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Subhash Chandra Bose in Jamshedpur: जमशेदपुर से 'नेताजी' का है खास जुड़ाव, टाटा वर्कर्स यूनियन का किया था नेतृत्व - सुभाष चंद्र बोस की जयंती

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का देश की आजादी में अहम योगदान है. उनका एक रिश्ता जमशेदपुर से भी है. जमशेदपुर में वो मजदूरों के नेता भी रहे हैं. 1928 से लेकर 1937 तक नेताजी सुभाष चंद्र बोस टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी के लेबर एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे.

Subhash Chandra Bose in Jamshedpur
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Published : Jan 23, 2022, 10:28 AM IST

Updated : Jan 23, 2022, 12:14 PM IST

जमशेदपुरः तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा का नारा देने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस देश की आजादी की लड़ाई के साथ लौहनगरी में टाटा वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष भी रहे हैं. टाटा वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष ने बताया कि नेताजी के कार्यकाल में मजदूर और कंपनी के हित में कई अहम फैसले लिए गए, जो आज भी कायम हैं. यही वजह है कि कोरोना काल में प्रबंधन और मजदूरों के बीच तालमेल बेहतर रहा है टाटा वर्कर्स यूनियन नेताजी की जयंती को प्रेरणा दिवस के रूप में मनाती है.

ये भी पढ़ेंः सुभाषचंद्र बोस की 125वीं जयंती पर राष्ट्रपति और पीएम मोदी ने दी श्रद्धांजलि

देश की आजादी के लिए आजाद हिंद फौज की स्थापना करने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस आजादी की लड़ाई के साथ-साथ जमशेदपुर में मजदूरों के नेता भी रहे हैं. टाटा स्टील की टाटा वर्कर्स यूनियन के भवन में नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी तस्वीरें दस्तावेज और उनके लिखे पत्र आज भी पुराने इतिहास की कहानियां बताते हैं. बिष्टुपुर का जी टाउन मैदान आज भी गवाह है जहां नेताजी के नेतृत्व में अंतिम बार हड़ताली मजदूरों के साथ सभा हुई थी और हड़ताल समाप्त हुआ था. 1928 से लेकर 1937 तक नेताजी सुभाष चंद्र बोस टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी के लेबर एसोसिएशन में अध्यक्ष पद पर रहे. जिसे अब टाटा वर्कर्स यूनियन कहा जाता है.

गौरतलब है कि जमशेदपुर में टाटा कंपनी में काम करने वाले मजदूरों के लिए 1920 में जमशेदपुर लेबर एसोसिएशन का गठन किया गया. जिसका नेतृत्व एस एन हलधर ने किया. उस दौरान कंपनी में मजदूरों और विभागीय हड़तालों का सिलसिला जारी था. इस दौरान परिस्थिति को देखते हुए मजदूर नेताओं ने युवा क्रांतिकारी नेताजी सुभाष चंद्र बोस से संपर्क कर उन्हें जमशेदपुर आने का न्योता दिया. 18 अगस्त 1928 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस जमशेदपुर पहुंचे और 20 अगस्त को उन्हें लेबर एसोसिएशन का सर्वसम्मति से अध्यक्ष घोषित कर दिया गया. नेताजी सुभाष चंद्र बोस लेबर एसोसिएशन के तीसरे अध्यक्ष बने.

देखें स्पेशल रिपोर्ट


इधर नेताजी के कमान संभालते ही कंपनी प्रबंधन को नरम रुख अख्तियार करना पड़ा और नेता जी द्वारा उठाई गई मांगों को प्राथमिकता देते हुए कंपनी प्रबंधन के बीच 12 सितंबर 1928 को सम्मानजनक समझौता हुआ और मजदूरों की हड़ताल खत्म हुई. राष्ट्रीय गतिविधियों में लिप्त होने कारण नेताजी सुभाष चंद्र बोस को कई बार जेल भी जाना पड़ा और वे विदेश भी जाते रहे. लेकिन लेबर एसोसिएशन का नेतृत्व उन्होंने बखूबी निभाया. नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 1928 से 1937 तक लेबर एसोसिएशन का नेतृत्व करते हुए टाटा कंपनी के उच्च पदों पर विदेशी अफसरों के स्थान पर सक्षम भारतीय को पदस्थापित करने का दबाव बनाया, जो आज भी कायम है.


टाटा वर्कर्स यूनियन के वर्तमान अध्यक्ष संजीव चौधरी बताते हैं कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में कई महत्वपूर्ण फैसले लिए गए जिस पर कानून बना और आज मजदूर और प्रबंधन के बीच बेहतर संबंध स्थापित है. उन्होंने बताया कि विभागीय बोनस, सेवा की सुरक्षा, पीएफ, मजदूरों के लिए बूट, दस्ताने, एप्रोन, चश्मा जैसे उपकरण की व्यवस्था के अलावा कई प्रस्ताव पर समझौता हुआ. उन्होंने बताया कि 100 साल पुराने टाटा वर्कर्स यूनियन में जितने भी पूर्वज रहे हैं उनमें नेताजी प्रमुख रहे हैं. नेताजी की जयंती को यूनियन एक प्रेरणा दिवस के रूप में मनाती है. हमारे लिए गर्व की बात है कि जिस यूनियन के अध्यक्ष पद पर मैं पदस्थापित हूं उस यूनियन का नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे युवा क्रांतिकारी नेता कमान संभाल चुके हैं.


