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महिमा छठी माई केः कैसे हुई महापर्व छठ की शुरुआत, देखिए पूरी कहानी - छठ पूजा विधि

छठी माई की महिमा अपरंपार है. बिहार, झारखंड, पूर्वांचल और यूपी के लोग चाहे देश के किसी भी कोने में रहें लेकिन छठ में अपने घर खिंचे चले आते हैं. और जो नहीं आ पाते वह उसी जगह छठी माई की आराधना जरूर करते हैं. सदियों से चला आ रहा ये अटूट सिलसिला अनोखा है. भगवान सूरज और छठी माई की पूजा क्यों करते हैं, ये परंपरा कैसे शुरू हुई और इस पूजा का विधि विधान क्या है? ये जानने के लिए आगे पढ़ें.

chhath puja 2020
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Published : Nov 16, 2020, 6:41 PM IST

Updated : Nov 16, 2020, 7:42 PM IST

रांची/पटनाः चार दिन चलने वाला छठ महापर्व सदियों का इतिहास समेटे हुए है. ये हिंदू धर्म का सबसे बड़ा और सबसे पवित्र पर्व माना जाता है. इस साल छठ 18 नवंबर को नहाय खाय से शुरू होगा. 19 नवंबर को खरना, 20 नवंबर को अस्ताचल सूर्य को अर्घ्य और 21 नवंबर को उदयमान सूर्य को अर्घ्य देकर पारण के साथ समाप्त होगा. इस दौरान भगवान सूर्य और उनकी मानस बहन षष्ठी यानी छठी माई की उपासना होती है.

वी़डियो में देखिए छठ महापर्व की कथा

सूर्य नौ ग्रहों के स्वामी हैं. ये एक मात्र ऐसे देव हैं जिन्हें हम साक्षात देख पाते हैं. भगवान सूर्य ऐसे देव हैं जो मात्र जल अर्पण करने से ही प्रसन्न हो जाते हैं. इनकी पूजा के लिए तांबे के बर्तन में लाल चंदन और लाल पुष्प का उपयोग करना चाहिए. सूर्य पूजा का वैज्ञानिक महत्व भी है. सूर्य को अपनी आंखों से सीधे नहीं देखना चाहिए. अर्घ्य देते समय पात्र से गिरते जल के बीच से सूर्य को देखना चाहिए. ऐसा करने से सूर्य की सातों किरणें आंखों और शरीर पर पड़ती हैं, जिसका तन-मन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है.

chhath puja 2020
इस साल छठ की तिथियां

सूर्य की मानस बहन हैं छठी माई

सूर्य और छठी मइया को लेकर कई मान्यताएं हैं. ऋगवेद, विष्णु पुराण और भगवत पुराण में भी सूर्य पूजा का वर्णन है. षष्ठी यानी छठी मइया भगवान सूर्य की मानस बहन हैं. कहते हैं कि छठी मइया की पहली पूजा सूर्य ने की थी. एक और मान्यता के अनुसार देवासुर संग्राम में असुरों ने देवताओं का हरा दिया था. तब देव माता अदिति ने भगवान सूर्य की मानस बहन षष्ठी की पूजा कर तेजस्वी पुत्र की कामना की थी. छठी मइया ने अदिती को सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया और त्रिदेव रूप भगवान ने असुरों को हरा दिया. इसके बाद से छठ पूजा का चलन शुरू हुआ.

सतयुग में सुकन्या से जुड़ी कहानी

एक पौराणिक कथा के अनुसार सतयुग में शर्याति नाम के एक राजा थे. एक बार वो अपनी बेटी सुकन्या के साथ जंगल में शिकार खेलने गए. जंगल में च्यवन ऋषि तपस्या कर रहे थे. ऋषि तपस्या में इतने लीन थे कि उनके शरीर पर दीमक लग गई थी. बांबी से उनकी आंखें जुगनू की तरह चमक रही थीं. सुकन्या ने कौतुहलवश बांबी में तिनके डाले तो दिए, जिससे च्यवन ऋषि की आंखें फूट गईं. इससे गुस्से में ऋषि ने श्राप दिया, जिससे राजा शर्याति के सैनिक भी दर्द से तपड़ने लगे. इसके बाद राजा शर्याति च्यवन ऋषि से क्षमा मांगने पहुंचे और सुकन्या को उसके अपराध को देखते हुए उसे ऋषि को ही समर्पित कर दिया. सुकन्या ऋषि च्यवन के पास रहकर ही उनकी सेवा करने लगी. एक दिन सुकन्या को एक नागकन्या मिली. नागकन्या ने सुकन्या को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्य की उपासना करने को कहा. सुकन्या ने पूरी निष्ठा से छठ का व्रत किया जिसके प्रभाव से च्यवन मुनि की आंखों की ज्योति लौट आई.

