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जानिए क्या है प्रचार सामग्रियों का अर्थशास्त्र, चुनाव में होगा करोड़ों का कारोबार

झारखंड में चुनाव का बाजार सज चुका है. राजनीतिक पार्टियों के साथ-साथ प्रचार सामग्रीयों विक्रेता भी चुनावी माहौल में एक्टिव हो चुके हैं. इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक तरफ बड़े राजनीतिक दलों के कार्यालय में उनके प्रचार सामग्रियों से जुड़ा काउंटर तैयार है तो वहीं बाजार में भी कई ऐसी दुकानें सज गई है, जहां एक ही छत के नीचे अलग-अलग राजनीतिक दलों की प्रचार सामग्रियां मिल रही है.

झारखंड विधानसभा चुनाव
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Published : Nov 12, 2019, 8:02 PM IST

रांची: मौजूदा दौर में तकनीक का कितना भी इस्तेमाल हो रहा हो बावजूद उसके पारंपरिक रूप से इस्तेमाल होने वाली प्रचार सामग्रियों की पूछ अभी भी बरकरार है. इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक तरफ बड़े राजनीतिक दलों के कार्यालय में उनके प्रचार सामग्रियों से जुड़ा काउंटर तैयार है तो वहीं बाजार में भी कई ऐसी दुकानें सज गई है, जहां एक ही छत के नीचे अलग-अलग राजनीतिक दलों की प्रचार सामग्रियां मिल रही है.

देखिए स्पेशल स्टोरी

प्रचार सामग्रियों का अर्थशास्त्र
वैसे तो इलेक्शन कमीशन के निर्धारित पैमाने के अनुसार एक प्रत्याशी विधानसभा चुनाव में 28 लाख रुपए से ज्यादा खर्च नहीं कर सकता, लेकिन अगर प्रचार सामग्रियों का अर्थशास्त्र समझे तो अजीबोगरीब आंकड़ा सामने आएगा. कांग्रेस कार्यालय के काउंटर में 5 से लेकर 80 रुपए तक की प्रचार सामग्री मुहैया कराई गई है. वहीं बाजार में 10 से लेकर 100 रुपए तक की सामग्री आसानी से उपलब्ध है. पार्टियों के दावे को देखे तो एक अनुमान के तौर पर राज्य में 60 लाख से अधिक अलग-अलग दलों के कार्यकर्ता मौजूद हैं. अगर उनमें से आधे भी इन प्रचार सामग्रियों की औसत रूप से 50 रुपए की भी खरीदारी करते हैं तो ये आंकड़ा 15 करोड़ रुपए के आसपास होगा. ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि इससे कहीं ज्यादा रुपयों का खर्च प्रचार सामग्री में होता होगा.

बीजेपी से ज्यादा विपक्ष के प्रचार सामग्रियों की बिक्री
वहीं, सड़क पर प्रचार सामग्रियों की दुकान लगाने लखनऊ से आए मनजीत मौर्या बताते हैं कि बीजेपी जिस हिसाब से केंद्र और राज्यों में सरकार में शामिल है. उस हिसाब से उसके प्रचार सामग्री नहीं बिकते. वह साफ तौर पर कहते हैं कि उनके मुकाबले विपक्षी दलों के प्रचार सामग्रियों की डिमांड ज्यादा है तो वहीं कांग्रेस ऑफिस के बाहर प्रचार सामग्री बेच रहे रमेश मौर्या का कहना है कि फिलहाल बिक्री कुछ खास नहीं हो रही है, लेकिन उम्मीद है कि बिक्री में तेजी आएगी.

