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लापरवाह हेल्थ सिस्टम ने पहले कोरोना मरीज की ली जान, मौत के बाद भी 12 घंटे तक प्राइवेट गाड़ी में पड़ा रहा शव

रांची के पिस्का मोड़ के एक कोरोना मरीज की सिस्टम की लापरवाही की वजह से मौत हो गई. रांची के निजी अस्पतालों और सरकारी अस्पतालों का अमानवीय चेहरा देखने को मिला. समय पर इलाज नहीं होने के कारण कोरोना मरीज की मौत हो गई और घंटों तक शव वाहन में पड़ा रहा.

corona patient died due to negligence of health system in ranchi
कोरोना मरीज की मौत
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Published : Jul 31, 2020, 11:48 AM IST

रांची: ऐसे तो राज्य सरकार और स्वास्थ्य विभाग कोरोना के मरीजों के बेहतर इलाज के लिए लगातार दावे कर रही है. राज्य के सभी अस्पतालों को सख्त दिशा-निर्देश भी दे रहे हैं, ताकि कोरोना के मरीजों का समुचित इलाज हो. स्वास्थ विभाग ने पिछले दिनों यह निर्देश दिया था कि सभी निजी अस्पताल कोरोना के पॉजिटिव मरीज का इलाज करेंगे और अगर पॉजिटिव मरीज को किसी अन्य बीमारी की समस्या है तो उसका भी समुचित इलाज होगा. पिछले दिनों राजधानी के पिस्का मोड़ के 50 साल के एक कोरोना पॉजिटिव मरीज के साथ राजधानी के निजी अस्पतालों और सरकारी अस्पतालों का अमानवीय चेहरा नजर आया.

मरीज को एडमिट करने से किया इनकार

दरअसल बुधवार को पिस्का मोड़ के एक शख्स को अचानक सांस लेने में समस्या आने लगी. इसके बाद उसे रातू के देवकमल अस्पताल ले जाया गया. जहां डॉक्टरों ने उसे कोरोना जांच कराने के नाम पर एडमिट करने से मना कर दिया. उसके बाद मरीज के परिजन गुरुनानक अस्पताल ले गए. वहां पर अस्पताल प्रबंधन ने मरीज की कोरोना जांच की जो कि पॉजिटिव पाया गया. पॉजिटिव आने के बाद गुरुनानक अस्पताल ने मरीज को एडमिट करने से इनकार कर दिया.

लापरवाही के कारण मरीज की मौत

मरीज के परिजन परेशान होकर धुर्वा स्थित पारस अस्पताल पहुंचे. जहां पर इलाज के दौरान बुधवार की रात मरीज की जान चली गई. मरीज के परिजनों ने बताया कि धुर्वा के पारस अस्पताल में डॉक्टरों ने ऑक्सीजन सिलिंडर अचानक ही खोल दिया. जिससे मरीज की मौत हो गई. मौत के बाद पारस अस्पताल वालों ने मरीज के शव को रिम्स अस्पताल भेज दिया. वहां से एंबुलेंस नहीं मिलने पर निजी गाड़ी में मरीज के शव को रिम्स ले जाया गया. यहां पर भी सरकारी कुव्य्वस्था का आलम देखने को मिला.

12 घंटे तक पड़ा रहा वाहन में शव

मरीज के परिजन शव को मॉर्चरी में रखने के लिए लगातार गुहार लगाते रहे लेकिन रिम्स प्रबंधन की ओर से घंटों तक कोई सुध लेने वाला नहीं था. जिस कारण कोरोना पॉजिटिव मृतक का शव रात भर निजी गाड़ी में ही पड़ा रहा. अगले दिन गुरुवार को मामले की जानकारी मिलते हैं इंसीडेंट कमांडर और बड़गाई अंचलाधिकारी शैलेश कुमार ने त्वरित संज्ञान लेते हुए डेड बॉडी को मॉर्चरी में रखवाया और अंतिम संस्कार करवाने की तैयारी में जुट गए.

अस्पताल प्रबंधन नहीं है जिम्मेदार

वहीं, पूरे मामले पर रिम्स प्रबंधन का कहना है कि जब कोरोना के पॉजिटिव मरीज की मौत हो जाती है तो फिर उसकी जिम्मेदारी अस्पताल प्रबंधन की नहीं होती है. उसकी जिम्मेदारी जिला प्रशासन की होती है ताकि कोविड-नियमावली के अनुसार मृतक का अंतिम संस्कार हो सके. लेकिन ऐसे में यह सवाल बनता है कि जब मरीज की डेड बॉडी बुधवार की देर रात ही रिम्स अस्पताल पहुंच गयी थी, तो मानवता के आधार पर रिम्स प्रबंधन को शव अपनी व्यवस्था के हिसाब से मॉर्चरी या शवदाह गृह में रखवा देनी चाहिए ना कि सरकारी व्यवस्था का हवाला देते हुए मुंह मोड़ लेना था.