ये भी पढ़ें-महिमा छठी माई केः महापर्व छठ की अनंत गाथा

त्रेता और द्वापर युग की मान्यता

एक और मान्यता है कि त्रेता युग में जब भगवान राम ने रावण को हराया था तो विजयादशमी मनाई गई. वो जब अयोध्या लौटकर आएं तो दीपावली मनाई गई और अयोध्या में रामराज्य शुरू करने से पहले उन्होंने माता सीता के साथ भगवान सूर्य की उपासना की थी, वो दिन था कार्तिक महीने की षष्ठी. उस दिन से छठ पूजा की परंपरा चली आ रही है.

सूर्य पूजा का उल्लेख द्वापर युग में भी मिलता है. कुंती ने सूर्य की पूजा की थी जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने कर्ण को वरदान में दिया था. कर्ण सूर्य के परम भक्त थे और वे हर दिन कमर तक पानी में खड़े रहकर अर्घ्य दिया करते थे. छठ में आज भी अर्घ्य देने की यही परंपरा चली आ रही है. इसी काल में जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए थे, तब वनवास के दौरान द्रौपदी ने व्रत रखा था. उनके साथ पांडवों ने भी सूर्य की उपासना की थी. भगवान सूर्य की कृपा से पांडवों को राजपाट वापस मिल सका.

ये भी पढ़ें-महिमा छठी माई केः सूर्य की उपासना का महापर्व छठ

संतान सुख के लिए व्रत

छठ से जुड़ी एक अन्य कथा के अनुसार राजा प्रियवद और रानी मालिनी ने संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप से यज्ञ करवाया था. इसके बाद मृत पुत्र का जन्म होने पर प्रियवद वियोग में प्राण त्यागने लगे. तभी भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं. देवी षष्ठी की कृपा से राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई.

इस तरह कालांतर में सूर्य और छठी मइया की उपासना का ये महापर्व लोकप्रचलित होता गया और अब हिंदू धर्म के अलावा दूसरे धर्मों के लोगों की भी इस पर गहरी आस्था है. महिमा छठी माई के अगली कड़ी में हम जानेंगे कि छठ के चार दिनों में आखिर क्या विधि विधान किए जाते हैं. यदि कोई पहली बार छठ कर रहे हैं तो आखिर वो क्या करें. जय छठी मइया.

रांची/पटनाः चार दिन चलने वाला छठ महापर्व सदियों का इतिहास समेटे हुए है. ये हिंदू धर्म का सबसे बड़ा और सबसे पवित्र पर्व माना जाता है. इस साल छठ 18 नवंबर को नहाय खाय से शुरू होगा. 19 नवंबर को खरना, 20 नवंबर को अस्ताचल सूर्य को अर्घ्य और 21 नवंबर को उदयमान सूर्य को अर्घ्य देकर पारण के साथ समाप्त होगा. इस दौरान भगवान सूर्य और उनकी मानस बहन षष्ठी यानी छठी माई की उपासना होती है.

वी़डियो में देखिए छठ महापर्व की कथा

सूर्य नौ ग्रहों के स्वामी हैं. ये एक मात्र ऐसे देव हैं जिन्हें हम साक्षात देख पाते हैं. भगवान सूर्य ऐसे देव हैं जो मात्र जल अर्पण करने से ही प्रसन्न हो जाते हैं. इनकी पूजा के लिए तांबे के बर्तन में लाल चंदन और लाल पुष्प का उपयोग करना चाहिए. सूर्य पूजा का वैज्ञानिक महत्व भी है. सूर्य को अपनी आंखों से सीधे नहीं देखना चाहिए. अर्घ्य देते समय पात्र से गिरते जल के बीच से सूर्य को देखना चाहिए. ऐसा करने से सूर्य की सातों किरणें आंखों और शरीर पर पड़ती हैं, जिसका तन-मन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है.

chhath puja 2020
इस साल छठ की तिथियां

सूर्य की मानस बहन हैं छठी माई

सूर्य और छठी मइया को लेकर कई मान्यताएं हैं. ऋगवेद, विष्णु पुराण और भगवत पुराण में भी सूर्य पूजा का वर्णन है. षष्ठी यानी छठी मइया भगवान सूर्य की मानस बहन हैं. कहते हैं कि छठी मइया की पहली पूजा सूर्य ने की थी. एक और मान्यता के अनुसार देवासुर संग्राम में असुरों ने देवताओं का हरा दिया था. तब देव माता अदिति ने भगवान सूर्य की मानस बहन षष्ठी की पूजा कर तेजस्वी पुत्र की कामना की थी. छठी मइया ने अदिती को सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया और त्रिदेव रूप भगवान ने असुरों को हरा दिया. इसके बाद से छठ पूजा का चलन शुरू हुआ.

