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नवरात्र में फूल लोढ़ी परंपरा नारी शक्ति का उदाहरण, महिलाओं के लिए है खास महत्व - Palamu News

नवरात्र के दौरान देश के विभिन्न इलाकों में कई परंपराएं प्रचलित हैं. जो मां दुर्गा की शक्ति का उदाहरण है. पलामू में फूल लोढ़ी (Phool Lodhi) परंपरा सदियों से चलते आ रही है. यह परंपरा नारी शक्ति का उदाहरण है. झारखंड के पलामू, गढ़वा और उत्तर प्रदेश के साथ-साथ उत्तराखंड के कुछ इलाकों में भी यह परंपरा प्रचलित है.

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फूल लोढ़ी परंपरा
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Published : Oct 12, 2021, 6:50 PM IST

Updated : Oct 12, 2021, 8:40 PM IST

पलामू: पूरे देश में नवरात्र की धूम है. लोग मां दुर्गा से अपनी सुख और समृद्धि की कामना कर रहे हैं. नवरात्र के दौरान देश के विभिन्न इलाकों में कई ऐसी परंपराएं हैं. जो मां दुर्गा की शक्ति का उदाहरण है. नारी शक्ति का बड़ा उदाहरण है फूल लोढ़ी (Phool Lodhi) परंपरा. यह परंपरा झारखंड के पलामू, गढ़वा और उत्तर प्रदेश के साथ-साथ उत्तराखंड के कुछ इलाकों में प्रचलित है.

इसे भी पढे़ं: ना मूर्ति... ना पिंडी... यहां होती है निराकार माई की पूजा, भक्तों की सभी मुरादें होती है पूरी

नवरात्र के पहले दिन शुरू होने वाली फूल लोढ़ी परंपरा सप्तमी तक चलती है. सप्तमी की शाम में आरती के साथ इसका समापन होता है. फूल लोढ़ी परंपरा में देवी मां के सभी रूपों के साथ साथ भगवान शिव और गौरी, गणेश की भी पूजा की जाती है. यह परंपरा प्रकृति से जुड़ा है. इसमें फूल और नदियों का काफी महत्व है. इसके गीत आज भी पलामू के कई हिस्सों में गूंजते हैं. पंडित चंद्र कांत द्विवेदी बताते हैं कि फूल लोढ़ी की परंपरा यूपी और उत्तराखंड के कई इलाकों में भी है.

देखें स्पेशल स्टोरी

फूल लोढ़ी के दौरान ससुराल से मायके जाती है लड़कियां

फूल लोढ़ी पूरी तरह लड़कियां की परंपरा है. इसमें खास तौर पर लड़कियां अपने ससुराल से मायके जाती है. पूरे नवरात्र लड़कियां अपने मायके में रहती है और फूल लोढ़ी करती है. लड़कियों गांव के विभिन्न इलाको में जाती है और फूल तोड़ कर लाती है. हर दिन नए फूल से मां दुर्गा के सभी रूप की पूजा की जाती है. इसमें सबसे खास यह है कि मां दुर्गा, गौरी, गणेश और भगवान शिव की प्रतिमा खुद लड़कियां मिट्टी से बनाती है और उसकी पूजा करती है. सप्तमी के अंतिम दिन प्रतिमा को नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है. कई सालों से इस परंपरा में भाग ले रही अलकारो देवी बताती हैं कि यह काफी पुराना परंपरा है. इस परंपरा में गांव की सभी बेटियां एक जगह जमा होती है.