ये भी पढ़ें: बीजेपी से टिकट मिलने के बाद कोडरमा लौटी मंत्री नीरा यादव, सोशल मीडिया पर दिखा लोगों का विरोध
प्रत्याशियों के नामों की घोषणा के साथ बढ़ेगी बिक्री
लंबे समय से इस काम में शामिल और कांग्रेस कार्यालय में प्रचार सामग्री की काउंटर लगाने वाले मासूम बताते हैं कि पहले प्रचार सामग्री हाथ से बनाने का काम होता था, लेकिन अब कम कीमत पर प्रचार सामग्री उपलब्ध होने की वजह से उनका मार्केट बढ़ता जा रहा है. वहीं कांग्रेसी नेता प्रभात कुमार का मानना है कि प्रचार सामग्रियों की बिक्री लगातार कांग्रेस कार्यालय के काउंटर से हो रही है और जैसे-जैसे प्रत्याशियों के नाम की घोषणा होगी. इन सामग्रियों की बिक्री में इजाफा होगा.

रांची: मौजूदा दौर में तकनीक का कितना भी इस्तेमाल हो रहा हो बावजूद उसके पारंपरिक रूप से इस्तेमाल होने वाली प्रचार सामग्रियों की पूछ अभी भी बरकरार है. इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक तरफ बड़े राजनीतिक दलों के कार्यालय में उनके प्रचार सामग्रियों से जुड़ा काउंटर तैयार है तो वहीं बाजार में भी कई ऐसी दुकानें सज गई है, जहां एक ही छत के नीचे अलग-अलग राजनीतिक दलों की प्रचार सामग्रियां मिल रही है.

देखिए स्पेशल स्टोरी

प्रचार सामग्रियों का अर्थशास्त्र
वैसे तो इलेक्शन कमीशन के निर्धारित पैमाने के अनुसार एक प्रत्याशी विधानसभा चुनाव में 28 लाख रुपए से ज्यादा खर्च नहीं कर सकता, लेकिन अगर प्रचार सामग्रियों का अर्थशास्त्र समझे तो अजीबोगरीब आंकड़ा सामने आएगा. कांग्रेस कार्यालय के काउंटर में 5 से लेकर 80 रुपए तक की प्रचार सामग्री मुहैया कराई गई है. वहीं बाजार में 10 से लेकर 100 रुपए तक की सामग्री आसानी से उपलब्ध है. पार्टियों के दावे को देखे तो एक अनुमान के तौर पर राज्य में 60 लाख से अधिक अलग-अलग दलों के कार्यकर्ता मौजूद हैं. अगर उनमें से आधे भी इन प्रचार सामग्रियों की औसत रूप से 50 रुपए की भी खरीदारी करते हैं तो ये आंकड़ा 15 करोड़ रुपए के आसपास होगा. ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि इससे कहीं ज्यादा रुपयों का खर्च प्रचार सामग्री में होता होगा.

बीजेपी से ज्यादा विपक्ष के प्रचार सामग्रियों की बिक्री
वहीं, सड़क पर प्रचार सामग्रियों की दुकान लगाने लखनऊ से आए मनजीत मौर्या बताते हैं कि बीजेपी जिस हिसाब से केंद्र और राज्यों में सरकार में शामिल है. उस हिसाब से उसके प्रचार सामग्री नहीं बिकते. वह साफ तौर पर कहते हैं कि उनके मुकाबले विपक्षी दलों के प्रचार सामग्रियों की डिमांड ज्यादा है तो वहीं कांग्रेस ऑफिस के बाहर प्रचार सामग्री बेच रहे रमेश मौर्या का कहना है कि फिलहाल बिक्री कुछ खास नहीं हो रही है, लेकिन उम्मीद है कि बिक्री में तेजी आएगी.

ये भी पढ़ें: बीजेपी से टिकट मिलने के बाद कोडरमा लौटी मंत्री नीरा यादव, सोशल मीडिया पर दिखा लोगों का विरोध
प्रत्याशियों के नामों की घोषणा के साथ बढ़ेगी बिक्री
लंबे समय से इस काम में शामिल और कांग्रेस कार्यालय में प्रचार सामग्री की काउंटर लगाने वाले मासूम बताते हैं कि पहले प्रचार सामग्री हाथ से बनाने का काम होता था, लेकिन अब कम कीमत पर प्रचार सामग्री उपलब्ध होने की वजह से उनका मार्केट बढ़ता जा रहा है. वहीं कांग्रेसी नेता प्रभात कुमार का मानना है कि प्रचार सामग्रियों की बिक्री लगातार कांग्रेस कार्यालय के काउंटर से हो रही है और जैसे-जैसे प्रत्याशियों के नाम की घोषणा होगी. इन सामग्रियों की बिक्री में इजाफा होगा.

