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झारखंड में विलुप्त हो रही जनजातीय भाषा, जानिए बचाने की कैसे हो रही कोशिश

भारत में पिछले 50 सालों में 20 फीसदी भाषा विलुप्त हो गई है. झारखंड में भी आदिम जनजाति से जुड़ी भाषा (Tribal Language) और बोली विलुप्ति के कगार पर है. उसे बचाने के लिए कई लेखक लगातार प्रयासरत हैं. झारखंड स्थापना दिवस के दिन वैसे लेखकों को राज्यपाल रमेश बैस और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सम्मानित किया है.

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लेखकों को सम्मान
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Published : Nov 16, 2021, 3:50 PM IST

रांची: किसी भी समाज के लिए भाषा और समाज वहां के लिए रीढ़ मानी जाती है. लेकिन यदि यही लुप्त हो जाय तो उस समाज का क्या होगा यह कल्पना की जा सकती है. लुप्त हो रहे भाषा और बोली भारत सहित पूरी दुनियां के लिए आज के समय में विशेष चिंता का कारण है. यूनेस्को के रिपोर्ट के अनुसार सबसे ज्यादा विलुप्त हो रहे भाषा में भारत दुनियां में नंबर वन पर है. उसी तरह दूसरे नंबर पर अमेरिका और तीसरे नंबर पर इंडोनेशिया है.

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आंकड़ों के मुताबिक पिछले 50 साल में भारत की करीब 20 फीसदी भाषाएं विलुप्त हो गई हैं. विलुप्त हो रहे भाषाओं से झारखंड अछुता नहीं हैं. यहां भी जनजातीय क्षेत्रों में बोली जानेवाली कई भाषाएं विलुप्ति के कगार पर हैं. इन्हें संरक्षित करने का प्रयास झारखंड के ऐसे लोगों ने किया है जो ना तो साहित्य क्षेत्र से जुड़े हैं और ना ही कोई विशेष योग्यताधारी हैं. ग्रामीण परिवेश में जीवन यापन करते हुए इन लोगों ने ना केवल चित्रावली आधारित किताब तैयार किया है, बल्कि इन लुप्त होते भाषाओं का व्याकरण की रचना कर एक अभिनव प्रयोग किया है.

देखें पूरी खबर



राज्य स्थापना दिवस पर मिला सम्मान

प्रोजेक्ट भवन में सोमवार को आयोजित मुख्य कार्यक्रम में सबसे आकर्षण का केन्द्र लुप्त होते झारखंड के जनजातीय भाषाओं को बचाने के लिए लोगों द्वारा किए गए प्रयास था. राज्यपाल रमेश बैस और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस दौरान लुप्त हो रहे क्षेत्रीय भाषाओं के संरक्षण के उद्देश्य से उन भाषाओं के व्याकरण और चित्रकथा पर लिखी गई किताबों का ना केवल विमोचन किया, बल्कि उनके रचनाकार को सम्मानित करते हुए एक-एक लाख रुपये की राशि देने की घोषणा की. झारखंड के लुप्त हो रहे जिन
45 जनजातीय भाषाओं के किताब और व्याकरण का विमोचन किया गया उनमें मालतो, भूमिज, आसूरी, बिरहोरी आदि भाषा की किताबें शामिल हैं. सबसे खास बात यह है कि इन किताबों को लिखनेवाले सामान्य ग्रामीण लेखक हैं. जो घरेलू कामकाज के साथ डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान के सहयोग से एतिहासिक कार्य को किया है.

इसे भी पढे़ं: Jharkhand Foundation Day 2021: झारखंड मंत्रालय में कार्यक्रम का आयोजन, हाईस्कूल के शिक्षकों को दिया गया नियुक्ति पत्र

लेखकों का बढ़ेगा मनोबल

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के हाथों सम्मानित होनेवाले गुमला के छत्रपाल बिरहोर की मानें तो वे रस्सी तैयार करने का काम करते हैं. उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि उन्हें ऐसा सम्मान मिलेगा. इसी तरह रमा पहाड़िया और सुषमा असुर ने भी सरकार के इस पहल की सराहना की. वहीं डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान के निदेशक डॉ रणेंद्र कुमार ने मुख्यमंत्री द्वारा इन रचनाकारों को एक-एक लाख रुपये देने की घोषणा का स्वागत करते हुए कहा कि इससे इन लेखकों का मनोबल बढेगा.



