रांचीः एक तो पहले से ही बढ़ती महंगाई में मध्यमवर्ग को दाल रोटी का इंतजाम करने में कमर टूट रहा है. दूसरी ओर कोरोना काल में दवा निर्माता कंपनियों (Pharmaceutical Companies) ने पिछले दो साल यानी कोरोना काल में जिस तरह दवाओं की कीमत बढ़ाई है वह किसी मुसीबत से कम नहीं है. बीपी, शुगर से लेकर सर्दी खांसी के टॉनिक तक महंगे हो गए हैं.
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दवाइयों की बढ़ती कीमत ने आम लोगों को परेशान कर रखा है. मध्यम वर्ग इससे खासा परेशान है क्योंकि उन्हें ना तो सरकार की किसी जनकल्याणकारी योजना का लाभ मिलता है और ना ही उनकी आर्थिक स्थिति ऐसी होती है कि महंगी दवा ले सके. ऐसे में दवाइयों की बढ़ती कीमत एक बोझ बन जाता है. अपर बाजार में बीपी, सुगर की दवा ले रहे हैदर अली कहते हैं कि पहले काफी कम पैसे में महीने भर की दवा हो जाती थी पर अब मुश्किल होता है.
रोजमर्रा की कुछ ऐसी दवाइयां हैं, जिनकी कीमत आज काफी ज्यादा है. आइये आपको बताते हैं कि पहले उन दवाइयों की कीमत क्या थी और वर्तमान समय में इन दवाइयों के दाम क्या है. बीपी की दवा Amlodac At, पहले 125 रुपया प्रति पत्ता, अब 192 रुपया है. Levo cetrizine एलर्जी की दवा है, पहले कीमत 99 रुपया, अब 155 रुपया. शुगर की दवा Tribetrol, पहले 273 रुपया और अब 301 रुपया है. PAN 40, गैस की दवा पहले कीमत 138 रुपया, अब 149 रुपया. गैस की दवा Aciloc, पहले 24 रुपया औ अब 36 रुपया प्रति पत्ता. Zerodol-SP, दर्द और बुखार की दवा पहले 89 रुपया और अब 107 रुपया हो गया है. Dexorange सिरप (200ml), पहले 132 रुपया और अब 145 रुपया हो गया है. इसी तरह की ज्यादातर दवाइयों की कीमतों में उछाल हुआ है.
क्या कहते हैं दवा दुकानदार
दवाइयों की बढ़ती कीमत से ना सिर्फ आम जनता परेशान हैं बल्कि खुदरा दवा दुकानदार भी परेशान है. अपर बाजार के दवा दुकानदार सुरेश कुमार कहते हैं कि वह खुद परेशान हैं, क्योंकि हर दिन जब दवाइयों के दाम बढ़ते हैं तो ग्राहक से बहस भी हो जाती है.
क्या कहती हैं राज्य के औषधि नियंत्रक
औषधि नियंत्रक ऋतु सहाय ने कहा कि जरूरी दवाओं की कीमत NPPA (नेशनल फार्मास्यूटिकल प्राइसिंग अथॉरिटी) तय करती है. वहीं अन्य दवाओं की कीमत दवा कंपनियां तय करती हैं. ऐसे में राज्य के औषधि नियंत्रक का दवाइयों की कीमत तय करने या उसकी कैपिंग में कोई भूमिका नहीं है. राज्य औषधि नियंत्रक ने कहा कि उनके पास सिर्फ यह अधिकार है कि अगर कोई दुकानदार एमआरपी से अधिक की कीमत पर दवाई बेचता है तो वह कार्रवाई करे.
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दवाइयों की ओवर प्राइसिंग भी एक बड़ी समस्या
दवाइयों के खेल में एक बड़ी समस्या ओवर प्राइसिंग की है. खासकर ब्रांडेड जेनेरिक दवाओं के एमआरपी इतना अधिक प्रिंट कर दिया जाता है कि उसका 80% तक छूट का ऑफर दिया जाता है. लेकिन इस तरह की ओवर प्राइसिंग का नुकसान यह होता है कि ज्यादातर दवा दुकानदार एमआरपी पर दवा बेच भारी मुनाफा कमाते हैं और औषधि नियंत्रक कोई कार्रवाई नहीं कर सकती.अब सवाल यह है कि आखिर इतनी ओवर प्राइसिंग एमआरपी क्यों लिखी जाती है.