पलामू: कहते हैं स्कूल शिक्षा का मंदिर होता है. जहां नौनिहालों को जीने का गुर सिखाया जाता है. बच्चे पढ़ लिखकर जमाने से कदमताल करना सीखते हैं. लेकिन उसी स्कूल में जब मौत की इबारत बच्चों के सामने हो तो सोचिए उन मासूम मन में क्या क्या सवाल उठते होंगे. कुछ ऐसा ही हुआ है पलामू के लेस्लीगंज प्रखंड के बांसदोहर कन्या मध्य विद्यालय में जहां स्कूल परिसर में मृतकों का स्मारक बना दिया गया है. नतीजे में स्कूल में पढ़ने वाली करीब 150 बच्चियां दूसरे स्कूलों में पढ़ाई करने को मजबूर हो गई.
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परंपरा के नाम पर भविष्य से खिलवाड़: बांसदोहर के स्थानीय ग्रामीणों की मानें तो कलबुद (स्मारक) बनाने की परंपरा पुरखों से चली आ रही है. स्कूल भवन का जमीन गैर मजरुआ रहा है, जिस कारण यहां स्मारक बनाए गए हैं. ग्रामीण रामजन्म पांडेय ने बताया कि स्कूल भवन बनने से पहले वहां स्मारक बनाए जा रहे थे जो स्कूल बनने के बाद भी जारी रहा. हालत ये है कि स्कूल के सामने अब स्मारक ही स्मारक दिखाई दे रहे हैं. ग्रामीणों के अनुसार स्कूल बंद होने के पीछे स्मारक नहीं बल्कि शिक्षकों की लापरवाही है. उनके मुताबिक शिक्षक एक-एक कर ट्रांसफर करवा कर यहां से चले गए. जिससे इस स्कूल को बंद करना पड़ा.
स्मारक से प्रभावित होती है पढ़ाई: ग्रामीणों के उलट झारखंड राज्य प्राथमिक शिक्षक संघ के अमरेश सिंह ने कहा कि सरकारी स्कूलों में गरीब घर के बच्चे पढ़ाई करते है. ऐसे में स्कूल परिसर में किसी प्रकार का धार्मिक चिन्ह या अन्य किसी चीज को स्थापित करना दुर्भाग्यपूर्ण है. इस तरह के कार्यों से बच्चों की पढ़ाई प्रभावित होती है और उनकी मनोदशा भी प्रभावित होती है. उस माहौल में किसी भी टीचर के लिए पढ़ाई करवाना संभव नहीं होता है.
2018 में स्कूल हुआ बंद: ग्रामीणों की परंपरा की दुहाई और शिक्षकों की मजबूरियों के बीच बांसदोहर गांव के बच्चों को भविष्य प्रभावित हुआ है. प्रखंड शिक्षा समिति के अनुमोदन के बाद स्कूल को अगस्त 2018 में बंद कर दिया गया. जिसके बाद करीब 150 बच्चियां और अन्य बच्चे दूसरे स्कूलों में जाने को मजबूर हो गए और लाखों की लागत से बनाया गया स्कूल भवन अब बर्बादी के कगार पर पहुंच गया है. पूरे मामले में जिला शिक्षा पदाधिकारी उपेंद्र नारायण ने बताया कि प्रखंड शिक्षा समिति के अनुमोदन पर स्कूल को बंद किया गया था. स्कूल को खोलने को लेकर नियमानुसार पहल की जाएगी. बता दें कि बांसदोहर कन्या मध्य विद्यालय अपने प्रखंड का दूसरा कन्या स्कूल था और स्कूल परिसर में स्मारक बनाने की शुरुआत 2001 में की गई थी. जबकि स्कूल परिसर की स्थापना कई वर्ष पहले हो चुकी थी