विलुप्त होती झारखंड की आदिम जनजाति से जुड़ी भाषा

झारखंड की कुल आबादी में करीब 27 फीसदी आबादी जनजातियों की है. जिनकी भाषा और बोली पर संकट है. बदलते समय के साथ इनके द्वारा बोली जानेवाली पारंपरिक भाषा और बोली भी लुप्तप होते जा रही है. जिन आदिम जनजाति से जुड़ी भाषा और बोली विलुप्ति के कगार पर है उसमें असुर, सौरिया, पहाड़िया, परहिया, कोरबा, बिरजिया, बिरहोर और सबर जैसी भाषा शामिल है. झारखंड के 17 जिलों में खोरठा बोली जाती है. वहीं कोल्हान क्षेत्र में नागपुरी, संथाली आदि भाषा बोली जाती है. रांची के आसपास पंच परगनिया बोली जाती है.

रांची: किसी भी समाज के लिए भाषा और समाज वहां के लिए रीढ़ मानी जाती है. लेकिन यदि यही लुप्त हो जाय तो उस समाज का क्या होगा यह कल्पना की जा सकती है. लुप्त हो रहे भाषा और बोली भारत सहित पूरी दुनियां के लिए आज के समय में विशेष चिंता का कारण है. यूनेस्को के रिपोर्ट के अनुसार सबसे ज्यादा विलुप्त हो रहे भाषा में भारत दुनियां में नंबर वन पर है. उसी तरह दूसरे नंबर पर अमेरिका और तीसरे नंबर पर इंडोनेशिया है.

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आंकड़ों के मुताबिक पिछले 50 साल में भारत की करीब 20 फीसदी भाषाएं विलुप्त हो गई हैं. विलुप्त हो रहे भाषाओं से झारखंड अछुता नहीं हैं. यहां भी जनजातीय क्षेत्रों में बोली जानेवाली कई भाषाएं विलुप्ति के कगार पर हैं. इन्हें संरक्षित करने का प्रयास झारखंड के ऐसे लोगों ने किया है जो ना तो साहित्य क्षेत्र से जुड़े हैं और ना ही कोई विशेष योग्यताधारी हैं. ग्रामीण परिवेश में जीवन यापन करते हुए इन लोगों ने ना केवल चित्रावली आधारित किताब तैयार किया है, बल्कि इन लुप्त होते भाषाओं का व्याकरण की रचना कर एक अभिनव प्रयोग किया है.

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राज्य स्थापना दिवस पर मिला सम्मान

प्रोजेक्ट भवन में सोमवार को आयोजित मुख्य कार्यक्रम में सबसे आकर्षण का केन्द्र लुप्त होते झारखंड के जनजातीय भाषाओं को बचाने के लिए लोगों द्वारा किए गए प्रयास था. राज्यपाल रमेश बैस और मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस दौरान लुप्त हो रहे क्षेत्रीय भाषाओं के संरक्षण के उद्देश्य से उन भाषाओं के व्याकरण और चित्रकथा पर लिखी गई किताबों का ना केवल विमोचन किया, बल्कि उनके रचनाकार को सम्मानित करते हुए एक-एक लाख रुपये की राशि देने की घोषणा की. झारखंड के लुप्त हो रहे जिन
45 जनजातीय भाषाओं के किताब और व्याकरण का विमोचन किया गया उनमें मालतो, भूमिज, आसूरी, बिरहोरी आदि भाषा की किताबें शामिल हैं. सबसे खास बात यह है कि इन किताबों को लिखनेवाले सामान्य ग्रामीण लेखक हैं. जो घरेलू कामकाज के साथ डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान के सहयोग से एतिहासिक कार्य को किया है.

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लेखकों का बढ़ेगा मनोबल

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के हाथों सम्मानित होनेवाले गुमला के छत्रपाल बिरहोर की मानें तो वे रस्सी तैयार करने का काम करते हैं. उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि उन्हें ऐसा सम्मान मिलेगा. इसी तरह रमा पहाड़िया और सुषमा असुर ने भी सरकार के इस पहल की सराहना की. वहीं डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान के निदेशक डॉ रणेंद्र कुमार ने मुख्यमंत्री द्वारा इन रचनाकारों को एक-एक लाख रुपये देने की घोषणा का स्वागत करते हुए कहा कि इससे इन लेखकों का मनोबल बढेगा.



विलुप्त होती झारखंड की आदिम जनजाति से जुड़ी भाषा

झारखंड की कुल आबादी में करीब 27 फीसदी आबादी जनजातियों की है. जिनकी भाषा और बोली पर संकट है. बदलते समय के साथ इनके द्वारा बोली जानेवाली पारंपरिक भाषा और बोली भी लुप्तप होते जा रही है. जिन आदिम जनजाति से जुड़ी भाषा और बोली विलुप्ति के कगार पर है उसमें असुर, सौरिया, पहाड़िया, परहिया, कोरबा, बिरजिया, बिरहोर और सबर जैसी भाषा शामिल है. झारखंड के 17 जिलों में खोरठा बोली जाती है. वहीं कोल्हान क्षेत्र में नागपुरी, संथाली आदि भाषा बोली जाती है. रांची के आसपास पंच परगनिया बोली जाती है.

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