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क्या हेमंत सरकार खोलेगी जनसंवाद की शिकायतों की जांच वाली फाइल? झामुमो और कांग्रेस ने की मांग

बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री रघुवर दास के ड्रीम प्रोजेक्ट 'सीएम जनसंवाद केंद्र' के खिलाफ लगे आरोपों और जांच की फाइल खुलने के आसार बढ़ गए हैं. जनसंवाद में शिकायतों का दौर 2016 में शुरू हुआ और उनमें एक मोड़ तब आया जब 2017 में महिलाकर्मियों ने संचालकों के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए. उन महिलाकर्मियों ने अपनी शिकायत राज्य और केंद्र महिला आयोग तक पहुंचाई. लेकिन अभी तक उन शिकायतों का निष्पादन हुआ है कि नहीं इस पर पर्दा पड़ा हुआ.

investigation of complaints in ranchi
पूर्व सीएम रघुवर दास
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Published : Jan 20, 2020, 5:18 PM IST

रांची: पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री रघुवर दास के ड्रीम प्रोजेक्ट 'सीएम जनसंवाद केंद्र' के खिलाफ लगे आरोपों और जांच की फाइल खुलने के आसार बढ़ गए हैं. रांची के सूचना भवन स्थित जनसंवाद के दफ्तर में काम करने वाली तत्कालीन महिला कर्मचारियों की शिकायतों को लेकर राज्य सरकार गंभीर रुख अख्तियार करने के मूड में है.

देखिए स्पेशल स्टोरी

दरअसल, जनसंवाद में शिकायतों का दौर 2016 में शुरू हुआ और उनमें एक मोड़ तब आया जब 2017 में महिलाकर्मियों ने संचालकों के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए. उन महिलाकर्मियों ने अपनी शिकायत राज्य और केंद्र महिला आयोग तक पहुंचाई. लेकिन अभी तक उन शिकायतों का निष्पादन हुआ है कि नहीं इस पर पर्दा पड़ा हुआ.

क्या थी शिकायतें
जनसंवाद केंद्र की दो महिलाकर्मियों ने 19 जनवरी 2017 को राज्य महिला आयोग समेत आठ लोगों को पत्र लिखकर अपनी शिकायत दर्ज कराई थी. उसमें उन्होंने साफ लिखा था कि उनके साथ आपत्तिजनक व्यवहार किया जाता है. यहां तक कि जब वह बाथरूम की तरफ जाते हैं तो उनका पीछा किया जाता है. उन्होंने एक तरफ नियोक्ता द्वारा महिला कर्मियों को सामूहिक रूप से अपमानित करने का आरोप लगाया था. वहीं, दूसरी तरफ एक काम के लिए नियुक्तकर्मियों के असमान वेतन देने की बात कही थी.

कैबिनेट मिनिस्टर ने दी थी एसीबी से जांच की सलाह
हैरत की बात यह है कि रघुवर दास की कैबिनेट में मंत्री सरयू राय ने जनसंवाद में कथित अनियमितताओं को लेकर सरकार से एंटी करप्शन ब्यूरो से जांच कराने की सलाह दी थी. उन्होंने साफ तौर पर मुख्य सचिव को पत्र लिखकर कहा था कि जनसंवाद से संबंधित शिकायतों में कथित एजेंसी को बिना प्रॉपर टेंडर के काम दिए जाने की बात भी सामने आई है. उन्होंने कहा कि इस बाबत शिकायतकर्ता ने उन्हें एक पत्र भी लिखा है.

बिना प्रॉपर टेंडर के मिला था काम
तत्कालीन मंत्री सरयू राय ने इस बाबत एंटी करप्शन ब्यूरो में शिकायत से मामले के दर्ज कराने की मांग की थी. उन्होंने लिखा था कि एक शिकायतकर्ता ने साफ तौर पर उन्हें पत्र भी लिखा है. शिकायत में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि माइका एजुकेशन प्राइवेट लिमिटेड के पास प्रकाशित टेंडर में निर्धारित योग्यता नहीं थी. इसलिए उनकी नियमित रूप से नियुक्ति एक साल के लिए हुई थी. इसके साथ ही संतोषजनक काम होने पर एक साल का एक्सटेंशन देने का प्रावधान था.

हर बार बढ़े हुए मूल्य पर मिलता रहा एक्सटेंशन
मुख्यमंत्री जनसंवाद चला रही माइका कंपनी को 2015 के बाद हर बार बढ़ी हुए दर पर एक्सटेंशन मिला. सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार, 2015-16 में 1,52,17,884 रुपए का भुगतान किया गया. वहीं, 2017-18 में 1,66,68,000 का भुगतान किया गया.

