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सालखन मुर्मू ने राष्ट्रपति को भेजा मांग पत्र, 22 दिसंबर को राष्ट्रीय अवकाश घोषित करने की रखी बात

आदिवासी सेंगेल अभियान प्रमुख सालखन मुर्मू ने 22 दिसंबर को राष्ट्रीय महत्व देने के साथ राष्ट्रीय अवकाश घोषित किये जाने को लेकर राष्ट्रपति को मांग पत्र भेजा है. मांग पत्र में 22 दिसंबर को राष्ट्रीय महत्व देते हुए इस दिन को विजय दिवस के रूप में मनाने की मांग सालखन मुर्मू ने रखी है.

Salkhan Murmu sent demand letter to the President
सालखन मुर्मू
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Published : Dec 25, 2020, 7:40 AM IST

जमशेदपुर: आदिवासी सेंगेल अभियान प्रमुख सह झारखंड जदयू प्रदेश अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने 22 दिसंबर को राष्ट्रीय महत्व देने के साथ राष्ट्रीय अवकाश घोषित किये जाने के लिए देश के राष्ट्रपति को मांग पत्र भेजा है. आदिवासी सेंगेल अभियान प्रमुख ने बताया कि 22 दिसंबर 1855 को आदिवासियों ने अपनी मातृभूमि और 22 दिसंबर 2003 को मातृभाषा पर ऐतिहासिक विजय दर्ज किया है जिसे देखते हुए 22 दिसंबर की तारीख को सरकारी मान्यता देने की जरूरत है.

देखें पूरी खबर

अपने आवासीय कार्यालय कदमा में बातचीत के दौरान सालखन मुर्मू ने बताया कि 22 दिसंबर 1855 में आदिवासियों ने अंग्रेजों से लड़ाई लड़कर संताल परगना जिला की स्थापना कर संताल परगना टेनेंसी कानून की स्थापना करने का लक्ष्य प्राप्त किया था और विजय दिवस मनाया था जबकि 1947 में देश की आजादी के पूर्व आदिवासियों ने अंग्रेजों से यह जीत हासिल किया है.

ये भी पढ़ें-NHRC ने रामगढ़ एसपी पर लगे आरोपों पर लिया संज्ञान, सीआईडी के डीआईजी को मिला जांच का जिम्मा

उन्होंने बताया कि 22 दिसंबर 2003 में संथाली भाषा को 8वीं अनुसूची में शामिल होने का गौरव मिला है जो आदिवासियों के हासा और भाषा की जीत है इस दिन को विजय दिवस के रूप में आदिवासी मनाते आ रहे हैं. आदिवासी सेंगेल अभियान प्रमुख सह झारखंड जदयू के प्रदेश अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने बताया कि उन्होंने देश के राष्ट्रपति को एक मांग पत्र भेजा है जिसके तहत यह मांग की गई है कि 22 दिसंबर को राष्ट्रीय महत्व देते हुए इस दिन विजय दिवस मनाने के लिए राष्ट्रीय अवकाश की घोषणा करे.

जमशेदपुर: आदिवासी सेंगेल अभियान प्रमुख सह झारखंड जदयू प्रदेश अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने 22 दिसंबर को राष्ट्रीय महत्व देने के साथ राष्ट्रीय अवकाश घोषित किये जाने के लिए देश के राष्ट्रपति को मांग पत्र भेजा है. आदिवासी सेंगेल अभियान प्रमुख ने बताया कि 22 दिसंबर 1855 को आदिवासियों ने अपनी मातृभूमि और 22 दिसंबर 2003 को मातृभाषा पर ऐतिहासिक विजय दर्ज किया है जिसे देखते हुए 22 दिसंबर की तारीख को सरकारी मान्यता देने की जरूरत है.

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अपने आवासीय कार्यालय कदमा में बातचीत के दौरान सालखन मुर्मू ने बताया कि 22 दिसंबर 1855 में आदिवासियों ने अंग्रेजों से लड़ाई लड़कर संताल परगना जिला की स्थापना कर संताल परगना टेनेंसी कानून की स्थापना करने का लक्ष्य प्राप्त किया था और विजय दिवस मनाया था जबकि 1947 में देश की आजादी के पूर्व आदिवासियों ने अंग्रेजों से यह जीत हासिल किया है.

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उन्होंने बताया कि 22 दिसंबर 2003 में संथाली भाषा को 8वीं अनुसूची में शामिल होने का गौरव मिला है जो आदिवासियों के हासा और भाषा की जीत है इस दिन को विजय दिवस के रूप में आदिवासी मनाते आ रहे हैं. आदिवासी सेंगेल अभियान प्रमुख सह झारखंड जदयू के प्रदेश अध्यक्ष सालखन मुर्मू ने बताया कि उन्होंने देश के राष्ट्रपति को एक मांग पत्र भेजा है जिसके तहत यह मांग की गई है कि 22 दिसंबर को राष्ट्रीय महत्व देते हुए इस दिन विजय दिवस मनाने के लिए राष्ट्रीय अवकाश की घोषणा करे.

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