधे लगाए जाएंगे. मनरेगा आयुक्त ने कहा कि सिर्फ 1 साल इन पौधों की देखरेख हो गई तो ग्रामीणों की अच्छी खासी संपत्ति खड़ी हो जाएगी.

मनरेगा आयुक्त ने बताया कि सबसे ज्यादा गिरिडीह जिला में 82,04,484 मानव दिवस सृजित हुआ. दूसरे स्थान पर रहा गढ़वा जिला, जहां 60,49,717 मानव दिवस सृजित हुआ. 45,10,060 मानव दिवस के साथ दुमका जिला तीसरे स्थान पर रहा. वित्तीय वर्ष 2020-21 में अभी 3 माह से शेष हैं. वित्तीय वर्ष 2019-20 में भी सबसे ज्यादा 61,66,726 मानव दिवस गिरिडीह में सृजित हुआ था. दूसरे स्थान पर गढ़वा और तीसरे स्थान पर दुमका जिला ही था.

रांचीः कोविड-19 के दौर में गरीब राज्यों में शुमार झारखंड की ग्रामीण व्यवस्था को संभालने में मनरेगा से जुड़ी योजनाएं मील का पत्थर साबित हुई हैं. वित्तीय वर्ष 2020-21 के दिसंबर माह तक जितना मानव दिवस सृजित हुआ, उतना राज्य बनने के बाद से लेकर अब तक कभी देखने को नहीं मिला. मनरेगा की योजनाओं से ग्रामीण क्षेत्र के मजदूरों को जोड़ने के लिए ग्रामीण विकास विभाग ने भी एड़ी चोटी का जोर लगाया. मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान कहा कि पिछले साल श्रमिकों के पारिश्रमिक मद में 1,092 करोड़ों रुपए वितरित किए गए थे जबकि वित्तीय वर्ष 2020-21 के दिसंबर माह में ही पारिश्रमिक मद में 1,623 करोड़ से ज्यादा की राशि वितरित की जा चुकी है.

मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी से खास बातचीत

इस वित्तीय वर्ष 10 लाख जॉब कार्ड बने

झारखंड में साल 2020 के दिसंबर माह तक 26 लाख 31 हजार लोगों को मनरेगा के तहत काम मिला जबकि पिछले साल 17 लाख 63 हजार लोगों को काम मिला था. मनरेगा आयुक्त ने कहा कि इस वित्तीय वर्ष में 900 लाख मानव दिवस सृजित करने का लक्ष्य है, जो जनवरी से पहले ही पूरा हो जाएगा. उन्होंने कहा कि वित्तीय वर्ष के अंत तक 1200 लाख से भी ज्यादा मानव दिवस सृजित हो सकता है.

झारखंड में मनरेगा
मनरेगा की सफलता

पारिश्रमिक बेहद कम

मनरेगा के मजदूरों को सरकार द्वारा तय न्यूनतम मजदूरी दर से भी कम यानी सिर्फ 194 रुपए मिलता हैं. ऐसे में लोग क्यों नहीं दूसरे प्रदेशों में जाना चाहेंगे? इस सवाल के जवाब में मनरेगा आयुक्त ने कहा कि पारिश्रमिक जरूर कम है और राज्य सरकार अपनी तरफ से 31 रुपए अतिरिक्त देने की तैयारी कर रही है लेकिन संपत्ति के नजरिए से देखें तो मनरेगा से मजदूरों को बहुत फायदा होता है. एक तो उन्हें रोजगार मिलता है और दूसरी तरफ बिना लागत से कई तरह के शेड और बागवानी तैयार हो जाती है.

ये भी पढ़ें-झारखंड हाईकोर्ट ने साल 2020 में दिए कौन-कौन चर्चित फैसले, पढ़ें पूरी रिपोर्ट

पंचायत चुनाव नहीं होने का प्रभाव

मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी ने कहा कि उनके हिसाब से पंचायत चुनाव होने से पूर्व जिस प्रशासनिक कमेटी वाली व्यवस्था की बात सुनने को मिल रही है, उससे मनरेगा को और गति मिलेगी. ईटीवी भारत के ब्यूरो चीफ राजेश सिंह ने पूछा कि ऐसा क्यों है कि भ्रष्टाचार में लिप्त मनरेगाकर्मी फिर से बहाल किए जा रहे हैं? इस पर मनरेगा आयुक्त सिद्धार्थ त्रिपाठी ने कहा कि मनरेगा में गड़बड़ी की जांच जिला स्तर पर होती है और उपायुक्त की अनुशंसा पर कार्रवाई की जाती है. भ्रष्टकर्मियों की दुबारा बहाली के मसले का सही जवाब जिला स्तर पर ही मिल सकता है.

उन्होंने माना कि इस योजना में गड़बड़ी होती है और इसे चेक करने के लिए सोशल ऑडिट कराया जाता है. कोविड-19 के दौर में झारखंड में तीन योजनाएं शुरू की गई- बिरसा हरित ग्राम योजना, नीलांबर-पीतांबर जल समृद्धि योजना और पोटो हो खेल मैदान योजना. इन तीन योजनाओं की बदौलत बड़ी संख्या में रोजगार का सृजन हुआ है. उन्होंने कहा कि बिरसा हरित ग्राम योजना के तहत लगाए गए करीब 14 फीसदी पौधे सूख गए और मवेशियों का चारा बन गए. उनकी तरफ से हर एक पौधे की गिनती कराई जा रही है और उसकी जगह नए पौधे लगाए जाएंगे. मनरेगा आयुक्त ने कहा कि सिर्फ 1 साल इन पौधों की देखरेख हो गई तो ग्रामीणों की अच्छी खासी संपत्ति खड़ी हो जाएगी.

मनरेगा आयुक्त ने बताया कि सबसे ज्यादा गिरिडीह जिला में 82,04,484 मानव दिवस सृजित हुआ. दूसरे स्थान पर रहा गढ़वा जिला, जहां 60,49,717 मानव दिवस सृजित हुआ. 45,10,060 मानव दिवस के साथ दुमका जिला तीसरे स्थान पर रहा. वित्तीय वर्ष 2020-21 में अभी 3 माह से शेष हैं. वित्तीय वर्ष 2019-20 में भी सबसे ज्यादा 61,66,726 मानव दिवस गिरिडीह में सृजित हुआ था. दूसरे स्थान पर गढ़वा और तीसरे स्थान पर दुमका जिला ही था.

Last Updated : Dec 31, 2020, 9:09 PM IST
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