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EXCLUSIVE: प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप घोटाला, सुनिए लाभुक छात्रा और संदिग्ध स्कूल संचालक की जुबानी

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Published : Nov 3, 2020, 9:49 AM IST

Updated : Nov 3, 2020, 1:12 PM IST

प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना में सेंध लग चुकी है. बच्चों का बैंक में खाता नहीं है फिर भी उनके नाम से स्कॉलरशिप का क्लेम हो रहा है. इस तरह से रैकेट काम कर रहा है कि इसकी भनक न तो झारखंड सरकार को लगी और न केंद्र सरकार को.

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प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप घोटाला

रांची: अल्पसंख्यक समाज के गरीब और होनहार बच्चों की पढ़ाई पैसे की कमी के कारण बाधित न हो इसे ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की तरफ से प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना चलाई जा रही है, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इस योजना में सेंध लग चुकी है. बच्चों का बैंक में खाता नहीं है फिर भी उनके नाम से स्कॉलरशिप का क्लेम हो रहा है. इस तरह से रैकेट काम कर रहा है कि इसकी भनक न तो झारखंड सरकार को लगी और न केंद्र सरकार को. खास बात है कि पिछले ही साल तत्कालीन रघुवर सरकार की कल्याण मंत्री रहीं लुईस मरांडी के विभाग को केंद्र की तरफ से स्कॉलरशिप ले रहे लाभुकों का डिटेल चेक करने से जुड़ा पत्र आया था. जुलाई 2019 में एसीबी ने इसी तरह के एक शिकायत पर तत्कालीन प्रधान कैबिनेट सचिव को पत्र भेजा था, लेकिन इसको नजरअंदाज किया गया.

रांची के ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित कई निजी स्कूलों में यह गोरखधंधा चल रहा है. ईटीवी भारत से फोन पर बातचीत के दौरान अल्पसंख्यक विभाग के सचिव अमिताभ कौशल ने कहा कि पूरे मामले की पड़ताल शुरू हो चुकी है. उन्होंने प्री मैट्रिक स्कॉलरशिप के नाम पर बड़े घोटाले का अंदेशा जताया है. पूरा मामला समझने के लिए रांची से 35 किलोमीटर दूर बिजुपाड़ा के टांगर स्थित सनराइज पब्लिक स्कूल की छात्रा यासमीन परवीन को सुनना होगा.

छात्रा यासमीन से बातचीत

यासमीन को मिला ढ़ाई हजार रुपये

यासमीन ने इसी वर्ष फरवरी में मैट्रिक की परीक्षा दी है. उसने बताया कि लॉकडाउन के दौरान अप्रैल-मई माह में स्कूल के प्रिंसिपल मुंसफ अंसारी का बुलावा आया. जब छात्रा स्कूल पहुंची तो एक मशीन पर उसका थंब इंप्रेशन लिया गया और बदले में ढाई हजार रुपए दिए गए, जबकि यासमीन के मुताबिक बैंक में उसका खाता है ही नहीं, फिर स्कॉलरशिप क्लेम कैसे हो गया. इसी तरह रांची के काठीटांड में भी एक स्कूल है. इसका भी नाम है सनराइज पब्लिक स्कूल. इसके प्रिंसिपल और संचालक है सलीम खान. इस स्कूल की नौवीं की छात्रा खुशी कुमारी को अप्रैल-मई महीने में बुलाकर 4000 रुपये दिए गए. ईटीवी भारत से फोन पर बातचीत के दौरान खुशी कुमारी ने कहा कि वह प्रिंसिपल से पूछती रही कि किस बात के पैसे मिले हैं, लेकिन इसका जवाब नहीं दिया गया, जबकि खुशी कुमारी के पिता का नाम बबलू महतो है यानी खुशी कुमारी अल्पसंख्यक समाज से नहीं आती है. इसका मतलब है कि टाइटल बदल कर उसके नाम से पैसे निकाल लिए गए.

