रांची: झारखंड राज्य पांच प्रमंडलों में बंटा है. जिला और सीटों की सख्या के लिहाज से उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल की जमीन सत्ता के गलियारे तक पहुंचने के लिए सबसे मुफीद मानी जाती है. इसकी वजह है प्रमंडल की 25 सीटें. इस प्रमंडल में सबसे ज्यादा सात जिले हैं.
2009 के चुनाव में यहां बीजेपी की करारी शिकस्त हुई थी. सिर्फ तीन सीटें आई थी, लेकिन 2014 के चुनाव में बीजेपी ने कम बैक किया और आज यहां बीजेपी का 16 सीटों पर कब्जा है. जबकि सहयोगी आजसू का दो सीटों पर कब्जा है. यानी इस प्रमंडल की 25 सीटों में से 18 सीटों पर एनडीए काबिज है. खास बात है कि 2009 के चुनाव के वक्त सात सीटों के साथ जेवीएम सबसे बड़ी पार्टी थी, जबकि 6 सीटों के साथ कांग्रेस दूसरे स्थान पर थी जो अब दो सीटों में सिमट कर रह गयी है.
बाबूलाल मरांडी अपनी डूबती राजनैतिक नैया को यहीं से बेड़ा पार लगाने में जुटे हैं. बरही और बड़कागांव में कांग्रेस के जो दो विधायक हैं वह भी अपने बूते चुनाव जीतने की ताकत रखते हैं, लेकिन जब परंपरागत रूप से सीटों पर पकड़ की बात की जाए तो बीजेपी और जेएमएम में कोई अंतर नहीं दिखता. बीजेपी सिर्फ झरिया सीट पर पिछले तीन चुनावों से जीतती आ रही है. वहीं, गिरिडीह की डुमरी सीट पर जेएमएम और रामगढ़ सीट पर आजसू. बेशक अभी बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी है. लेकिन 2009 के नतीजों पर गौर करें तो जेवीएम, कांग्रेस, जेएमएम और राजद की कुल सीटें 18 थीं. इसलिए सभी पार्टियां मौके की तलाश में हैं कि किन मुद्दों को गरमाकर हथौड़ा मारा जाए.
चुनाव के लिहाज से खासियत
उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल में एक भी सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित नहीं है. अलबत्ता यहां सबसे ज्यादा चार सीटें एससी के लिए हैं. 2014 में एससी की चार सीटों में दो पर बीजेपी का कब्जा था. जेवीएम की टिकट पर चंदनकियारी और सिमरिया सीट जीतने वाले विधायकों को बीजेपी में शामिल होने से अब एससी की सभी सीटों पर कब्जा है. एक और खास बात है कि इस क्षेत्र में दबदबा के बावजूद बीजेपी का एक भी विधायक को रघुवर मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली. इसकी वजह चंदकियारी सीट को माना जाता है. जेवीएम से बीजेपी में शामिल होने पर अमर बाउरी को मंत्री बनाया गया. दूसरी तरफ आजसू के चंद्रप्रकाश चौधरी को. हालांकि, गिरिडीह से लोकसभा चुनाव जीतने के बाद पिछले दिनों सीपी चौधरी मंत्री पद छोड़ चुके हैं.
उत्तरी छोटानागपुर ने राज्य को दिया था पहला मुख्यमंत्री
क्या आप जानते हैं कि 15 नवंबर 2000 को गठित झारखंड को पहला मुख्यमंत्री उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल ने दिया था. जी हां जब राज्य का गठन हुआ तब बीजेपी ने बाबूलाल मरांडी को मुख्यमंत्री बनाया. उस वक्त बाबूलाल बीजेपी के सांसद थे. उन्हें 6 महीने के भीतर विधानसभा का चुनाव जीतना था. इसी बीच रामगढ़ सीट से सीपीआई के विधायक रहे शब्बीर अहमत कुरैशी का असमय निधन हो गया. इसी उपचुनाव में बाबूलाल मरांडी बीजेपी की टिकट पर मैदान में उतरे और जीत दर्ज की थी. हालांकि डोमिसाइल विवाद के कारण उन्हें 18 मार्च 2003 को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी थी. बाद में पार्टी में अलग-थलग पड़ने पर उन्होंने झारखंड विकास मोर्चा के नाम से अपनी नई पार्टी बना ली.
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आर्थिक रूप से सबसे मजबूत
झारखंड का उत्तरी छोटानागपुर प्रमंडल आर्थिक रूप से सबसे ज्यादा संपन्न है. इसकी वजह है धनबाद, चतरा और रामगढ़ की कोयला खदानें. दूसरी तरफ बोकारो स्टील प्लांट इसे अलग पहचान दिलाता है. चतरा और गिरिडीह जिले में कभी नक्सलियों की पैठ हुआ करती थी जो अब बैकफुट पर हैं.