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बिरसा हरित ग्राम योजना के जड़ में घुसा भ्रष्टाचार का दीमक, टिंबर प्लांटेशन मद में करीब 8 करोड़ रु. स्वाहा, जिम्मेवार कौन ?

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Published : Aug 30, 2021, 5:11 PM IST

कोरोना काल में गांव के लोगों को रोजगार देने और किसानों को समृद्ध बनाने के लिए शुरू कि बिरसा हरित ग्राम योजना फ्लॉप साबित हो रही है. इस योजना के तहत लगाए गए 1 लाख 21 हजार 186 प्लांट के सूखने और 8 करोड़ रुपया के बर्बाद होने के बाद पूरी योजना में भ्रष्टाचार की आशंका जताई जा रही है.

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बिरसा हरित ग्राम योजना में भ्रष्टाचार

रांची: कोरोना काल में गांव के लोगों को रोजगार देने और किसानों को समृद्ध बनाने के लिए बिरसा हरित ग्राम योजना 4 मई 2020 को शुरू की गई थी. इसके तहत फलदार और टिंबर (इमारती लकड़ी) प्लांट लगाया जाना था. लेकिन टिंबर प्लांट लगाने की मुहिम फ्लॉप साबित हो रही है. आश्चर्य की बात यह है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और ग्रामीण विकास मंत्री, आलमगीर आलम के विधानसभा क्षेत्र में भी योजना दम तोड़ने की कगार पर पहुंच चुकी है. दिसंबर 2020 से जनवरी 2021 के बीच हुए सोशल ऑडिट की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है.

इसे भी पढ़ें- पाकुड़: ग्रामीण विकास मंत्री आलमगीर आलम ने किया पौधारोपण, बोले -मजदूरी के साथ मिलेगी खुशहाली

सूख गए 1 लाख 21 हजार प्लांट

पिछले साल 5 लाख 28 हजार 043 टिंबर प्लांट लगाए गए थे. इनमें से 1 लाख 21 हजार 186 प्लांट या तो सूख गए या जानवर खा गए. इतने पौधों को खरीदने में 1.81 करोड़ रु. बर्बाद हो गए. बर्बादी का एक और डाटा है. एक गड्ढा तैयार करने में दो मजदूरों को पसीना बहाना पड़ता है. एक मजदूर को पिछले साल 194 रु. मिलता था. इस हिसाब 1 लाख 21 हजार 186 गड्ढा करने के मद में करीब 4.70 करोड़ रु. खर्च किए गए. इसके अलावा पौधों को बचाने के लिए कीटनाशक और खाद के लिए भी पैसे खर्च किए गए.

8 करोड़ रुपये स्वाहा

एक अनुमान के मुताबिक पिछले साल टिंबर प्लांट लगाने के नाम पर करीब 8 करोड़ रु. स्वाहा हो गए. साफ शब्दों में कहे तो भ्रष्टाचार का दीमक चट कर गए. लेकिन आश्चर्य है कि इतनी बड़ी लापरवाही के बाद भी ना तो किसी की जवाबदेही फिक्स हुई और ना ही किसी पर कार्रवाई.

इसे भी पढ़ें- मुख्यमंत्री बिरसा हरित ग्राम योजना का लाभुकों को नहीं हो रहा भुगतान

पाकुड़ में सूखे सबसे ज्यादा पौधे

सोशल ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक पाकुड़ जिला में सबसे ज्यादा 70.24 फीसदी टिंबर प्लांट सूख गए थे. पाकुड़ में टिंबर के सिर्फ 15,100 प्लांट लगाए गए थे. इनमें से 10,606 पौधे मर गए. दूसरे नंबर पर रहा धनबाद जिला. यहां महज 3,151 टिंबर प्लांट लगाए गए और 1,501 पौधे सूख गए. धनबाद का मॉर्टलिटी रेट 47.62 प्रतिशत रहा. तीसरे स्थान पर वह जिला रहा, जहां के बरहेट विधानसभा क्षेत्र का मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन नेतृत्व करते हैं. यहां 44.89 प्रतिशत टिंबर के प्लांट बर्बाद हो गए. साहिबगंज में 7,906 टिंबर प्लांट लगाए गए थे. इनमें से 3,550 पौधे मर गए.