बैंक के बजाए प्रिंसिपल कैसे दे रहे हैं पैसे

यह सबसे अहम सवाल है कि अगर कोई छात्र या छात्रा स्कॉलरशिप की पात्रता रखता है तो संबंधित पैसा उसके बैंक अकाउंट में डीबीटी के मार्फत ट्रांसफर होगा. यह समझने के लिए हमने बात की बीजूपाड़ा स्थित सनराइज पब्लिक स्कूल के संचालक मुंसफ अंसारी से. उन्होंने अल्पसंख्यक स्कूल के तौर पर रजिस्ट्रेशन से लेकर स्कॉलरशिप के क्लेम की जानकारी दी. उनके मुताबिक वह पिछले 2 वर्षों से नेशनल स्कॉलरशिप पोर्टल पर बच्चों के लिए क्लेम कर रहे हैं. उनका दावा है कि बच्चों के अकाउंट बैंकों में खुले हुए हैं. बच्चों को स्कूल बुलाकर बैंक कर्मचारी द्वारा लाए गए पॉश मशीन पर थंब इंप्रेशन के बाद पैसे लिए गए. चुकि उनके स्कूल का 250 रु प्रतिमाह फीस है और कई बच्चे इसे नहीं दे पाते हैं. इसलिए 5700 रु में से फीस की बकाया राशि काटकर लौटाई गई.

स्कूल संचालक मुंसफ अंसारी से बातचीत

इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि वह इस बात से हैरान है कि कुछ दिन पूर्व जब उन्होंने पोर्टल पर अपने स्कूल का 2016-17 का स्टेट्स चेक किया तो उसमें कई छात्रों के नाम दिखे जिनका उनके स्कूल से कोई वास्ता ही नहीं था. उस में हॉस्टल सुविधा का भी जिक्र था यानी मुंसफ अंसारी के स्कूल के नाम से स्कॉलरशिप मद में पैसे मंगाए जा रहे थे. अब सवाल है कि जब बच्चे कह रहे हैं कि बैंक में उनका खाता है ही नहीं तो फिर पैसे की निकासी कैसे हो रही है. खुशी कुमारी को कैसे अल्पसंख्यक कोटे का स्कॉलरशिप मिला. यह तो दो स्कूलों की बात हुई. झारखंड के सभी प्रखंडों में कई निजी स्कूल है जिन्होंने अल्पसंख्यक कोटे का लाभ लेने के लिए रजिस्ट्रेशन करा रखा है.

ये भी पढ़ें: दुमका उपचुनावः मतदान को लेकर वोटर उत्साहित, विकास की है उम्मीद

इसी मसले पर इंडियन एक्सप्रेस अखबार में छपी रिपोर्ट का हवाला देते हुए 1 नवंबर को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि दुमका से भाजपा की टिकट पर उपचुनाव लड़ रही पूर्व अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री लुईस मरांडी के कार्यकाल में छात्रवृत्ति घोटाले की बात सामने आई है और इसकी जांच का आदेश दे दिया गया है, लेकिन पूरे मामले के तह में जाने से साफ झलकता है कि छात्रों के स्कॉलरशिप में लंबे समय से सेंध लगी हुई है और अगर ठीक से जांच हुई तो एक बड़ा घोटाला सामने आएगा. फर्क सिर्फ इतना होगा कि आमतौर पर घोटाले ऊपर के स्तर पर होते हैं, लेकिन यह ऐसा घोटाला होगा जो निचले स्तर पर हो रहा है.

क्या है प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप योजना

केंद्र और राज्य सरकार के स्तर पर स्कॉलरशिप से जुड़ी कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. इनमें एक है प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप योजना. इसके तहत मैट्रिक तक की पढ़ाई के दौरान अल्पसंख्यक समाज के गरीब और मेधावी बच्चों को केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक मंत्रालय की तरफ से डीबीटी के जरिए पैसे मुहैया कराए जाते हैं. कक्षा 1 से 4 तक के बच्चों को 1000 रुपए प्रति वर्ष और कक्षा 5 से दसवीं तक के बच्चों को 5700 रुपए प्रतिवर्ष देने का प्रावधान है. अल्पसंख्यक बच्चों को पढ़ाने वाले स्कूलों में अगर हॉस्टल की सुविधा होगी तो संबंधित बच्चे को प्रतिवर्ष 10,700 रुपए मिलते हैं. इसके लिए जरूरी है कि अभिभावक की आमदनी प्रतिवर्ष 1 लाख रु से ज्यादा ना हो और पूर्व की परीक्षाओं में छात्र या छात्रा ने 50% अंक हासिल किया हो.

