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झारखंड में खेतों में पड़ने लगी दरारें, किसानों को सता रहा 'अकाल' का डर

झारखंड में बारिश नहीं होने से किसानों को सूखे की चिंता सताने लगी है. मौसम विभाग की मानें, तो जून के महीने में लगभग 50 से 60 प्रतिशत बारिश में कमी देखी गई. वहीं, जुलाई के महीने में 40 फीसदी बारिश में कमी देखने को मिली

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Published : Jul 20, 2019, 1:32 PM IST

बारिश नहीं होने से किसानों को सूखे का डर सता रहा है

रांची: बारिश नहीं होने से किसानों को अब सूखे का डर सताने लगा है. इस बार झारखंड में मानसून देर से सक्रिय हुआ, जिसके बाद वो फिर कमजोर पड़ गया. इस वजह से खरीफ की बुवाई काफी पिछड़ गई है. इसका असर अगली फसल में भी साफ देखने को मिल सकता है. खरीफ फसल की देरी के कारण किसानों के माथे पर चिंता की लकीर साफ देखने को मिल रही है.

वीडियो में देखें पूरी खबर

राजधानी में इस बार पिछले साल की तुलना में सबसे कम बारिश हुई है. जुलाई महीने के शुरुआती दिनों में बारिश ने किसानों के मन में एक आस जगाई, जिसके बाद किसानों ने खेतों में बिचड़े का छिड़काव कर दिया. हालांकि रोपाई के समय मानसून ने किसानों के साथ पूरी तरह से दगा कर दिया. प्रगतिशील किसान नकुल महतो की मानें, तो 15 जुलाई तक धान की रोपाई पूरी हो जाती थी, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ. अब सुखाड़ की स्थिति से कोई नहीं बचा सकता.

इसके साथ ही बगोदर में भी किसान बारिश नहीं होने से खेतों में दरार पड़ने लगी है व धान का बीचड़ा मुरझाने लगा और मंडुवा, मकई आदि की फसलें भी दम तोड़ने लगी हैं. सूख रहे फसलों को बचाने की कवायद में किसान जुट गए हैं. जहां पानी की व्यवस्था है वहां पटवन कर मुरझा रही फसलों को बचाने की जदोजहद में किसान जुटे हुए हैं.

बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के मौसम वैज्ञानिक एके वादूद ने माना कि झारखंड में इस बार बहुत ही भयावह स्थिति बनी हुई है. जून के महीने में लगभग 50 से 60 प्रतिशत बारिश में कमी देखी गई. वहीं, जुलाई के महीने में 40 फीसदी बारिश में कमी देखने को मिली, जिसके कारण फसलों का अक्षादान नहीं हो पाया. उन्होंने कहा कि अभी भी किसान आकाश मिक खेती को अपनाकर नुकसान की भरपाई कर सकते हैं.

रांची: बारिश नहीं होने से किसानों को अब सूखे का डर सताने लगा है. इस बार झारखंड में मानसून देर से सक्रिय हुआ, जिसके बाद वो फिर कमजोर पड़ गया. इस वजह से खरीफ की बुवाई काफी पिछड़ गई है. इसका असर अगली फसल में भी साफ देखने को मिल सकता है. खरीफ फसल की देरी के कारण किसानों के माथे पर चिंता की लकीर साफ देखने को मिल रही है.

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राजधानी में इस बार पिछले साल की तुलना में सबसे कम बारिश हुई है. जुलाई महीने के शुरुआती दिनों में बारिश ने किसानों के मन में एक आस जगाई, जिसके बाद किसानों ने खेतों में बिचड़े का छिड़काव कर दिया. हालांकि रोपाई के समय मानसून ने किसानों के साथ पूरी तरह से दगा कर दिया. प्रगतिशील किसान नकुल महतो की मानें, तो 15 जुलाई तक धान की रोपाई पूरी हो जाती थी, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ. अब सुखाड़ की स्थिति से कोई नहीं बचा सकता.

