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रांची: एक बड़ी विडंबना में फंस गया है सरना धर्मावलंबी: केंद्रीय सरना समिति - सरना धर्मावलंबी पर केंद्रीय सरना समिति का बयान

केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष बबलू मुंडा और महासचिव कृष्ण कांत टोप्पो ने संयुक्त बयान जारी कर अयोध्या में होने वाले मंदिर निर्माण के लिए सरनास्थल से मिट्टी उठाने और आदिवासी संगठनों से इसके विरोध करने की कड़ी निंदा की है.

Central Sarna Committee reaction to Sarna devout in ranchi
केंद्रीय सरना समिति
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Published : Jul 28, 2020, 9:05 PM IST

रांची: केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष बबलू मुंडा और महासचिव कृष्ण कांत टोप्पो ने संयुक्त बयान जारी कर अयोध्या में होने वाले मंदिर निर्माण के लिए सरनास्थल से मिट्टी उठाने और आदिवासी संगठनों से इसके विरोध में आव्यवहारिक गतिविधियों की कड़ी निंदा की है. उन्होंने कहा आज के समय में सरना धर्मावलंबी एक बड़ी विडंबना में फंस गया है. अपने वास्तविक रूढ़िवादी परंपरा को छोड़कर ईसाईकरण की और बढ़ रहा है.

उन्होंने कहा कि दूसरा पक्ष हिंदूकरण की नकल कर रहा है. तीसरा सरना धर्म में ही एक नया अध्याय सरना प्रार्थना सभा का संचालन कर समुदाय को दिशाहीन कर रहा है, जबकि सरना धर्म में पूर्वजों द्वारा स्थापित परंपरा एकदम सादा और सरल हैं न ही ईसाई कर्मकांड से कोई मेलजोल है न ही हिंदुत्व से कोई मेल है. रही बात अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की तो हिंदू धर्म चार भागों में बंटा है ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र. क्योंकि आदिवासी चौथी श्रेणी से आते हैं अतः किस दूरगामी राजनीति से सरनास्थल की पवित्र मिट्टी का उपयोग मंदिर में किया जाएगा यह भविष्य के गर्त में है.

ये भी पढ़ें: झारखंड में गंभीर कोरोना मरीजों की होगी प्लाज्मा थैरेपी, रिम्स में प्लाज्मा दान केंद्र का CM ने किया शुभारंभ

उन्होंने कहा कि इसे हमारे भाजपा, राष्ट्रीय स्वंयसेवक संगठनों और अन्य हिंदू संगठनों में शामिल आदिवासी भाई-बहनों को सोचने और मंथन करने की आवश्यकता है. दूसरी और विभिन्न गली-मोहल्लों में जहां ईसाई आबादी नगण्य होती है वहां चर्च का निर्माण किया जाता है और फिर हमारे बंधुओं को बरगलाकर ईसाई धर्मांतरण कराया जाता है. इस पर भी अधिकांश सरना संगठन को या तो कोई जानकारी नहीं होती है या जानबूझकर चुप रखा जाता है. दोनों ही परिस्थितियों में सरना धर्म और धर्मावलंबियों को नुकसान उठाना होता है. आखिर सरना समितियों और आदिवासी संस्थाओं का निर्माण किस उद्देश्य के लिए किया जाता है. कोई समिति चर्च आयोजित कार्यक्रम में व्यस्त देखी जा सकती है तो कोई हिंदुओं के समर्थन में कार्य करते पाए जाते हैं. ऐसा कब तक चलेगा .सरना धर्मावलंबियो को चाहिए की वह किसी भी परिस्थिति में अपनी रीति-रिवाजों में किसी तरह का परिवर्तन न करें.

रांची: केंद्रीय सरना समिति के अध्यक्ष बबलू मुंडा और महासचिव कृष्ण कांत टोप्पो ने संयुक्त बयान जारी कर अयोध्या में होने वाले मंदिर निर्माण के लिए सरनास्थल से मिट्टी उठाने और आदिवासी संगठनों से इसके विरोध में आव्यवहारिक गतिविधियों की कड़ी निंदा की है. उन्होंने कहा आज के समय में सरना धर्मावलंबी एक बड़ी विडंबना में फंस गया है. अपने वास्तविक रूढ़िवादी परंपरा को छोड़कर ईसाईकरण की और बढ़ रहा है.

उन्होंने कहा कि दूसरा पक्ष हिंदूकरण की नकल कर रहा है. तीसरा सरना धर्म में ही एक नया अध्याय सरना प्रार्थना सभा का संचालन कर समुदाय को दिशाहीन कर रहा है, जबकि सरना धर्म में पूर्वजों द्वारा स्थापित परंपरा एकदम सादा और सरल हैं न ही ईसाई कर्मकांड से कोई मेलजोल है न ही हिंदुत्व से कोई मेल है. रही बात अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की तो हिंदू धर्म चार भागों में बंटा है ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र. क्योंकि आदिवासी चौथी श्रेणी से आते हैं अतः किस दूरगामी राजनीति से सरनास्थल की पवित्र मिट्टी का उपयोग मंदिर में किया जाएगा यह भविष्य के गर्त में है.

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उन्होंने कहा कि इसे हमारे भाजपा, राष्ट्रीय स्वंयसेवक संगठनों और अन्य हिंदू संगठनों में शामिल आदिवासी भाई-बहनों को सोचने और मंथन करने की आवश्यकता है. दूसरी और विभिन्न गली-मोहल्लों में जहां ईसाई आबादी नगण्य होती है वहां चर्च का निर्माण किया जाता है और फिर हमारे बंधुओं को बरगलाकर ईसाई धर्मांतरण कराया जाता है. इस पर भी अधिकांश सरना संगठन को या तो कोई जानकारी नहीं होती है या जानबूझकर चुप रखा जाता है. दोनों ही परिस्थितियों में सरना धर्म और धर्मावलंबियों को नुकसान उठाना होता है. आखिर सरना समितियों और आदिवासी संस्थाओं का निर्माण किस उद्देश्य के लिए किया जाता है. कोई समिति चर्च आयोजित कार्यक्रम में व्यस्त देखी जा सकती है तो कोई हिंदुओं के समर्थन में कार्य करते पाए जाते हैं. ऐसा कब तक चलेगा .सरना धर्मावलंबियो को चाहिए की वह किसी भी परिस्थिति में अपनी रीति-रिवाजों में किसी तरह का परिवर्तन न करें.

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