रांची: अल्पसंख्यक समाज के गरीब और होनहार बच्चों की पढ़ाई पैसे की कमी के कारण बाधित न हो इसे ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की तरफ से प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति योजना चलाई जा रही है, लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि इस योजना में सेंध लग चुकी है. बच्चों का बैंक में खाता नहीं है फिर भी उनके नाम से स्कॉलरशिप का क्लेम हो रहा है. इस तरह से रैकेट काम कर रहा है कि इसकी भनक न तो झारखंड सरकार को लगी और न केंद्र सरकार को. खास बात है कि पिछले ही साल तत्कालीन रघुवर सरकार की कल्याण मंत्री रहीं लुईस मरांडी के विभाग को केंद्र की तरफ से स्कॉलरशिप ले रहे लाभुकों का डिटेल चेक करने से जुड़ा पत्र आया था. जुलाई 2019 में एसीबी ने इसी तरह के एक शिकायत पर तत्कालीन प्रधान कैबिनेट सचिव को पत्र भेजा था, लेकिन इसको नजरअंदाज किया गया.

रांची के ग्रामीण क्षेत्रों में संचालित कई निजी स्कूलों में यह गोरखधंधा चल रहा है. ईटीवी भारत से फोन पर बातचीत के दौरान अल्पसंख्यक विभाग के सचिव अमिताभ कौशल ने कहा कि पूरे मामले की पड़ताल शुरू हो चुकी है. उन्होंने प्री मैट्रिक स्कॉलरशिप के नाम पर बड़े घोटाले का अंदेशा जताया है. पूरा मामला समझने के लिए रांची से 35 किलोमीटर दूर बिजुपाड़ा के टांगर स्थित सनराइज पब्लिक स्कूल की छात्रा यासमीन परवीन को सुनना होगा.

छात्रा यासमीन से बातचीत

यासमीन को मिला ढ़ाई हजार रुपये

यासमीन ने इसी वर्ष फरवरी में मैट्रिक की परीक्षा दी है. उसने बताया कि लॉकडाउन के दौरान अप्रैल-मई माह में स्कूल के प्रिंसिपल मुंसफ अंसारी का बुलावा आया. जब छात्रा स्कूल पहुंची तो एक मशीन पर उसका थंब इंप्रेशन लिया गया और बदले में ढाई हजार रुपए दिए गए, जबकि यासमीन के मुताबिक बैंक में उसका खाता है ही नहीं, फिर स्कॉलरशिप क्लेम कैसे हो गया. इसी तरह रांची के काठीटांड में भी एक स्कूल है. इसका भी नाम है सनराइज पब्लिक स्कूल. इसके प्रिंसिपल और संचालक है सलीम खान. इस स्कूल की नौवीं की छात्रा खुशी कुमारी को अप्रैल-मई महीने में बुलाकर 4000 रुपये दिए गए. ईटीवी भारत से फोन पर बातचीत के दौरान खुशी कुमारी ने कहा कि वह प्रिंसिपल से पूछती रही कि किस बात के पैसे मिले हैं, लेकिन इसका जवाब नहीं दिया गया, जबकि खुशी कुमारी के पिता का नाम बबलू महतो है यानी खुशी कुमारी अल्पसंख्यक समाज से नहीं आती है. इसका मतलब है कि टाइटल बदल कर उसके नाम से पैसे निकाल लिए गए.

