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विश्व आदिवासी दिवस: कभी झारखंड में था चेरो आदिवासी का शासन, आज राजा से बन चुके हैं रंक

धनि-धनि राजा मेदनीया, घर-घर बाजे माथनियां यह कहावत पूरे चेरो राजवंश और चेरों शासनकाल की संपन्नता को बताता है. चेरो राजवंश का इतिहास करीब 400 साल पुराना है. इन 400 सालों में चेरो आदिवासी राजा से रंक हो गए.

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Published : Aug 7, 2019, 1:03 PM IST

पलामू: जिले में चेरो और चेरो राजवंश का इतिहास करीब 400 वर्ष पुराना है. इन 400 सालों में चेरो आदिवासी राजा से रंक हो गए. कभी पलामू में शासन करने वाले चेरो को सरकार ने संरक्षित श्रेणी में रखा है. चेरो जाति आदिवासी है. चेरो आबादी पलामू के नदी और जंगली क्षेत्रों में बसी हुई है.

देखिए स्पेशल स्टोरी


आकंडों पर गौर करें तो पलामू, गढ़वा और लातेहार के इलाके में चेरो आदिवासी के करीब एक लाख परिवार हैं. 90 प्रतिशत से अधिक आबादी गरीबी रेखा से नीचे है. चेरो राजा मेदिनी राय के नाम पर ही पलामू प्रमंडलीय मुख्यालय मेदिनीनगर का नाम है, जबकि पलामू का नामकरण चेरो राजाओं ने ही किया था.


1613 में स्थापित हुआ था चेरो राजवंश
पलामू में चेरो राजवंश या जाति का आगमन 1613 में हुआ था. यह उल्लेख अंग्रेजों द्वारा लिखित इतिहास में है, जबकि मुगलों के लिखित इतिहास में 1585 से है. चेरो के इतिहासकार राजेश्वर सिंह बताते हैं कि अंग्रेजों द्वारा लिखित इतिहास अधिक तथ्यात्मक है, जबकि एक अन्य इतिहासकार ने भी इस बात को लिखा है. वे बताते हैं कि चेरो आदिवासी की उत्पत्ति का काफी लंबा इतिहास है. चेरो आदिवासी कुमाउ के इलाके से शाहबाद होते हुए पलामू पहुंचे थे.


भगवंत राय ने रखी थी राजवंश की नींव
राजेश्वर सिंह चेरो आदिवासी और राजवंश पर किताब लिख रहे हैं. उन्हें एकजुट करने का प्रयास कर रहे हैं. 1613 में पलामू के वर्तमान तरहसी में अमानत नदी के किनारे मानगढ़ में भगवंत राय ने चेरो राजवंश की नींव रखी थी. भगवंत राय ने रक्सेल राजा मानसिंह के परिवार की हत्या करने के बाद शासन स्थापित किया था. चेरो हिन्दू हैं. वे अंतर्जातीय विवाह नहीं करते हैं. चेरो जाती में डोला शादी एक परंपरा है. यह परंपरा अब भी कायम है. इस परंपरा में लड़की के यहां लड़का के परिजन जाते हैं और लड़की को अपने घर लाते है. उसके बाद लड़के के घर मे ही धूमधाम से शादी की जाती है.


चेरो आदिवासी का साम्राज्य
इतिहासकार राजेश्वर सिंह बताते हैं कि चेरो राजवंश के फैलाव राजा मेदनीराय के वक्त हजारीबाग से मध्यप्रदेश के सरगुजा और शेरघाटी से लोहरदगा तक फैला हुआ था. चेरो आदिवासी राजा से जमींदार, जमींदार से किसान, किसान से बनिहार हो गए हैं. वे बताते है कि चेरो राजवंश की भव्यता को बताने वाला पलामू किला को सुरक्षा के दृष्टिकोण से बनवाया गया था. इसका दरवाजा छोटानागपुर से मंगवाया गया था. चेरो राजवंश का अंतिम शासक चूड़ामन राय थे. जो 1785 से 1813 तक थे. इनका कोई उत्तराधिकारी नहीं होने पर अंग्रेजों ने पूरे साम्राज्य को कब्जे में ले लिया था.