सतयुग में सुकन्या से जुड़ी कहानी

एक पौराणिक कथा के अनुसार सतयुग में शर्याति नाम के एक राजा थे. एक बार वो अपनी बेटी सुकन्या के साथ जंगल में शिकार खेलने गए. जंगल में च्यवन ऋषि तपस्या कर रहे थे. ऋषि तपस्या में इतने लीन थे कि उनके शरीर पर दीमक लग गई थी. बांबी से उनकी आंखें जुगनू की तरह चमक रही थीं. सुकन्या ने कौतुहलवश बांबी में तिनके डाले तो दिए, जिससे च्यवन ऋषि की आंखें फूट गईं. इससे गुस्से में ऋषि ने श्राप दिया, जिससे राजा शर्याति के सैनिक भी दर्द से तपड़ने लगे. इसके बाद राजा शर्याति च्यवन ऋषि से क्षमा मांगने पहुंचे और सुकन्या को उसके अपराध को देखते हुए उसे ऋषि को ही समर्पित कर दिया. सुकन्या ऋषि च्यवन के पास रहकर ही उनकी सेवा करने लगी. एक दिन सुकन्या को एक नागकन्या मिली. नागकन्या ने सुकन्या को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्य की उपासना करने को कहा. सुकन्या ने पूरी निष्ठा से छठ का व्रत किया जिसके प्रभाव से च्यवन मुनि की आंखों की ज्योति लौट आई.

ये भी पढ़ें-महिमा छठी माई केः महापर्व छठ की अनंत गाथा

त्रेता और द्वापर युग की मान्यता

एक और मान्यता है कि त्रेता युग में जब भगवान राम ने रावण को हराया था तो विजयादशमी मनाई गई. वो जब अयोध्या लौटकर आएं तो दीपावली मनाई गई और अयोध्या में रामराज्य शुरू करने से पहले उन्होंने माता सीता के साथ भगवान सूर्य की उपासना की थी, वो दिन था कार्तिक महीने की षष्ठी. उस दिन से छठ पूजा की परंपरा चली आ रही है.

सूर्य पूजा का उल्लेख द्वापर युग में भी मिलता है. कुंती ने सूर्य की पूजा की थी जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने कर्ण को वरदान में दिया था. कर्ण सूर्य के परम भक्त थे और वे हर दिन कमर तक पानी में खड़े रहकर अर्घ्य दिया करते थे. छठ में आज भी अर्घ्य देने की यही परंपरा चली आ रही है. इसी काल में जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए थे, तब वनवास के दौरान द्रौपदी ने व्रत रखा था. उनके साथ पांडवों ने भी सूर्य की उपासना की थी. भगवान सूर्य की कृपा से पांडवों को राजपाट वापस मिल सका.

ये भी पढ़ें-महिमा छठी माई केः सूर्य की उपासना का महापर्व छठ

संतान सुख के लिए व्रत

छठ से जुड़ी एक अन्य कथा के अनुसार राजा प्रियवद और रानी मालिनी ने संतान प्राप्ति के लिए महर्षि कश्यप से यज्ञ करवाया था. इसके बाद मृत पुत्र का जन्म होने पर प्रियवद वियोग में प्राण त्यागने लगे. तभी भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं. देवी षष्ठी की कृपा से राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई.

इस तरह कालांतर में सूर्य और छठी मइया की उपासना का ये महापर्व लोकप्रचलित होता गया और अब हिंदू धर्म के अलावा दूसरे धर्मों के लोगों की भी इस पर गहरी आस्था है. महिमा छठी माई के अगली कड़ी में हम जानेंगे कि छठ के चार दिनों में आखिर क्या विधि विधान किए जाते हैं. यदि कोई पहली बार छठ कर रहे हैं तो आखिर वो क्या करें. जय छठी मइया.

Last Updated : Nov 16, 2020, 7:42 PM IST
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