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बाबा टांगीनाथ की धरती गुमला में BJP और JMM के बीच होती है कांटे की टक्कर - jharkhand assembly election

गुमला जिला में तीन विधानसभा सीटें हैं. गुमला, विशुनपुर और सिसई. गुमला सीट पर बीजेपी और जेएमएम के बीच कांटे की टक्कर होती रही है. 2014 के विधानसभा चुनाव में यहां से बीजेपी के शिव शंकर उरांव को जीत मिली.

Gumla assembly seat, झारखंड विधानसभा
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Published : Nov 26, 2019, 6:15 PM IST

रांची: गुमला जिला में तीन विधानसभा सीटें हैं. गुमला, विशुनपुर और सिसई. पिछले दो चुनावों से इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है. इस सीट पर बीजेपी और जेएमएम के बीच कांटे की टक्कर होती रही है. साल 2000 के चुनाव के वक्त इस सीट पर बीजेपी के सुदर्शन भगत ने जेएमएम के बेरनार्ड मिंज को हराया था. आज सुदर्शन भगत लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र से बीजेपी के सांसद हैं.

2014 में मोदी के नेतृत्व में बनी पहली सरकार में सुदर्शन भगत को कैबिनेट में भी जगह मिली थी, लेकिन 2005 के चुनाव में जेएमएम के भूषण तिर्की की सुदर्शन भगत से कांटे की टक्कर हुई थी. अंतिम राउंड में सिर्फ 869 वोट के लीड के साथ भूषण तिर्की विजयी घोषित किए गये थे. 2009 में बीजेपी ने भूषण तिर्की को रोकने के लिए कमलेश उरांव पर दांव लगाया जो निशाने पर बैठा.

कमलेश उरांव ने भूषण तिर्की को भारी अंतर से शिकस्त दी थी. 2014 में मोदी लहर के बीच बीजेपी ने शिवशंकर उरांव को आजमाया. उनका सामना भी जेएमएम के भूषण तिर्की से ही हुआ, लेकिन नतीजा बीजेपी के पक्ष में गया. खास बात है कि गुमला में हुए पिछले दो चुनावों में कांग्रेस के प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे. वोटिंग आंकड़े बताते हैं कि अगर इस सीट पर जेएमएम और कांग्रेस ने गठबंधन के तहत प्रत्याशी उतारा होता तो बीजेपी को ये सीट निकालना मुश्किल हो जाता.

कैसे पड़ा गुमला नाम
आदिवासी बहुल गुमला जिला के मुख्य बाजार में कभी पशुओं का मेला लगा करता था. खास तौर से गाय की खरीद बिक्री होती थी. इस मेले को लोग गो मेला के नाम से जानते हैं. बाद में गो-मेला के आधार पर ही इस क्षेत्र का नाम गुमला पड़ा.

ये भी पढे़ं: बीजेपी कार्यकता सम्मेलन में गरजे राम कृपाल यादव, कहा- विपक्ष ने चोरी और भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया

बाबा टांगीनाथ हैं गुमला की पहचान
गुमला के डुमरी प्रखंड में पहाड़ पर स्थित है टांगीनाथ धाम. यहां एक त्रिशुल गड़ा हुआ है, जहां लोग पूजा करने के लिए दूर-दूर पहुंचते हैं. कहा जाता है कि यह त्रिशुल परशुराम की है जो पत्थर में अंदर तक गड़ी हुई है. यहां एएसआई ने खुदाई भी की थी. तब यहां से कई शिवलिंग मिले थे. यहां सावन महीने में एक महीने का मेला लगता है. शिवरात्रि के दिन भी विशेष मेला लगता है.

रांची: गुमला जिला में तीन विधानसभा सीटें हैं. गुमला, विशुनपुर और सिसई. पिछले दो चुनावों से इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है. इस सीट पर बीजेपी और जेएमएम के बीच कांटे की टक्कर होती रही है. साल 2000 के चुनाव के वक्त इस सीट पर बीजेपी के सुदर्शन भगत ने जेएमएम के बेरनार्ड मिंज को हराया था. आज सुदर्शन भगत लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र से बीजेपी के सांसद हैं.

2014 में मोदी के नेतृत्व में बनी पहली सरकार में सुदर्शन भगत को कैबिनेट में भी जगह मिली थी, लेकिन 2005 के चुनाव में जेएमएम के भूषण तिर्की की सुदर्शन भगत से कांटे की टक्कर हुई थी. अंतिम राउंड में सिर्फ 869 वोट के लीड के साथ भूषण तिर्की विजयी घोषित किए गये थे. 2009 में बीजेपी ने भूषण तिर्की को रोकने के लिए कमलेश उरांव पर दांव लगाया जो निशाने पर बैठा.

