रांचीः छठ सूर्य उपासना और छठी मैया की उपासना का पर्व है. हिंदू आस्था का यह एक ऐसा पर्व है जिसमें मूर्ति पूजा शामिल नहीं है. मान्यताओं के अनुसार कार्तिक माह की सूर्यषष्ठी और सप्तमी पर सूर्य देव की आराधना से आरोग्य और यश कीर्ति की प्राप्ति होती है. सूर्य देव की पूर्वाभिमुख होकर उपासना से उन्नति मिलती है वहीं पश्चिमाभिमुख होकर उपासना से दुर्भाग्य का अंत होता है.
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सूर्य उपासना का महापर्व छठ की शुरुआत हो चुकी है. इस दौरान शुद्धता और स्वच्छता का खास ख्याल रखा जाता है. इसलिए घर से लेकर छठ घाटों तक साफ सफाई का खास ध्यान रखते हैं. इसके अलावा इस अवसर पर बनने वाले महाप्रसाद मिट्टी के चूल्हे में आम की लकड़ी को जलाकर तैयार किया जाता है.आम की लकड़ी और मिट्टी का चूल्हा को शुद्ध माना जाता है. सनातन धर्म में इसका खास महत्व है.
शुद्धता के साथ-साथ पर्यावरण दृष्टि से भी आम की लकड़ी हमारे लिए लाभदायक है. हमारे समस्त नकारात्मक चीजों को आम के पत्ते और लकड़ियां दूर करके हमारे मन में सकारात्मकता भरता है. यही वजह है कि आम के पत्ते को कई अवसरों पर घर के दरवाजे पर लगाते हैं. वहीं विगत 14 वर्षों से छठ कर रही सोनी देवी बताती हैं कि वो हर वर्ष छठ के मौके पर आम की लकड़ी से ही महाप्रसाद बनाती हैं. घर में गैस चूल्हा और इंडक्शन होने के बावजूद आस्था और शुद्धता के कारण मिट्टी के नए चूल्हा को वो इस्तेमाल प्रसाद बनाने के लिए करती है.
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बढ़ी आम की लकड़ी और मिट्टी के चूल्हे की डिमांड
छठ पूजा को लेकर बाजारों में रौनक देखी जा रही है. मिट्टी के चूल्हे से लेकर आम की लकड़ी की डिमांड बढ़ी हुई है. छठ के मौके पर हर वर्ष आम की लकड़ी बेचने वाले डोरंडा बाजार के उदय बताते हैं कि इस वर्ष पिछले वर्ष की तुलना में आम की लकड़ी की बिक्री ज्यादा हो रही है. 10 से 15 किलो के आम की लकड़ी की कीमत 160 से 180 रुपया तक है. जिसे लोग खुशी से खरीदकर ले जा रहे हैं.
चार दिवसीय इस महापर्व छठ के दूसरे दिन यानी मंगलवार को खरना है, बुधवार को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा. फिर गुरुवार को सूर्योदयकालीन भगवान भास्कर को अर्घ्य के साथ लोक आस्था के इस महापर्व का समापन होगा.