रांचीः झारखंड की राजधानी रांची में एक ऐसा मोहल्ला है, जिसका नाम फुचका है. इस मोहल्ले में रहने वाले हर एक व्यक्ति गोलगप्पा व्यवसाय से जुड़ा है और अपने परिवार का भरन पोषण कर रहा है. गोलगप्पा यानी फुचका प्रेमियों के प्लेट तक यह कैसे पहुंचता है. इसके बनाने में कितनी मेहनत करनी पड़ती है और कैसे तैयार की जाती है. इसका जायजा लेने ईटीवी भारत की टीम पहुंची फुचका मोहल्ला.
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गोलगप्पे को कई नामों से जानते हैं. इसमें पानी के बताशे, पानी पूड़ी, गुपचुप, टिक्की, पड़ाका, पकोड़ी, फुल्की आदि शामिल हैं. इस फुचके यानी गोलगप्पे को हर कोई चटकारे लेकर खाता है. इमली के पानी के साथ परोसे जाने वाले इस व्यंजन को महिलाएं खुब पसंद करती हैं. हालांकि, पुरुष और बच्चे भी चटकारा लेकर खाते हैं. कांके प्रखंड के ब्लॉक चौक स्थित फुचका मोहल्ला. इस मोहल्ले में 40 से अधिक परिवार रहते हैं, जो गोलगप्पा कारोबार से जुड़े हैं. इस व्यवसाय के जरिए मोहल्ले में रहने वाले लोगों का घर चलता है. ये लोग दिन-रात मेहतन करते हैं, ताकि फुचका प्रेमियों के प्लेट तक आसानी से स्वाद पहुंच सके. कारोबार से जुड़े लोग कहते हैं कि गोलगप्पे की छोटी छोटी पुड़िया बनाना सबके बस की बात नहीं है. लेकिन इस मोहल्ले के लोग आसानी से बनाते हैं.
मोहल्ले में रहने वाले लोग अहले सुबह 3:30 बजे जगते हैं और गोलगप्पे की तैयारी में जुट जाते हैं. दोपहर एक से 2 बजे तक तैयार करने के बाद ठेले पर लोड कर बाजार में पहुंचते हैं. स्थानीय मंजू देवी कहती हैं कि सबह से पूड़ी तैयार करने के साथ साथ आलू उबालना और इमली-पानी तैयार करना होता है. हमलोग यह काम आज से नहीं, बल्कि कई पीढ़ियों से करते आ रहे हैं. उन्होंने कहा कि इस मोहल्ले के गोलगप्पे शहर के हर जगहों पर बिकते हैं.
संजीत कुमार कहते हैं कि इस मोहल्ले के गोलगप्पे का स्वाद कुछ अलग है, जिसे शहर के लोग काफी पसंद करते हैं. उन्होंने कहा कि स्वच्छता और क्वालिटी का ख्याल करते हुए गोलगप्पा के साथ साथ मसाला और पानी तैयार करते हैं. इसके बाद बाजार में ठेला दुकान लगाने पहुंचते हैं और रात्रि 10:00 बजे तक फुचका बेचकर घर लौटते हैं.