ये भी पढ़ें: धनबादः टीवीएस शोरूम में लाखों की चोरी, दीवार काटकर चोरों ने दिया घटना को अंजाम
स्पेशल ऑडिट की भी मंत्री ने दी थी सलाह
मंत्री राय ने जनसंवाद को लेकर उसकी ऑडिट स्पेशल ऑडिटर द्वारा कराए जाने की जरूरत बताई थी. इसके साथ ही मुख्य सचिव के निर्देश पर बनी 3 सदस्य जांच समिति द्वारा दोष सिद्ध व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग भी की थी. राय ने सरकार को 2018 में पत्र लिखा था, लेकिन आज भी इस मामले में क्या कार्रवाई हुई है अभी तक इस पर पर्दा पड़ा हुआ है.

झामुमो और का्ंग्रेस ने की मांग
वहीं, इस मामले में झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक सुदिव्य कुमार सोनू ने कहा कि शुरुआती दौर में जनसंवाद कारगर साबित हो रहा था, लेकिन बाद में उसका दुरुपयोग होना शुरू हो गया. जिस तरह से सूचनाएं मिली हैं उसके संचालन करने वाले लोग सवालों के घेरे में आ रहे हैं. गिरिडीह से झामुमो विधायक ने कहा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पहले इससे जुड़ी तमाम विसंगतियों को दूर करना चाहिए. उसके बाद इसे शुरू करना चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर एजेंसी में किसी तरह की घटना घोटाले की बात है तो उसकी भी प्रॉपर जांच होनी चाहिए.

वहीं, झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता राजेश गुप्ता ने कहा कि पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार ने जनसंवाद के माध्यम से लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया. एक तरफ शिकायत जमा होती रही वहीं, दूसरी तरफ मुख्यमंत्री भरी मीटिंग में शिकायतकर्ताओं को कई बार कथित तौर पर अपमानित भी किया है.

ये भी पढ़ें: रांची में पकड़ा गया फर्जी IAS, रेडियो स्टेशन खुलवाने के नाम पर 35 लाख की ठगी कर हुआ था फरार
जनसंवाद केंद्र की परिकल्पना तत्कालीन बीजेपी सरकार में आम लोगों की समस्याओं से रूबरू होने के मकसद से की गई थी. मई 2015 में स्थापित हुई इस एजेंसी में बड़ी संख्या में शिकायत आई. उन शिकायतों को संबंधित विभाग के पास फॉरवर्ड किया जाता है.

रांची: पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री रघुवर दास के ड्रीम प्रोजेक्ट 'सीएम जनसंवाद केंद्र' के खिलाफ लगे आरोपों और जांच की फाइल खुलने के आसार बढ़ गए हैं. रांची के सूचना भवन स्थित जनसंवाद के दफ्तर में काम करने वाली तत्कालीन महिला कर्मचारियों की शिकायतों को लेकर राज्य सरकार गंभीर रुख अख्तियार करने के मूड में है.

देखिए स्पेशल स्टोरी

दरअसल, जनसंवाद में शिकायतों का दौर 2016 में शुरू हुआ और उनमें एक मोड़ तब आया जब 2017 में महिलाकर्मियों ने संचालकों के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए. उन महिलाकर्मियों ने अपनी शिकायत राज्य और केंद्र महिला आयोग तक पहुंचाई. लेकिन अभी तक उन शिकायतों का निष्पादन हुआ है कि नहीं इस पर पर्दा पड़ा हुआ.

क्या थी शिकायतें
जनसंवाद केंद्र की दो महिलाकर्मियों ने 19 जनवरी 2017 को राज्य महिला आयोग समेत आठ लोगों को पत्र लिखकर अपनी शिकायत दर्ज कराई थी. उसमें उन्होंने साफ लिखा था कि उनके साथ आपत्तिजनक व्यवहार किया जाता है. यहां तक कि जब वह बाथरूम की तरफ जाते हैं तो उनका पीछा किया जाता है. उन्होंने एक तरफ नियोक्ता द्वारा महिला कर्मियों को सामूहिक रूप से अपमानित करने का आरोप लगाया था. वहीं, दूसरी तरफ एक काम के लिए नियुक्तकर्मियों के असमान वेतन देने की बात कही थी.

कैबिनेट मिनिस्टर ने दी थी एसीबी से जांच की सलाह
हैरत की बात यह है कि रघुवर दास की कैबिनेट में मंत्री सरयू राय ने जनसंवाद में कथित अनियमितताओं को लेकर सरकार से एंटी करप्शन ब्यूरो से जांच कराने की सलाह दी थी. उन्होंने साफ तौर पर मुख्य सचिव को पत्र लिखकर कहा था कि जनसंवाद से संबंधित शिकायतों में कथित एजेंसी को बिना प्रॉपर टेंडर के काम दिए जाने की बात भी सामने आई है. उन्होंने कहा कि इस बाबत शिकायतकर्ता ने उन्हें एक पत्र भी लिखा है.

