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कहीं कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट का खतरा भांप आनन-फानन में तो नहीं लिया बाबाधाम मंदिर खोलने का फैसला! - सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद खुला बाबा मंदिर

देवघर श्रावणी मेला को लेकर इस बार खूब राजनीति हुई. मामला हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक गया. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद 3 अगस्त को बाबा बैद्यनाथ धाम के दरवाजे खोले गए, इस दौरान 301 लोगों ने दर्शन किया.

Baba temple opened on 3 August after Supreme Court order
बाबाधाम
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Published : Aug 4, 2020, 7:02 PM IST

रांची: झारखंड में लगने वाला विश्व प्रसिद्ध श्रावणी मेला इस साल प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी की लालफीताशाही का शिकार हो गया. देशभर में जब कई मंदिरों के दरवाजे खोल दिए गए उस दौरान भी कोविड-19 के संक्रमण का हवाला देते हुए देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर का दरवाजा नहीं खोला गया. हैरत की बात यह रही कि हाई कोर्ट में इस बाबत याचिका दाखिल की गई और मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया.

हालांकि, जब 31 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया उसके बाद भी राज्य के वरिष्ठ प्रशासनिक अफसर देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम के मंदिर का दरवाजा खोलने के पक्ष में नहीं रहे. वैश्विक महामारी कोरोना का हवाला देकर मामला टलता रहा. हैरत की बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने धर्मनिष्ठ भाव से अपना जजमेंट दिया. 31 जुलाई को अपने 6 पन्ने के जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को इस बाबत इंतजाम करने को भी कहा. सुप्रीम कोर्ट ने जजमेंट के पांचवें पन्ने पर साफ तौर पर कहा कि सावन महीने के अंतिम दिन पूर्णिमा और भादो के महीने में लोगों के दर्शन के लिए राज्य सरकार कोई उपाय निकाले.

कोर्ट ने यह भी कहा कि देश के अन्य बड़े-बड़े मंदिरों में अपनाए गए एहतियात को फॉलो कर वैद्यनाथ मंदिर का दरवाजा भी खोल सकती है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राज्य में दो दिनों की खामोशी रही. 31 जुलाई के बाद 1 अगस्त भी बीत गया इस बीच राज्य सरकार की शीर्ष ब्यूरोक्रेसी टस से मस नहीं हुई. इन दो दिनों तक ब्यूरोक्रेसी और शीर्ष स्तर पर यही तर्क दिया जाता रहा कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय बाध्यकारी नहीं है, लेकिन जैसे ही कानून के जानकारों से राय ली गई तब यह बात समझ आई कि मामला श्रावणी पूर्णिमा को लेकर है. अगर मंदिर के दरवाजे उस दिन नहीं खोले गए तो इसे लेकर कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट में भी मामला जा सकता है.

कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट का भांपा खतरा
आधिकारिक सूत्रों की मानें तो इस बाबत एडवोकेट जनरल से भी राय ली गई. जैसे ही यह बात उभर कर आई कि श्रावणी मेला का समय बीत जाने के बाद कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट में गर्दन फंस सकती है और ऐसे में राज्य की वरिष्ठ नौकरशाही के ऊपर गाज गिर सकती है तो फिर 2 अगस्त की दोपहर में राज्य के प्रशासनिक महकमे के अंदर हलचल शुरू हुई और सरकार ने सारी व्यवस्थाएं की. रविवार की देर रात इस बाबत अधिसूचना जारी हुई. उसके बाद जाकर सोमवार की सुबह मंदिर के दरवाजे खोले गए.

ये भी पढे़ं: हजारीबाग में बीएसएफ लोगों को करा रहा रोजगार मुहैया, लोगों को हो रहा दोहरा फायदा

300 से अधिक लोगों ने किया दर्शन
सोशल डिस्टेंसिंग समेत अन्य उपाय अपनाकर दर्शन किए गए. सबसे बड़ी बात यह है कि कोर्ट ने 300 दर्शनार्थियों का एक आंकड़ा उदाहरण स्वरूप फैसले में लिखा था, जबकि झारखंड में 301 लोगों के दर्शन करने का आंकड़ा सामने आया है. सरकार के अचानक लिए गए इस निर्णय में वैसे अधिकारी अब दाएं बाएं झांकने को मजबूर हैं जो पहले बकायदा लॉ डिपार्टमेंट और अन्य विभागों का हवाला देकर मंदिर नहीं खोलने के पक्ष में थे. बता दें कि 24 मार्च को लगे पहले लॉकडाउन के बाद झारखंड में सभी मंदिरों के दरवाजे बंद हैं.

