रांची: वैश्विक महामारी कोरोना की वजह से लगे लॉकडाउन का असर अब लोगों के दिमाग ऊपर पड़ने लगा है. लगभग एक महीने से अधिक समय से घरों में रहने की वजह से एक तरफ जहां बच्चों और युवाओं में चिड़चिड़ापन बढ़ गया है. वहीं बूढ़ों के बीच एक असुरक्षा की भावना भी डेवलप करती जा रही है. महामारी के संक्रमण का भय सता रहा है. इसके अलावा आर्थिक गतिविधियों के दुष्प्रभाव का असर भी दिमाग पर छा रहा है.
मनोवैज्ञानिकों की सलाह
हालांकि मनोवैज्ञानिकों के सलाह है कि लोग इस दौर में सकारात्मक सोच के साथ दिनचर्या पूरी करें. वहीं दूसरी तरफ शारीरिक, सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों में कमी आने की वजह से लोगों के अंदर अब स्ट्रेस दिखने लगा है. इस बात का अंदाजा सहज लगाया जा सकता है कि जिला प्रशासन की तरफ से लोगों के मेंटल काउंसलिंग के लिए मनोवैज्ञानिक और मनोचिकित्सकों का मोबाइल नंबर जारी किया गया है. उनपर लोग फोनकर सलाह ले रहे हैं. वहीं राजधानी के कांके स्थित मानसिक चिकित्सा संस्थान रांची इंस्टिट्यूट ऑफ न्यूरोसायकेट्री में भी विशेषज्ञों की एक टीम हर दिन 20 से अधिक फोन कॉल रिसीव कर रही है.
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
मनोचिकित्सा विशेषज्ञ सिद्धार्थ सिन्हा कहते हैं कि लगभग एक महीने से ऊपर का समय बीत चुका है और लोग लॉकडाउन के दौरान स्ट्रेसफुल माहौल में रह रहे हैं. उन्होंने कहा कि हर व्यक्ति के मन में कोरोना वायरस को लेकर के भय व्याप्त है. उनको लगता है कि कहीं न कहीं यह संक्रमण उनमें आ जा रहा है, इसका एक दबाव बना हुआ है. उन्होंने कहा कि इसका असर दिमाग पर भी पड़ने लगता है, डोपामाइन और सेरोटोनिन की कमी होने लगती है और लोग अवसाद से ग्रसित हो रहे हैं.
लॉकडाउन के दौरान बुजुर्गों की स्थिति सबसे ज्यादा दयनीय मानी जा रही है. उनके खिलाफ घरों में दुर्व्यवहार के मामले भी बढ़ रहे हैं. एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 6 प्रतिशत बुजुर्ग अकेले रहते हैं और लॉकडाउन की वजह से 10 से 12 प्रतिशत बुजुर्गों में अलगाव का भाव बढ़ा है. इसी वजह से अवसाद की समस्याएं उनके बीच सामने आ रही हैं.
बच्चों और बुजुर्गो में दिख रहा है सबसे ज्यादा असर
उन्होंने कहा कि जिस परिस्थिति में हम जी रहे हैं उसमें सबसे अधिक असर बच्चों और बूढ़ों में देखने को मिल रहा है. दोनों चिड़चिड़ापन के शिकार हो रहे हैं. बड़ों के मन में यह चिंता है कि घर चलाने के लिए पैसे कहां से आएंगे. इसके साथ ही वह अकेलापन भी महसूस कर रहे है. हालांकि बच्चों के लिए ऑनलाइन क्लासेस शुरू हो गई है.
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बेडरूम तक न जाये मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक गैजेट
उन्होंने कहा कि लॉकडाउन के दौरान अभिभावकों को इस बात का ध्यान रखना होगा कि मोबाइल फोन और लैपटॉप ड्राइंग रूम से निकलकर बच्चों के बिस्तर पर ना चला जाए. उन्होंने कहा कि मौजूदा दौर में यह भी देखना जरूरी है कि बच्चे क्या देख रहे हैं. इंटरनेट का दुरुपयोग तो नहीं हो रहा है.
अपनाना होगा ये उपाय
उन्होंने कहा कि बच्चों के साथ एक्सरसाइज करना जरूरी है. इसके साथ ही उनके मन में या भाव जगाना होगा कि जिस तरह गर्मी छुट्टियों में वह घर से बाहर नहीं निकलते थे. उसी तरह का माहौल अभी बना हुआ है. इंडोर एंटरटेनमेंट का सहारा लेकर परिस्थितियों को हैंडल करना होगा. वहीं बुजुर्गो के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताने की जरूरत है ताकि उन्हें साइकोलॉजिकल कमजोरी ना हो.
मानसिक रोगी न छोड़े दवाई
उन्होंने कहा कि मानसिक रोगी अपनी दवाइयां न छोड़ें. ऐसी परिस्थिति में मानसिक रोगियों को हिदायत दी जाती है कि वह अपनी दवाइयों का उपयोग बंद ना करें जो जरूरी दवाइयां है उसका सेवन लगातार करते रहें. जिला प्रशासन और सरकार के जारी किए गए हेल्पलाइन नंबर का प्रयोग कर वैसी परिस्थिति में दवाइयों की उपलब्धता सुनिश्चित की जा सकती है.
नशे की आदत छुड़ाने के सबसे बढ़िया मौका
हालांकि लॉकडाउन का एक सकारात्मक पक्ष भी है. इस दौरान लोग अपने नशे की आदत से छुटकारा पा सकते. एक तरफ जहां तंबाकू और अन्य नशे की बिक्री करने वाली दुकाने बंद हैं तो वहीं दूसरी तरफ घर के अलावे और कोई जगह नहीं है. ऐसे में लोग अपने बुरे व्यसनों से इस दौरान छुटकारा पा सकते हैं.