हद तो यह है कि पिछले साल दुमका जिले में इमारती लकड़ी का एक भी पौधा नहीं लगा. दूसरी तरफ सिमडेगा में 35 प्रतिशत, रामगढ़ में 29 प्रतिशत, पलामू में 25 प्रतिशत, रांची में 24 प्रतिशत, चतरा, गढ़वा और पश्चिमी सिंहभूम में 22-22 प्रतिशत टिंबर प्लांट बर्बाद हो गए. जनवरी 2021 में अंतिम सोशल ऑडिट होने तक राज्य के सभी 24 जिलों में टिंबर के कुल 5 लाख 28 हजार 043 पौधे लगाए गए थे. इनमें से 1 लाख 21 हजार 186 यानी करीब 23 प्रतिशत पौधे सूख गए.

इसे भी पढ़ें- सूख रहे हैं बिरसा हरित क्रांति योजना के तहत लगाए पौधे, रांची से पहुंची टीम कर रही है जांच

हेमंत सोरेन के सुझाव पर शुरू हुई थी योजना

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के सुझाव पर 4 मई 2020 को बिरसा हरित ग्राम योजना शुरू करने की घोषणा हुई थी. मनरेगा से जोड़कर शुरू की गई इस योजना का मकसद बेहद नेक था. लेकिन धरातल पर आते ही इसकी जड़ों में भ्रष्टाचार का दीमक जा घुसा है. क्योंकि बिरसा हरित ग्राम योजना की नियमावली में साफ वर्णित है कि सुखाड़ या किसी बड़ी विपदा की सूरत में ही अधिकतम 5 प्रतिशत पौधे बर्बाद हो जाते हैं तो उसे सामान्य माना जाएगा. लेकिन यहां तो उल्टी गंगा बह रही है.

जब से यह योजना शुरू हुई है तब से अबतक झारखंड में अच्छी बारिश रिकॉर्ड हुई है. इसके बावजूद पूरे राज्य में 23 प्रतिशत टिंबर प्लांट का सूख जाना, यह बताने के लिए काफी है कि इस योजना के नाम पर क्या हो रहा है. हालांकि टिंबर प्लांटेशन के मामले में इस साल का अबतक का आंकड़ा संतोषप्रद रहा है. अबतक 83 प्रतिशत पौधे लगाए जा चुके हैं. अब इंतजार है सोशल ऑडिट का, जो इस मुहिम की सच्ची तस्वीर सामने लेकर आएगा.

रांची: कोरोना काल में गांव के लोगों को रोजगार देने और किसानों को समृद्ध बनाने के लिए बिरसा हरित ग्राम योजना 4 मई 2020 को शुरू की गई थी. इसके तहत फलदार और टिंबर (इमारती लकड़ी) प्लांट लगाया जाना था. लेकिन टिंबर प्लांट लगाने की मुहिम फ्लॉप साबित हो रही है. आश्चर्य की बात यह है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और ग्रामीण विकास मंत्री, आलमगीर आलम के विधानसभा क्षेत्र में भी योजना दम तोड़ने की कगार पर पहुंच चुकी है. दिसंबर 2020 से जनवरी 2021 के बीच हुए सोशल ऑडिट की रिपोर्ट में इस बात का खुलासा हुआ है.

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सूख गए 1 लाख 21 हजार प्लांट

पिछले साल 5 लाख 28 हजार 043 टिंबर प्लांट लगाए गए थे. इनमें से 1 लाख 21 हजार 186 प्लांट या तो सूख गए या जानवर खा गए. इतने पौधों को खरीदने में 1.81 करोड़ रु. बर्बाद हो गए. बर्बादी का एक और डाटा है. एक गड्ढा तैयार करने में दो मजदूरों को पसीना बहाना पड़ता है. एक मजदूर को पिछले साल 194 रु. मिलता था. इस हिसाब 1 लाख 21 हजार 186 गड्ढा करने के मद में करीब 4.70 करोड़ रु. खर्च किए गए. इसके अलावा पौधों को बचाने के लिए कीटनाशक और खाद के लिए भी पैसे खर्च किए गए.