ये भी देखें- झारखंड में 140 नए डॉक्टर की नियुक्ति, मेडिकल कॉलेज में देंगे सेवा

ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि एक तरफ स्वास्थ्य विभाग निजी अस्पताल से लेकर सरकारी अस्पतालों के लिए यह दिशा निर्देश देता है कि कोरोना के मरीजों के साथ दुर्व्यवहार ना हो लेकिन राजधानी के पिस्का मोड़ निवासी एक कोरोना पॉजिटिव मरीज के साथ जिस तरह का व्यवहार हुआ, वह निश्चित रूप से पूरे स्वास्थ्य व्यवस्था पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है.

रांची: ऐसे तो राज्य सरकार और स्वास्थ्य विभाग कोरोना के मरीजों के बेहतर इलाज के लिए लगातार दावे कर रही है. राज्य के सभी अस्पतालों को सख्त दिशा-निर्देश भी दे रहे हैं, ताकि कोरोना के मरीजों का समुचित इलाज हो. स्वास्थ विभाग ने पिछले दिनों यह निर्देश दिया था कि सभी निजी अस्पताल कोरोना के पॉजिटिव मरीज का इलाज करेंगे और अगर पॉजिटिव मरीज को किसी अन्य बीमारी की समस्या है तो उसका भी समुचित इलाज होगा. पिछले दिनों राजधानी के पिस्का मोड़ के 50 साल के एक कोरोना पॉजिटिव मरीज के साथ राजधानी के निजी अस्पतालों और सरकारी अस्पतालों का अमानवीय चेहरा नजर आया.

मरीज को एडमिट करने से किया इनकार

दरअसल बुधवार को पिस्का मोड़ के एक शख्स को अचानक सांस लेने में समस्या आने लगी. इसके बाद उसे रातू के देवकमल अस्पताल ले जाया गया. जहां डॉक्टरों ने उसे कोरोना जांच कराने के नाम पर एडमिट करने से मना कर दिया. उसके बाद मरीज के परिजन गुरुनानक अस्पताल ले गए. वहां पर अस्पताल प्रबंधन ने मरीज की कोरोना जांच की जो कि पॉजिटिव पाया गया. पॉजिटिव आने के बाद गुरुनानक अस्पताल ने मरीज को एडमिट करने से इनकार कर दिया.

लापरवाही के कारण मरीज की मौत

मरीज के परिजन परेशान होकर धुर्वा स्थित पारस अस्पताल पहुंचे. जहां पर इलाज के दौरान बुधवार की रात मरीज की जान चली गई. मरीज के परिजनों ने बताया कि धुर्वा के पारस अस्पताल में डॉक्टरों ने ऑक्सीजन सिलिंडर अचानक ही खोल दिया. जिससे मरीज की मौत हो गई. मौत के बाद पारस अस्पताल वालों ने मरीज के शव को रिम्स अस्पताल भेज दिया. वहां से एंबुलेंस नहीं मिलने पर निजी गाड़ी में मरीज के शव को रिम्स ले जाया गया. यहां पर भी सरकारी कुव्य्वस्था का आलम देखने को मिला.

12 घंटे तक पड़ा रहा वाहन में शव

मरीज के परिजन शव को मॉर्चरी में रखने के लिए लगातार गुहार लगाते रहे लेकिन रिम्स प्रबंधन की ओर से घंटों तक कोई सुध लेने वाला नहीं था. जिस कारण कोरोना पॉजिटिव मृतक का शव रात भर निजी गाड़ी में ही पड़ा रहा. अगले दिन गुरुवार को मामले की जानकारी मिलते हैं इंसीडेंट कमांडर और बड़गाई अंचलाधिकारी शैलेश कुमार ने त्वरित संज्ञान लेते हुए डेड बॉडी को मॉर्चरी में रखवाया और अंतिम संस्कार करवाने की तैयारी में जुट गए.

अस्पताल प्रबंधन नहीं है जिम्मेदार

वहीं, पूरे मामले पर रिम्स प्रबंधन का कहना है कि जब कोरोना के पॉजिटिव मरीज की मौत हो जाती है तो फिर उसकी जिम्मेदारी अस्पताल प्रबंधन की नहीं होती है. उसकी जिम्मेदारी जिला प्रशासन की होती है ताकि कोविड-नियमावली के अनुसार मृतक का अंतिम संस्कार हो सके. लेकिन ऐसे में यह सवाल बनता है कि जब मरीज की डेड बॉडी बुधवार की देर रात ही रिम्स अस्पताल पहुंच गयी थी, तो मानवता के आधार पर रिम्स प्रबंधन को शव अपनी व्यवस्था के हिसाब से मॉर्चरी या शवदाह गृह में रखवा देनी चाहिए ना कि सरकारी व्यवस्था का हवाला देते हुए मुंह मोड़ लेना था.

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ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि एक तरफ स्वास्थ्य विभाग निजी अस्पताल से लेकर सरकारी अस्पतालों के लिए यह दिशा निर्देश देता है कि कोरोना के मरीजों के साथ दुर्व्यवहार ना हो लेकिन राजधानी के पिस्का मोड़ निवासी एक कोरोना पॉजिटिव मरीज के साथ जिस तरह का व्यवहार हुआ, वह निश्चित रूप से पूरे स्वास्थ्य व्यवस्था पर एक बड़ा सवाल खड़ा करता है.

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