इसके साथ ही बगोदर में भी किसान बारिश नहीं होने से खेतों में दरार पड़ने लगी है व धान का बीचड़ा मुरझाने लगा और मंडुवा, मकई आदि की फसलें भी दम तोड़ने लगी हैं. सूख रहे फसलों को बचाने की कवायद में किसान जुट गए हैं. जहां पानी की व्यवस्था है वहां पटवन कर मुरझा रही फसलों को बचाने की जदोजहद में किसान जुटे हुए हैं.

बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के मौसम वैज्ञानिक एके वादूद ने माना कि झारखंड में इस बार बहुत ही भयावह स्थिति बनी हुई है. जून के महीने में लगभग 50 से 60 प्रतिशत बारिश में कमी देखी गई. वहीं, जुलाई के महीने में 40 फीसदी बारिश में कमी देखने को मिली, जिसके कारण फसलों का अक्षादान नहीं हो पाया. उन्होंने कहा कि अभी भी किसान आकाश मिक खेती को अपनाकर नुकसान की भरपाई कर सकते हैं.

Intro:
प्लान की स्पेशल स्टोरी

रांची
बाइट--- एके वादूद बिरसा कृषि विश्वविद्यालय मौसम वैज्ञानिक
बाइट-- नकुल मेहता किसान प्रगतिशील



मॉनसून के दगाबाजी के बाद किसानों को अकाल का डर सताने लगा है जिसका मुख्य कारण है। मौसम मानसून में दगाबाजी ,आने वाले दो-चार दिन में अगर बारिश नहीं होती है तो किसनो अकाल का दर्द झेलना पड़ेगा । इस बार झारखंड में मानसून की सक्रिय देर से हुआ, जिसके बाद वह फिर मॉनसून कमजोर पड़ गया। जिसके कारण खरीफ की बुवाई काफी पिछड़ गई है। जिसका असर अगले फसल में भी साफ देखने को मिल सकता है खरीफ फसल की देरी के कारण किसानों के माथे पर चिंता की लकीर साफ देखने को मिल रही है। मानसून अपने निर्धारित तारीख 20 जून से झारखंड में प्रवेश कर गया था लेकिन उसके बाद मॉनसून कमजोर पड़ने करण पहले एक पखवाड़े तक इसमें अच्छी प्रगति नजर नहीं आई।


Body:जिले में इस बार पिछले वर्ष की तुलना सबसे कम बारिश हुई है। जुलाई महीने की शुरुआती दिनों में बारिश ने किसानों के मन में एक आस जगाई जिसके बाद किसानों ने खेतों में बिचड़ा का छिड़काव तो कर दिया लेकिन रोपाई के समय मॉनसून ने किसानों के साथ पूरी तरह से दगा कर दिया है प्रगतिशील किसान नकुल महतो की माने तो 15 जुलाई तक धान की रोपाई पूरा हो जाता था लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ है। अब सुखाड़ की स्थिति से कोई नहीं बचा सकता है। इस बार धान की खेती होना असंभव लग रहा है


Conclusion:बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के मौसम वैज्ञानिक एके वद्दुद माना कि झारखंड में इस बार बहुत ही भयावह स्थिति बनी हुई है जून के महीने में लगभग 50 से 60% बारिश में कमी देखी गई वही जुलाई के महीने में 40% बारिश में कमी देखने को मिला जिसके कारण फसलों का अक्षादान नहीं हो पाया उन्होंने कहा कि अभी भी किसान आकाश मिक खेती को अपनाकर नुकसान की भरपाई कर सकते हैं उन्होंने कहा कि झारखंड का इतिहास रहा है कि अगर पहले कम बारिश होती है तो बाद के दिनों में अच्छी बारिश होती है अभी भी बारिश होती है तो नुकसान का थोड़ा-बहुत भरपाई जरूर होगा
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