बिना प्रॉपर टेंडर के मिला था काम
तत्कालीन मंत्री सरयू राय ने इस बाबत एंटी करप्शन ब्यूरो में शिकायत से मामले के दर्ज कराने की मांग की थी. उन्होंने लिखा था कि एक शिकायतकर्ता ने साफ तौर पर उन्हें पत्र भी लिखा है. शिकायत में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि माइका एजुकेशन प्राइवेट लिमिटेड के पास प्रकाशित टेंडर में निर्धारित योग्यता नहीं थी. इसलिए उनकी नियमित रूप से नियुक्ति एक साल के लिए हुई थी. इसके साथ ही संतोषजनक काम होने पर एक साल का एक्सटेंशन देने का प्रावधान था.

हर बार बढ़े हुए मूल्य पर मिलता रहा एक्सटेंशन
मुख्यमंत्री जनसंवाद चला रही माइका कंपनी को 2015 के बाद हर बार बढ़ी हुए दर पर एक्सटेंशन मिला. सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार, 2015-16 में 1,52,17,884 रुपए का भुगतान किया गया. वहीं, 2017-18 में 1,66,68,000 का भुगतान किया गया.

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स्पेशल ऑडिट की भी मंत्री ने दी थी सलाह
मंत्री राय ने जनसंवाद को लेकर उसकी ऑडिट स्पेशल ऑडिटर द्वारा कराए जाने की जरूरत बताई थी. इसके साथ ही मुख्य सचिव के निर्देश पर बनी 3 सदस्य जांच समिति द्वारा दोष सिद्ध व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग भी की थी. राय ने सरकार को 2018 में पत्र लिखा था, लेकिन आज भी इस मामले में क्या कार्रवाई हुई है अभी तक इस पर पर्दा पड़ा हुआ है.

झामुमो और का्ंग्रेस ने की मांग
वहीं, इस मामले में झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक सुदिव्य कुमार सोनू ने कहा कि शुरुआती दौर में जनसंवाद कारगर साबित हो रहा था, लेकिन बाद में उसका दुरुपयोग होना शुरू हो गया. जिस तरह से सूचनाएं मिली हैं उसके संचालन करने वाले लोग सवालों के घेरे में आ रहे हैं. गिरिडीह से झामुमो विधायक ने कहा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पहले इससे जुड़ी तमाम विसंगतियों को दूर करना चाहिए. उसके बाद इसे शुरू करना चाहिए. उन्होंने कहा कि अगर एजेंसी में किसी तरह की घटना घोटाले की बात है तो उसकी भी प्रॉपर जांच होनी चाहिए.

वहीं, झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता राजेश गुप्ता ने कहा कि पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार ने जनसंवाद के माध्यम से लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया. एक तरफ शिकायत जमा होती रही वहीं, दूसरी तरफ मुख्यमंत्री भरी मीटिंग में शिकायतकर्ताओं को कई बार कथित तौर पर अपमानित भी किया है.

ये भी पढ़ें: रांची में पकड़ा गया फर्जी IAS, रेडियो स्टेशन खुलवाने के नाम पर 35 लाख की ठगी कर हुआ था फरार
जनसंवाद केंद्र की परिकल्पना तत्कालीन बीजेपी सरकार में आम लोगों की समस्याओं से रूबरू होने के मकसद से की गई थी. मई 2015 में स्थापित हुई इस एजेंसी में बड़ी संख्या में शिकायत आई. उन शिकायतों को संबंधित विभाग के पास फॉरवर्ड किया जाता है.

Intro:रांची। पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार के मुख्यमंत्री रघुवर दास के ड्रीम प्रोजेक्ट 'सीएम जनसंवाद केंद्र' के खिलाफ लगे आरोपों और जांच की फाइल खुलने के आसार बढ़ गए हैं। रांची के सूचना भवन स्थित जनसंवाद के दफ्तर में काम करने वाली तत्कालीन महिला कर्मचारियों की शिकायतों को लेकर राज्य सरकार गंभीर रुख अख्तियार करने के मूड में है।

दरअसल जनसंवाद में शिकायतों का दौर 2016 में शुरू हुआ और उनमें एक मोड़ तब आया जब 2017 में महिला कर्मियों ने संचालकों के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए। उन महिला कर्मियों ने अपनी शिकायत राज्य और केंद्र महिला आयोग सुमित प्रधानमंत्री नरेंद्र तक को लेकिन अभी तक उन शिकायतों का निष्पादन हुआ है कि नहीं इस पर पर्दा पड़ा हुआ।