ये भी पढ़ें: सुषमा स्वराज का निधन, पूरे देश में शोक की लहर
चेरो राजाओं का इतिहास

  • भगवंत राय 1585-1605
  • अंनत राय 1605-1612
  • सहबल राय 1612-1627
  • प्रताप राय 1627-1637
  • भूपल राय 1637-1657
  • मेदिनीराय 1658-1674
  • रुद्र राय 1674-1680
  • दुर्गपाल राय 1680-1697
  • साहेब राय 1697-1716
  • रंजीत राय 1716-1722
  • जयकिशन राय 1722-1770
  • चिमनजीत राय 1770-1771
  • गोपाल राय 1771-1777
  • गजराज राय 1777-1780
  • बसंत राय 1780-1783
  • चूड़ामन राय 1785-1813

पलामू: जिले में चेरो और चेरो राजवंश का इतिहास करीब 400 वर्ष पुराना है. इन 400 सालों में चेरो आदिवासी राजा से रंक हो गए. कभी पलामू में शासन करने वाले चेरो को सरकार ने संरक्षित श्रेणी में रखा है. चेरो जाति आदिवासी है. चेरो आबादी पलामू के नदी और जंगली क्षेत्रों में बसी हुई है.

देखिए स्पेशल स्टोरी


आकंडों पर गौर करें तो पलामू, गढ़वा और लातेहार के इलाके में चेरो आदिवासी के करीब एक लाख परिवार हैं. 90 प्रतिशत से अधिक आबादी गरीबी रेखा से नीचे है. चेरो राजा मेदिनी राय के नाम पर ही पलामू प्रमंडलीय मुख्यालय मेदिनीनगर का नाम है, जबकि पलामू का नामकरण चेरो राजाओं ने ही किया था.


1613 में स्थापित हुआ था चेरो राजवंश
पलामू में चेरो राजवंश या जाति का आगमन 1613 में हुआ था. यह उल्लेख अंग्रेजों द्वारा लिखित इतिहास में है, जबकि मुगलों के लिखित इतिहास में 1585 से है. चेरो के इतिहासकार राजेश्वर सिंह बताते हैं कि अंग्रेजों द्वारा लिखित इतिहास अधिक तथ्यात्मक है, जबकि एक अन्य इतिहासकार ने भी इस बात को लिखा है. वे बताते हैं कि चेरो आदिवासी की उत्पत्ति का काफी लंबा इतिहास है. चेरो आदिवासी कुमाउ के इलाके से शाहबाद होते हुए पलामू पहुंचे थे.


भगवंत राय ने रखी थी राजवंश की नींव
राजेश्वर सिंह चेरो आदिवासी और राजवंश पर किताब लिख रहे हैं. उन्हें एकजुट करने का प्रयास कर रहे हैं. 1613 में पलामू के वर्तमान तरहसी में अमानत नदी के किनारे मानगढ़ में भगवंत राय ने चेरो राजवंश की नींव रखी थी. भगवंत राय ने रक्सेल राजा मानसिंह के परिवार की हत्या करने के बाद शासन स्थापित किया था. चेरो हिन्दू हैं. वे अंतर्जातीय विवाह नहीं करते हैं. चेरो जाती में डोला शादी एक परंपरा है. यह परंपरा अब भी कायम है. इस परंपरा में लड़की के यहां लड़का के परिजन जाते हैं और लड़की को अपने घर लाते है. उसके बाद लड़के के घर मे ही धूमधाम से शादी की जाती है.


चेरो आदिवासी का साम्राज्य
इतिहासकार राजेश्वर सिंह बताते हैं कि चेरो राजवंश के फैलाव राजा मेदनीराय के वक्त हजारीबाग से मध्यप्रदेश के सरगुजा और शेरघाटी से लोहरदगा तक फैला हुआ था. चेरो आदिवासी राजा से जमींदार, जमींदार से किसान, किसान से बनिहार हो गए हैं. वे बताते है कि चेरो राजवंश की भव्यता को बताने वाला पलामू किला को सुरक्षा के दृष्टिकोण से बनवाया गया था. इसका दरवाजा छोटानागपुर से मंगवाया गया था. चेरो राजवंश का अंतिम शासक चूड़ामन राय थे. जो 1785 से 1813 तक थे. इनका कोई उत्तराधिकारी नहीं होने पर अंग्रेजों ने पूरे साम्राज्य को कब्जे में ले लिया था.

ये भी पढ़ें: सुषमा स्वराज का निधन, पूरे देश में शोक की लहर
चेरो राजाओं का इतिहास

  • भगवंत राय 1585-1605
  • अंनत राय 1605-1612
  • सहबल राय 1612-1627
  • प्रताप राय 1627-1637
  • भूपल राय 1637-1657
  • मेदिनीराय 1658-1674
  • रुद्र राय 1674-1680
  • दुर्गपाल राय 1680-1697
  • साहेब राय 1697-1716
  • रंजीत राय 1716-1722
  • जयकिशन राय 1722-1770
  • चिमनजीत राय 1770-1771
  • गोपाल राय 1771-1777
  • गजराज राय 1777-1780
  • बसंत राय 1780-1783
  • चूड़ामन राय 1785-1813
Intro:आदिवासी दिवस- पलामू में 200 वर्षो तक शासन किया था चेरो राजवंश ने, राजा से रंक हो गए चेरो