कमलेश उरांव ने भूषण तिर्की को भारी अंतर से शिकस्त दी थी. 2014 में मोदी लहर के बीच बीजेपी ने शिवशंकर उरांव को आजमाया. उनका सामना भी जेएमएम के भूषण तिर्की से ही हुआ, लेकिन नतीजा बीजेपी के पक्ष में गया. खास बात है कि गुमला में हुए पिछले दो चुनावों में कांग्रेस के प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे. वोटिंग आंकड़े बताते हैं कि अगर इस सीट पर जेएमएम और कांग्रेस ने गठबंधन के तहत प्रत्याशी उतारा होता तो बीजेपी को ये सीट निकालना मुश्किल हो जाता.

कैसे पड़ा गुमला नाम
आदिवासी बहुल गुमला जिला के मुख्य बाजार में कभी पशुओं का मेला लगा करता था. खास तौर से गाय की खरीद बिक्री होती थी. इस मेले को लोग गो मेला के नाम से जानते हैं. बाद में गो-मेला के आधार पर ही इस क्षेत्र का नाम गुमला पड़ा.

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बाबा टांगीनाथ हैं गुमला की पहचान
गुमला के डुमरी प्रखंड में पहाड़ पर स्थित है टांगीनाथ धाम. यहां एक त्रिशुल गड़ा हुआ है, जहां लोग पूजा करने के लिए दूर-दूर पहुंचते हैं. कहा जाता है कि यह त्रिशुल परशुराम की है जो पत्थर में अंदर तक गड़ी हुई है. यहां एएसआई ने खुदाई भी की थी. तब यहां से कई शिवलिंग मिले थे. यहां सावन महीने में एक महीने का मेला लगता है. शिवरात्रि के दिन भी विशेष मेला लगता है.

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रांची: गुमला जिला में तीन विधानसभा सीटें हैं. गुमला, विशुनपुर और सिसई. पिछले दो चुनावों से इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है. इस सीट पर बीजेपी और जेएमएम के बीच कांटे की टक्कर होती रही है. साल 2000 के चुनाव के वक्त इस सीट पर बीजेपी के सुदर्शन भगत ने जेएमएम के बेरनार्ड मिंज को हराया था. आज सुदर्शन भगत लोहरदगा लोकसभा क्षेत्र से बीजेपी के सांसद हैं. 

2014 में मोदी के नेतृत्व में बनी पहली सरकार में सुदर्शन भगत को कैबिनेट में भी जगह मिली थी, लेकिन 2005 के चुनाव में जेएमएम के भूषण तिर्की की सुदर्शन भगत से कांटे की टक्कर हुई थी. अंतिम राउंड में सिर्फ 869 वोट के लीड के साथ भूषण तिर्की विजयी घोषित किए गये थे. 2009 में बीजेपी ने भूषण तिर्की को रोकने के लिए कमलेश उरांव पर दांव लगाया जो निशाने पर बैठा. 

कमलेश उरांव ने भूषण तिर्की को भारी अंतर से शिकस्त दी थी. 2014 में मोदी लहर के बीच बीजेपी ने शिवशंकर उरांव को आजमाया. उनका सामना भी जेएमएम के भूषण तिर्की से ही हुआ, लेकिन नतीजा बीजेपी के पक्ष में गया. खास बात है कि गुमला में हुए पिछले दो चुनावों में कांग्रेस के प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे. वोटिंग आंकड़े बताते हैं कि अगर इस सीट पर जेएमएम और कांग्रेस ने गठबंधन के तहत प्रत्याशी उतारा होता तो बीजेपी को ये सीट निकालना मुश्किल हो जाता. 

कैसे पड़ा गुमला नाम

आदिवासी बहुल गुमला जिला के मुख्य बाजार में कभी पशुओं का मेला लगा करता था. खास तौर से गाय की खरीद बिक्री होती थी. इस मेले को लोग गो मेला के नाम से जानते हैं. बाद में गो-मेला के आधार पर ही इस क्षेत्र का नाम गुमला पड़ा. 

बाबा टांगीनाथ हैं गुमला की पहचान

गुमला के डुमरी प्रखंड में पहाड़ पर स्थित है टांगीनाथ धाम. यहां एक त्रिशुल गड़ा हुआ है, जहां लोग पूजा करने के लिए दूर-दूर पहुंचते हैं. कहा जाता है कि यह त्रिशुल परशुराम की है जो पत्थर में अंदर तक गड़ी हुई है. यहां एएसआई ने खुदाई भी की थी. तब यहां से कई शिवलिंग मिले थे. यहां सावन महीने में एक महीने का मेला लगता है. शिवरात्रि के दिन भी विशेष मेला लगता है. 


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