पलामूः कोविड-19 से पूरा विश्व जूझ रहा है, इस महामारी ने सब कुछ तबाह कर दिया है. भारतीय संस्कृति में कुछ ऐसी भी परंपरा रही है जो संकट या महामारी के समय लोगो को साहस देती रही है. कुछ ऐसी ही परंपरा है "मल्होरी".
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मल्होरी के पारंपरिक गीत इस इलाके में भोजपुरी भाषा का प्रभाव है, इस इलाके की पुरानी पीढ़ी इस परंपरा को बखूबी जानती है. इस परंपरा की शुरुआत कब हुई थी, इसकी स्पष्ट जानकारी किसी के पास नही है. लेकिन रामायण काल में भी मल्हारी परंपरा का जिक्र है, पर बदलते वक्त के साथ यह परंपरा विलुप्ति के कगार पर है.
एक खास समुदाय के लोग गाते हैं मल्होरी गीत, देवी मां की आराधना
मल्होरी गीत एक खास परंपरा है और यह एक खास समुदाय की ओर से गायी जाती थी. पलामू के कई गांव में आज भी यह परंपरा कायम है. मल्होरी समुदाय से जुड़े हुए लोग घर-घर जाते हैं और देवी मां के गीतों को गाते हैं. गीत गाने के बाद मिली दक्षिणा से वह अपना जीवन यापन करते हैं. कभी पलामू के 400 से अधिक गांव में इस परंपरा से लोग जुड़े हुए थे अब यह सिमटकर 30 के करीब हो गए हैं.
बदलते वक्त के साथ सब कुछ बदल गया है, जिससे इस परंपरा ने भी अपने स्वरूप को बदल लिया है और यह अब फूलों की सजावट तक पहुंच गया है. चैनपुर के इलाके के बुजुर्ग रामलव चौरसिया बताते हैं कि अब यह प्रथा विलुप्ति की कगार पर है, पहले मल्होरी गांव में घर-घर जाते थे और लोगों आशीर्वाद में रूप में फूल देते थे.
चेचक जैसे महामारी में गाए जाते थे मल्होरी गीत
किसी जमाने में चेचक एक महामारी हुआ करती थी, उस जमाने में चेचक के दौरान मल्होरी समुदाय के लोगों को खासतौर पर बुलाया जाता था. इसके गीत के माध्यम से देवी मां की आराधना की जाती है और ऐसा कहा गया है कि इसके गीत सुनने वाला व्यक्ति ठीक हो जाता है. मल्होरी परंपरा से जुड़े बुजुर्ग ने बताया कि उनकी कई पीढ़ी इस परंपरा से जुड़ी हुई है. मल्होरी गीत गाने वाले लोगों की संख्या कम हो गई है.
उन्होंने बताया कि दान दक्षिणा ठीक ठाक मिल जाता है, परंपरा से जुड़े हुए व्यक्ति बताते हैं कि चेचक के दौरान खासकर पर उन्हें याद किया जाता था, अन्य महामारी में भी मां देवी की आराधना होती है और मल्होरी गीत गाए जाते हैं.
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भोजपुरी भाषा के प्रभाव वाले इलाके में चर्चित है मल्होरी गीत
भोजपुरी भाषा के प्रभाव वाले इलाके आरा, बक्सर, औरंगाबाद, गया, सासाराम, रोहतास, जहानाबाद, पलामू, गढ़वा, लातेहार, चतरा के इलाके में मल्होरी परंपरा का खास प्रभाव है. साहित्यकार हरिवंश प्रभात बताते हैं कि मल्होरी या मल्होर का जिक्र रामायण में भी है. किसी जमाने में इसके गीत शादी विवाह में भी गए जाते थे, इसके गीत के बाद लगन की शुरुआत होती है. उन्होंने बताया कि इस परंपरा का प्रभाव भोजपुरी भाषा वाले इलाके में है, पर अब धीरे-धीरे यह सब कुछ बदलता गया है.
लोक गायिका और पारंपरिक गीतों जाननेवाली शालिनी श्रीवास्तव ने बताया कि धीरे-धीरे सब कुछ बदल गया है. मल्होरी गीत जुड़े हुए लोग अब धीरे-धीरे फूलों के व्यापार से जुड़ गए हैं. उन्होंने बताया कि मल्होरी गीत में फूलों का बड़ा ही महत्व है, फूल के साथ ही इस गीत को गाया जाता है.