सांसद ने दायर की थी याचिका

वहीं, बाबा बैद्यनाथ धाम के दरवाजे खोलने के लिए गोड्डा के सांसद निशिकांत दुबे ने झारखंड हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. मामला उनके खिलाफ गया तो उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, फिर सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह का निर्णय दिया, जिसके बाद श्रावणी पूर्णिमा के दिन बाबा बैद्यनाथ मंदिर के दरवाजे खोले गए ताकि आम लोग दर्शन कर सकें.

रांची: झारखंड में लगने वाला विश्व प्रसिद्ध श्रावणी मेला इस साल प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी की लालफीताशाही का शिकार हो गया. देशभर में जब कई मंदिरों के दरवाजे खोल दिए गए उस दौरान भी कोविड-19 के संक्रमण का हवाला देते हुए देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम मंदिर का दरवाजा नहीं खोला गया. हैरत की बात यह रही कि हाई कोर्ट में इस बाबत याचिका दाखिल की गई और मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया.

हालांकि, जब 31 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया उसके बाद भी राज्य के वरिष्ठ प्रशासनिक अफसर देवघर स्थित बाबा बैद्यनाथ धाम के मंदिर का दरवाजा खोलने के पक्ष में नहीं रहे. वैश्विक महामारी कोरोना का हवाला देकर मामला टलता रहा. हैरत की बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय बेंच ने धर्मनिष्ठ भाव से अपना जजमेंट दिया. 31 जुलाई को अपने 6 पन्ने के जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को इस बाबत इंतजाम करने को भी कहा. सुप्रीम कोर्ट ने जजमेंट के पांचवें पन्ने पर साफ तौर पर कहा कि सावन महीने के अंतिम दिन पूर्णिमा और भादो के महीने में लोगों के दर्शन के लिए राज्य सरकार कोई उपाय निकाले.

कोर्ट ने यह भी कहा कि देश के अन्य बड़े-बड़े मंदिरों में अपनाए गए एहतियात को फॉलो कर वैद्यनाथ मंदिर का दरवाजा भी खोल सकती है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राज्य में दो दिनों की खामोशी रही. 31 जुलाई के बाद 1 अगस्त भी बीत गया इस बीच राज्य सरकार की शीर्ष ब्यूरोक्रेसी टस से मस नहीं हुई. इन दो दिनों तक ब्यूरोक्रेसी और शीर्ष स्तर पर यही तर्क दिया जाता रहा कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय बाध्यकारी नहीं है, लेकिन जैसे ही कानून के जानकारों से राय ली गई तब यह बात समझ आई कि मामला श्रावणी पूर्णिमा को लेकर है. अगर मंदिर के दरवाजे उस दिन नहीं खोले गए तो इसे लेकर कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट में भी मामला जा सकता है.

कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट का भांपा खतरा
आधिकारिक सूत्रों की मानें तो इस बाबत एडवोकेट जनरल से भी राय ली गई. जैसे ही यह बात उभर कर आई कि श्रावणी मेला का समय बीत जाने के बाद कंटेम्प्ट ऑफ कोर्ट में गर्दन फंस सकती है और ऐसे में राज्य की वरिष्ठ नौकरशाही के ऊपर गाज गिर सकती है तो फिर 2 अगस्त की दोपहर में राज्य के प्रशासनिक महकमे के अंदर हलचल शुरू हुई और सरकार ने सारी व्यवस्थाएं की. रविवार की देर रात इस बाबत अधिसूचना जारी हुई. उसके बाद जाकर सोमवार की सुबह मंदिर के दरवाजे खोले गए.

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300 से अधिक लोगों ने किया दर्शन
सोशल डिस्टेंसिंग समेत अन्य उपाय अपनाकर दर्शन किए गए. सबसे बड़ी बात यह है कि कोर्ट ने 300 दर्शनार्थियों का एक आंकड़ा उदाहरण स्वरूप फैसले में लिखा था, जबकि झारखंड में 301 लोगों के दर्शन करने का आंकड़ा सामने आया है. सरकार के अचानक लिए गए इस निर्णय में वैसे अधिकारी अब दाएं बाएं झांकने को मजबूर हैं जो पहले बकायदा लॉ डिपार्टमेंट और अन्य विभागों का हवाला देकर मंदिर नहीं खोलने के पक्ष में थे. बता दें कि 24 मार्च को लगे पहले लॉकडाउन के बाद झारखंड में सभी मंदिरों के दरवाजे बंद हैं.

सांसद ने दायर की थी याचिका

वहीं, बाबा बैद्यनाथ धाम के दरवाजे खोलने के लिए गोड्डा के सांसद निशिकांत दुबे ने झारखंड हाई कोर्ट में एक याचिका दायर की थी. मामला उनके खिलाफ गया तो उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, फिर सुप्रीम कोर्ट ने इस तरह का निर्णय दिया, जिसके बाद श्रावणी पूर्णिमा के दिन बाबा बैद्यनाथ मंदिर के दरवाजे खोले गए ताकि आम लोग दर्शन कर सकें.

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