नीरज कुमार । पलामू

धनि धनि राजा मेदनीया, घर घर बाजे माथनियाँ। यह कहावत पूरे चेरो राजवंश और चेरों शासन काल की संपन्नता को बताता है। कहावत पूरे झारखण्ड बिहार में मशहूर है। 1658 में चेरो राजा मेदनीराय के शासन काल में यह कहावत मशहूर है। पलामू में चेरो और चेरो राजवंश के इतिहास करीब 400 वर्ष पुराना है। इन 400 वर्षों में चेरो राजा से रंक हो गए। कभी पलामू में शासन करने वाले चेरो को सरकार ने संरक्षित श्रेणी में रखा है। चेरो जाती आदिवासी है, चेरो आबादी पलामू के नदी और जंगली क्षेत्रो में बसी हुई है। आकंडो पर गौर करें से पलामू, गढ़वा और लातेहार के इलाके में चेरो जाती के करीब एक लाख परिवार है। 90 प्रतिशत से अधिक आबादी गरीबी रेखा से नीचे है। चेरो राजा मेदिनी राय के नाम पर ही पलामू प्रमंडलीय मुख्यालय मेदिनीनगर का नाम है। जबकि पलामू का नामकरण चेरो राजाओं ने ही किया था।


Body:1613 में पलामू में स्थापित हुआ था चेरो राजवंश, मुगलों के अनुसार 1585 में

पलामू में चेरो राजवंश या जाति का आगमन 1613 में हुआ था, यह उल्लेख अंग्रेजो द्वारा लिखित इतिहास में है, जबकिं मुगलों के लिखित इतिहास में 1585 से है। चेरो इतिहासकार राजेश्वर सिंह बताते है कि अंग्रेजो द्वारा लिखित इतिहास अधिक तथ्यात्मक है। जबकि एक अन्य इतिहासकार ने भी इस बात को लिखा है। वे बताते हैं कि चेरो जाती की उत्पत्ति का काफी लंबा इतिहास है। चेरो जाती कुमाउ के इलाके से शाहबाद होते हुए पलामू पंहुची थी। राजेश्वर सिंह चेरो जाती और राजवंश पर किताब लिख है रहे हैं उन्हें एकजुट करने का प्रयास कर रहे हैं। 1613 में पलामू के वर्तमान तरहसी में अमानत नदी के किनारे मानगढ़ में भगवंत राय ने चेरो राजवंश की नींव रखी थी। भगवंत राय ने रक्सेल राजा मानसिंह के परिवार की हत्या करने के बाद शासन स्थापित किया था।
चेरो हिन्दू है वे अंतर्जातीय विहाह नहीं करते हैं। चेरो जाती में डोला शादी एक परंपरा है। यह परंपरा अब भी कायम है। इस परंपरा में लड़की के यंहा लड़का के परिजन जाते हैं और लड़की को अपने घर लाते है। उसके बाद लड़के के घर मे ही धूम धाम से शादी की जाती है।


Conclusion:हजारीबाग से सरगुजा तक फैला था चेरो जाती का साम्राज्य

इतिहासकार राजेश्वर सिंह बताते है कि चेरो राजवंश के फैलाव राजा मेदनीराय के वक्त हजारीबाग से मध्यप्रदेश के सरगुजा और शेरघाटी से लोहरदगा तक फैला हुआ था। राजेश्वर सिंह बताते हैं कि चेरो राजा से जमींदार, जमींदार से किसान, किसान स बनिहार हो गए है। वे बताते है कि चेरो राजवंश की भव्यता को बताने वाला पलामू किला को सुरक्षा के दृष्टिकोण से बनवाया गया था, इसका दरवाजा छोटानागपुर से मंगवाया गया था। चेरो राजवंश का अंतिम शासक चूड़ामन राय थे, जो 1785 से 1813 तक थे। इनका कोई उताधिकारी नही होने पर अंग्रेजो ने पूरे साम्राज्य को कब्जे में ले लिया था।


चेरो राजाओं का इतिहास

भगवंत राय -1585--1605
अंनत राय. 1605 --1612
सहबल राय 1612 -- 1627
प्रताप राय 1627 - 1637
भूपल राय 1637 --1657
मेदिनीराय 1658- -1674
रुद्र राय 1674 -- 1680
दुर्गपाल राय। 1680 -- 1697
साहेब राय। 1697-- 1716
रंजीत राय। 1716-- 1722
जयकिशन राय। 1722-- 1770
चिमनजीत राय। 1770-- 1771
गोपाल राय 1771-- 1777
गजराज राय। 1777--- 1780
बसंत राय 1780-- 1783
चूड़ामन राय 1785 --1813

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