बैंक के बजाए प्रिंसिपल कैसे दे रहे हैं पैसे

यह सबसे अहम सवाल है कि अगर कोई छात्र या छात्रा स्कॉलरशिप की पात्रता रखता है तो संबंधित पैसा उसके बैंक अकाउंट में डीबीटी के मार्फत ट्रांसफर होगा. यह समझने के लिए हमने बात की बीजूपाड़ा स्थित सनराइज पब्लिक स्कूल के संचालक मुंसफ अंसारी से. उन्होंने अल्पसंख्यक स्कूल के तौर पर रजिस्ट्रेशन से लेकर स्कॉलरशिप के क्लेम की जानकारी दी. उनके मुताबिक वह पिछले 2 वर्षों से नेशनल स्कॉलरशिप पोर्टल पर बच्चों के लिए क्लेम कर रहे हैं. उनका दावा है कि बच्चों के अकाउंट बैंकों में खुले हुए हैं. बच्चों को स्कूल बुलाकर बैंक कर्मचारी द्वारा लाए गए पॉश मशीन पर थंब इंप्रेशन के बाद पैसे लिए गए. चुकि उनके स्कूल का 250 रु प्रतिमाह फीस है और कई बच्चे इसे नहीं दे पाते हैं. इसलिए 5700 रु में से फीस की बकाया राशि काटकर लौटाई गई.

स्कूल संचालक मुंसफ अंसारी से बातचीत

इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि वह इस बात से हैरान है कि कुछ दिन पूर्व जब उन्होंने पोर्टल पर अपने स्कूल का 2016-17 का स्टेट्स चेक किया तो उसमें कई छात्रों के नाम दिखे जिनका उनके स्कूल से कोई वास्ता ही नहीं था. उस में हॉस्टल सुविधा का भी जिक्र था यानी मुंसफ अंसारी के स्कूल के नाम से स्कॉलरशिप मद में पैसे मंगाए जा रहे थे. अब सवाल है कि जब बच्चे कह रहे हैं कि बैंक में उनका खाता है ही नहीं तो फिर पैसे की निकासी कैसे हो रही है. खुशी कुमारी को कैसे अल्पसंख्यक कोटे का स्कॉलरशिप मिला. यह तो दो स्कूलों की बात हुई. झारखंड के सभी प्रखंडों में कई निजी स्कूल है जिन्होंने अल्पसंख्यक कोटे का लाभ लेने के लिए रजिस्ट्रेशन करा रखा है.

ये भी पढ़ें: दुमका उपचुनावः मतदान को लेकर वोटर उत्साहित, विकास की है उम्मीद

इसी मसले पर इंडियन एक्सप्रेस अखबार में छपी रिपोर्ट का हवाला देते हुए 1 नवंबर को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि दुमका से भाजपा की टिकट पर उपचुनाव लड़ रही पूर्व अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री लुईस मरांडी के कार्यकाल में छात्रवृत्ति घोटाले की बात सामने आई है और इसकी जांच का आदेश दे दिया गया है, लेकिन पूरे मामले के तह में जाने से साफ झलकता है कि छात्रों के स्कॉलरशिप में लंबे समय से सेंध लगी हुई है और अगर ठीक से जांच हुई तो एक बड़ा घोटाला सामने आएगा. फर्क सिर्फ इतना होगा कि आमतौर पर घोटाले ऊपर के स्तर पर होते हैं, लेकिन यह ऐसा घोटाला होगा जो निचले स्तर पर हो रहा है.

क्या है प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप योजना

केंद्र और राज्य सरकार के स्तर पर स्कॉलरशिप से जुड़ी कई योजनाएं चलाई जा रही हैं. इनमें एक है प्री-मैट्रिक स्कॉलरशिप योजना. इसके तहत मैट्रिक तक की पढ़ाई के दौरान अल्पसंख्यक समाज के गरीब और मेधावी बच्चों को केंद्र सरकार के अल्पसंख्यक मंत्रालय की तरफ से डीबीटी के जरिए पैसे मुहैया कराए जाते हैं. कक्षा 1 से 4 तक के बच्चों को 1000 रुपए प्रति वर्ष और कक्षा 5 से दसवीं तक के बच्चों को 5700 रुपए प्रतिवर्ष देने का प्रावधान है. अल्पसंख्यक बच्चों को पढ़ाने वाले स्कूलों में अगर हॉस्टल की सुविधा होगी तो संबंधित बच्चे को प्रतिवर्ष 10,700 रुपए मिलते हैं. इसके लिए जरूरी है कि अभिभावक की आमदनी प्रतिवर्ष 1 लाख रु से ज्यादा ना हो और पूर्व की परीक्षाओं में छात्र या छात्रा ने 50% अंक हासिल किया हो.

Last Updated : Nov 3, 2020, 1:12 PM IST
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