8 करोड़ रुपये स्वाहा

एक अनुमान के मुताबिक पिछले साल टिंबर प्लांट लगाने के नाम पर करीब 8 करोड़ रु. स्वाहा हो गए. साफ शब्दों में कहे तो भ्रष्टाचार का दीमक चट कर गए. लेकिन आश्चर्य है कि इतनी बड़ी लापरवाही के बाद भी ना तो किसी की जवाबदेही फिक्स हुई और ना ही किसी पर कार्रवाई.

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पाकुड़ में सूखे सबसे ज्यादा पौधे

सोशल ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक पाकुड़ जिला में सबसे ज्यादा 70.24 फीसदी टिंबर प्लांट सूख गए थे. पाकुड़ में टिंबर के सिर्फ 15,100 प्लांट लगाए गए थे. इनमें से 10,606 पौधे मर गए. दूसरे नंबर पर रहा धनबाद जिला. यहां महज 3,151 टिंबर प्लांट लगाए गए और 1,501 पौधे सूख गए. धनबाद का मॉर्टलिटी रेट 47.62 प्रतिशत रहा. तीसरे स्थान पर वह जिला रहा, जहां के बरहेट विधानसभा क्षेत्र का मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन नेतृत्व करते हैं. यहां 44.89 प्रतिशत टिंबर के प्लांट बर्बाद हो गए. साहिबगंज में 7,906 टिंबर प्लांट लगाए गए थे. इनमें से 3,550 पौधे मर गए.

हद तो यह है कि पिछले साल दुमका जिले में इमारती लकड़ी का एक भी पौधा नहीं लगा. दूसरी तरफ सिमडेगा में 35 प्रतिशत, रामगढ़ में 29 प्रतिशत, पलामू में 25 प्रतिशत, रांची में 24 प्रतिशत, चतरा, गढ़वा और पश्चिमी सिंहभूम में 22-22 प्रतिशत टिंबर प्लांट बर्बाद हो गए. जनवरी 2021 में अंतिम सोशल ऑडिट होने तक राज्य के सभी 24 जिलों में टिंबर के कुल 5 लाख 28 हजार 043 पौधे लगाए गए थे. इनमें से 1 लाख 21 हजार 186 यानी करीब 23 प्रतिशत पौधे सूख गए.

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हेमंत सोरेन के सुझाव पर शुरू हुई थी योजना

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के सुझाव पर 4 मई 2020 को बिरसा हरित ग्राम योजना शुरू करने की घोषणा हुई थी. मनरेगा से जोड़कर शुरू की गई इस योजना का मकसद बेहद नेक था. लेकिन धरातल पर आते ही इसकी जड़ों में भ्रष्टाचार का दीमक जा घुसा है. क्योंकि बिरसा हरित ग्राम योजना की नियमावली में साफ वर्णित है कि सुखाड़ या किसी बड़ी विपदा की सूरत में ही अधिकतम 5 प्रतिशत पौधे बर्बाद हो जाते हैं तो उसे सामान्य माना जाएगा. लेकिन यहां तो उल्टी गंगा बह रही है.

जब से यह योजना शुरू हुई है तब से अबतक झारखंड में अच्छी बारिश रिकॉर्ड हुई है. इसके बावजूद पूरे राज्य में 23 प्रतिशत टिंबर प्लांट का सूख जाना, यह बताने के लिए काफी है कि इस योजना के नाम पर क्या हो रहा है. हालांकि टिंबर प्लांटेशन के मामले में इस साल का अबतक का आंकड़ा संतोषप्रद रहा है. अबतक 83 प्रतिशत पौधे लगाए जा चुके हैं. अब इंतजार है सोशल ऑडिट का, जो इस मुहिम की सच्ची तस्वीर सामने लेकर आएगा.

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