क्या थी शिकायतें
दरअसल जनसंवाद केंद्र की दो महिला कर्मियों ने 19 जनवरी 2017 को राज्य महिला आयोग समेत आठ लोगों को पत्र लिखकर अपनी शिकायत दर्ज कराई थी। उसमें उन्होंने साफ लिखा था कि उनके साथ आपत्तिजनक व्यवहार किया जाता है। यहां तक कि जब वह बाथरूम की तरफ जाते हैं तो उनका पीछा किया जाता है। उन्होंने एक तरफ नियोक्ता द्वारा महिला कर्मियों को सामूहिक रूप से अपमानित करने का आरोप लगाया था। वहीं दूसरी तरफ एक काम के लिए नियुक्त कर्मियों के असमान वेतन देने की बात कही थी।



Body:तत्कालीन कैबिनेट मिनिस्टर ने दी थी एसीबी से जांच की सलाह
हैरत की बात यह है कि रघुवर दास की कैबिनेट में मंत्री सरयू राय ने जनसंवाद में कथित अनियमितताओं को लेकर सरकार से एंटी करप्शन ब्यूरो से जांच कराने की सलाह दी थी। उन्होंने साफ तौर पर मुख्य सचिव को पत्र लिखकर कहा था कि जनसंवाद से संबंधित शिकायतों में कथित एजेंसी को बिना प्रॉपर टेंडर के काम दिए जाने की बात भी सामने आई है उन्होंने कहा कि इस बाबत शिकायतकर्ता ने उन्हें एक पत्र भी लिखा है बिना प्रॉपर टेंडर के मिला था काम तत्कालीन मंत्री सरयू राय ने इस बाबत एंटी करप्शन ब्यूरो में शिकायत से मामले के दर्ज कराने की मांग की थी उन्होंने लिखा था कि एक शिकायतकर्ता ने साफ तौर पर शिकायतकर्ता ने उन्हें पत्र भी लिखा है शिकायत में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है की माइका एजुकेशन प्राइवेट लिमिटेड के पास प्रकाशित टेंडर में निर्धारित योग्यता नहीं थी इसलिए उनकी नियमित रूप से नियुक्ति 1 साल के लिए हुई थी। साथ ही संतोषजनक काम होने पर 1 साल का एक्सटेंशन देने का प्रावधान था।

हर बार बढ़े हुए मूल्य पर मिलता रहा एक्सटेंशन
मुख्यमंत्री जनसंवाद चला रही माइका कंपनी को 2015 के बाद हर बार बढ़ी हुए दर पर एक्सटेंशन मिला। सूचना के अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार 2015-16 में 1,52,17884 रुपए का भुगतान किया गया वहीं 2017-18 में 1,66,68000 का भुगतान किया गया।

स्पेशल ऑडिट की भी मंत्री ने दी थी सलाह
मंत्री राय ने जनसंवाद को लेकर उसकी ऑडिट स्पेशल ऑडिटर द्वारा कराए जाने की जरूरत बताई थी। साथ ही मुख्य सचिव के निर्देश पर बनी 3 सदस्य जांच समिति द्वारा दोष सिद्ध व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग भी की थी। राय ने सरकार को 2018 में पत्र लिखा था। लेकिन आज भी इस मामले में क्या कार्रवाई हुई है अभी तक इस पर पर्दा पड़ा हुआ है।



Conclusion:जांच के बाद शुरू हो 181, झामुमो और काँग्रेस ने की मांग
वहीं इस मामले में झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक सुदिव्य कुमार सोनू ने कहा कि शुरुआती दौर में जनसंवाद कारगर साबित हो रहा था लेकिन बाद में उसका दुरुपयोग होना शुरू हो गया। जिस तरह से सूचनाएं मिली हैं उसके संचालन करने वाले लोग सवालों के घेरे में आ रहे हैं। गिरिडीह से झामुमो विधायक ने कहा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को पहले इससे जुड़ी तमाम विसंगतियों को दूर करना चाहिए। उसके बाद इसे शुरू करना चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर एजेंसी में किसी तरह की घटना घोटाले की बात है तो उसकी भी प्रॉपर जांच होनी चाहिए।
वहीं झारखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता राजेश गुप्ता ने कहा कि पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार ने जन संवाद के माध्यम से लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया। एक तरफ शिकायत जमा होती रही वहीं दूसरी तरफ मुख्यमंत्री भरी मीटिंग में शिकायतकर्ताओं को कई बार कथित तौर पर अपमानित भी किया है।

दरअसल जनसंवाद केंद्र की परिकल्पना तत्कालीन बीजेपी सरकार में आम लोगों की समस्याओं से रूबरू होने के मकसद से की गई थी। मई 2015 में स्थापित हुई इस एजेन्सी में बड़ी संख्या में कंप्लेन आए। उन शिकायतों को संबंधित विभाग के पास फॉरवर्ड किया जाता है।
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