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गीत गातीं महिलाएं
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विलुप्त हो रही है यह परंपरा

फूल लोढ़ी परंपरा धीरे-धीरे विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई है. पलामू के कुछ ही घर बचे हैं, जहां यह परंपरा आज भी कायम है. अलकारो देवी और कुमारो देवी बताती हैं कि बदलते वक्त के साथ सब कुछ बदल गया है. धीरे-धीरे लोग इस परंपरा को निभाना भूल गए हैं. पहले गांव में काफी भीड़ होती थी. लेकिन अब लोग बाहर चले गए हैं. लोगों के जीवन में बदलाव हुआ है. जिसके कारण इस तरह की परंपराएं भी प्रभावित हुई है. फूल लोढ़ी में फूल, पेड़ और नदियों का काफी महत्व है. पूरी परंपरा इसी से जुड़ी हुई है. यह परंपरा नारी के शक्ति के साथ-साथ प्रकृति से लगाव के बारे में भी बताती है.

पलामू: पूरे देश में नवरात्र की धूम है. लोग मां दुर्गा से अपनी सुख और समृद्धि की कामना कर रहे हैं. नवरात्र के दौरान देश के विभिन्न इलाकों में कई ऐसी परंपराएं हैं. जो मां दुर्गा की शक्ति का उदाहरण है. नारी शक्ति का बड़ा उदाहरण है फूल लोढ़ी (Phool Lodhi) परंपरा. यह परंपरा झारखंड के पलामू, गढ़वा और उत्तर प्रदेश के साथ-साथ उत्तराखंड के कुछ इलाकों में प्रचलित है.

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नवरात्र के पहले दिन शुरू होने वाली फूल लोढ़ी परंपरा सप्तमी तक चलती है. सप्तमी की शाम में आरती के साथ इसका समापन होता है. फूल लोढ़ी परंपरा में देवी मां के सभी रूपों के साथ साथ भगवान शिव और गौरी, गणेश की भी पूजा की जाती है. यह परंपरा प्रकृति से जुड़ा है. इसमें फूल और नदियों का काफी महत्व है. इसके गीत आज भी पलामू के कई हिस्सों में गूंजते हैं. पंडित चंद्र कांत द्विवेदी बताते हैं कि फूल लोढ़ी की परंपरा यूपी और उत्तराखंड के कई इलाकों में भी है.

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फूल लोढ़ी के दौरान ससुराल से मायके जाती है लड़कियां

फूल लोढ़ी पूरी तरह लड़कियां की परंपरा है. इसमें खास तौर पर लड़कियां अपने ससुराल से मायके जाती है. पूरे नवरात्र लड़कियां अपने मायके में रहती है और फूल लोढ़ी करती है. लड़कियों गांव के विभिन्न इलाको में जाती है और फूल तोड़ कर लाती है. हर दिन नए फूल से मां दुर्गा के सभी रूप की पूजा की जाती है. इसमें सबसे खास यह है कि मां दुर्गा, गौरी, गणेश और भगवान शिव की प्रतिमा खुद लड़कियां मिट्टी से बनाती है और उसकी पूजा करती है. सप्तमी के अंतिम दिन प्रतिमा को नदी में प्रवाहित कर दिया जाता है. कई सालों से इस परंपरा में भाग ले रही अलकारो देवी बताती हैं कि यह काफी पुराना परंपरा है. इस परंपरा में गांव की सभी बेटियां एक जगह जमा होती है.

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विलुप्त हो रही है यह परंपरा

फूल लोढ़ी परंपरा धीरे-धीरे विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गई है. पलामू के कुछ ही घर बचे हैं, जहां यह परंपरा आज भी कायम है. अलकारो देवी और कुमारो देवी बताती हैं कि बदलते वक्त के साथ सब कुछ बदल गया है. धीरे-धीरे लोग इस परंपरा को निभाना भूल गए हैं. पहले गांव में काफी भीड़ होती थी. लेकिन अब लोग बाहर चले गए हैं. लोगों के जीवन में बदलाव हुआ है. जिसके कारण इस तरह की परंपराएं भी प्रभावित हुई है. फूल लोढ़ी में फूल, पेड़ और नदियों का काफी महत्व है. पूरी परंपरा इसी से जुड़ी हुई है. यह परंपरा नारी के शक्ति के साथ-साथ प्रकृति से लगाव के बारे में भी बताती है.

Last Updated : Oct 12, 2021, 8:40 PM IST
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