Intro:रांची.मौजूदा दौर में तकनीक का कितना भी इस्तेमाल हो रहा हो। बावजूद उसके पारंपरिक रूप से इस्तेमाल होने वाली प्रचार सामग्रियों की पूछ अभी भी बरकरार है। इस बात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि एक तरफ बड़े राजनीतिक दलों के कार्यालय में उनके प्रचार सामग्रियों से जुड़ा काउंटर तैयार है। तो वहीं बाजार में भी कई ऐसी दुकानें सज गई है। जहां एक ही छत के नीचे अलग-अलग राजनीतिक दलों की प्रचार सामग्रियों मिल रही है।


Body:अजीबोगरीब है प्रचार सामग्रियों का अर्थशास्त्र

वैसे तो इलेक्शन कमीशन के निर्धारित पैमाने के अनुसार एक प्रत्याशी विधानसभा चुनाव में 28 लाख रुपए से ज्यादा खर्च नहीं कर सकता। लेकिन अगर प्रचार सामग्रियों का अर्थशास्त्र समझे तो अजीबोगरीब आंकड़ा सामने आएगा। कांग्रेस कार्यालय के काउंटर में 5 से लेकर 80 रुपये तक की प्रचार सामग्री मुहैया कराई गई है। वहीं बाजार में 10 से लेकर 100 रुपये तक की सामग्री आसानी से उपलब्ध है। पार्टियों के दावे को देखे तो एक अनुमान के तौर पर राज्य में 60 लाख से अधिक अलग-अलग दलों के कार्यकर्ता मौजूद हैं। अगर उनमें से आधे भी इन प्रचार सामग्रियों की औसत रूप से 50 रुपये की भी खरीदारी करते हैं। तो या आंकड़ा 15 करोड़ रुपए के आसपास होगा। ऐसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि इससे कहीं ज्यादा रुपयों का खर्च प्रचार सामग्री में होता होगा।


बीजेपी से ज्यादा विपक्ष के प्रचार सामग्रियों की बिक्री

तो वहीं सड़क पर प्रचार सामग्रियों की दुकान लगाने लखनऊ से आये मनजीत मौर्या बताते हैं कि बीजेपी जिस हिसाब से केंद्र और राज्यों में सरकार में शामिल है। उस हिसाब से उसके प्रचार सामग्री नहीं बिकते। वह साफ तौर पर कहते हैं कि उनके मुकाबले विपक्षी दलों के प्रचार सामग्रियों की डिमांड ज्यादा है। तो वही कांग्रेस ऑफिस के बाहर प्रचार सामग्री बेच रहे रमेश मौर्या का कहना है कि फिलहाल बिक्री कुछ खास नहीं हो रही है। लेकिन उम्मीद है कि बिक्री में तेजी आएगी।




Conclusion:प्रत्याशियों के नामों की घोषणा के साथ बढ़ेगी बिक्री

लंबे समय से इस काम में शामिल और कांग्रेस कार्यालय में प्रचार सामग्री की काउंटर लगाने वाले मासूम बताते हैं कि पहले प्रचार सामग्री हाथ से बनाने का काम होता था। लेकिन अब कम कीमत पर प्रचार सामग्री उपलब्ध होने की वजह से उनका मार्केट बढ़ता जा रहा है। वहीं कांग्रेसी नेता प्रभात कुमार का का मानना है कि प्रचार सामग्रियों की बिक्री लगातार कांग्रेस कार्यालय के काउंटर से हो रही है और जैसे-जैसे प्रत्याशियों के नाम की घोषणा होगी। इन सामग्रियों की बिक्री में इजाफा होगा।
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