नेताजी सुभाष चंद्र बोस आज भी यूनियन के लिए एक प्रेरणा के स्रोत हैं. टाटा वर्कर्स यूनियन के उपाध्यक्ष शाहनवाज आलम बताते हैं कि लोग नेताजी को स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जानते हैं, लेकिन नेताजी एक कुशल ट्रेड यूनियन लीडर भी रहे हैं. उनके द्वारा प्रस्तावित नियम आज देश के कानून में मजदूरों के लिए भी है. जी टाउन मैदान में उनके द्वारा अंतिम बार मज़दूरों के साथ सभा हुई, जिसमें नेताजी ने मजदूरों को समझाया कि अपनी मांग के साथ कंपनी की शाख बनी रहे, इस पर भी ध्यान देना चाहिए और हड़ताल समस्या का समाधान नहीं है जिसके बाद हड़ताल खत्म हुई. बहरहाल कुशल नेतृत्व के परिचायक रहे नेताजी सुभाष चंद्र बोस देश की आजादी के साथ-साथ जमशेदपुर में मजदूर नेता बनकर रहे. जिसे आज भी टाटा वर्कर्स यूनियन और मजदूर याद कर गर्वान्वित महसूस करते हैं.

जमशेदपुरः तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा का नारा देने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस देश की आजादी की लड़ाई के साथ लौहनगरी में टाटा वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष भी रहे हैं. टाटा वर्कर्स यूनियन के अध्यक्ष ने बताया कि नेताजी के कार्यकाल में मजदूर और कंपनी के हित में कई अहम फैसले लिए गए, जो आज भी कायम हैं. यही वजह है कि कोरोना काल में प्रबंधन और मजदूरों के बीच तालमेल बेहतर रहा है टाटा वर्कर्स यूनियन नेताजी की जयंती को प्रेरणा दिवस के रूप में मनाती है.

ये भी पढ़ेंः सुभाषचंद्र बोस की 125वीं जयंती पर राष्ट्रपति और पीएम मोदी ने दी श्रद्धांजलि

देश की आजादी के लिए आजाद हिंद फौज की स्थापना करने वाले नेताजी सुभाष चंद्र बोस आजादी की लड़ाई के साथ-साथ जमशेदपुर में मजदूरों के नेता भी रहे हैं. टाटा स्टील की टाटा वर्कर्स यूनियन के भवन में नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी तस्वीरें दस्तावेज और उनके लिखे पत्र आज भी पुराने इतिहास की कहानियां बताते हैं. बिष्टुपुर का जी टाउन मैदान आज भी गवाह है जहां नेताजी के नेतृत्व में अंतिम बार हड़ताली मजदूरों के साथ सभा हुई थी और हड़ताल समाप्त हुआ था. 1928 से लेकर 1937 तक नेताजी सुभाष चंद्र बोस टाटा आयरन एंड स्टील कंपनी के लेबर एसोसिएशन में अध्यक्ष पद पर रहे. जिसे अब टाटा वर्कर्स यूनियन कहा जाता है.

गौरतलब है कि जमशेदपुर में टाटा कंपनी में काम करने वाले मजदूरों के लिए 1920 में जमशेदपुर लेबर एसोसिएशन का गठन किया गया. जिसका नेतृत्व एस एन हलधर ने किया. उस दौरान कंपनी में मजदूरों और विभागीय हड़तालों का सिलसिला जारी था. इस दौरान परिस्थिति को देखते हुए मजदूर नेताओं ने युवा क्रांतिकारी नेताजी सुभाष चंद्र बोस से संपर्क कर उन्हें जमशेदपुर आने का न्योता दिया. 18 अगस्त 1928 को नेताजी सुभाष चंद्र बोस जमशेदपुर पहुंचे और 20 अगस्त को उन्हें लेबर एसोसिएशन का सर्वसम्मति से अध्यक्ष घोषित कर दिया गया. नेताजी सुभाष चंद्र बोस लेबर एसोसिएशन के तीसरे अध्यक्ष बने.

देखें स्पेशल रिपोर्ट


इधर नेताजी के कमान संभालते ही कंपनी प्रबंधन को नरम रुख अख्तियार करना पड़ा और नेता जी द्वारा उठाई गई मांगों को प्राथमिकता देते हुए कंपनी प्रबंधन के बीच 12 सितंबर 1928 को सम्मानजनक समझौता हुआ और मजदूरों की हड़ताल खत्म हुई. राष्ट्रीय गतिविधियों में लिप्त होने कारण नेताजी सुभाष चंद्र बोस को कई बार जेल भी जाना पड़ा और वे विदेश भी जाते रहे. लेकिन लेबर एसोसिएशन का नेतृत्व उन्होंने बखूबी निभाया. नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 1928 से 1937 तक लेबर एसोसिएशन का नेतृत्व करते हुए टाटा कंपनी के उच्च पदों पर विदेशी अफसरों के स्थान पर सक्षम भारतीय को पदस्थापित करने का दबाव बनाया, जो आज भी कायम है.


टाटा वर्कर्स यूनियन के वर्तमान अध्यक्ष संजीव चौधरी बताते हैं कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में कई महत्वपूर्ण फैसले लिए गए जिस पर कानून बना और आज मजदूर और प्रबंधन के बीच बेहतर संबंध स्थापित है. उन्होंने बताया कि विभागीय बोनस, सेवा की सुरक्षा, पीएफ, मजदूरों के लिए बूट, दस्ताने, एप्रोन, चश्मा जैसे उपकरण की व्यवस्था के अलावा कई प्रस्ताव पर समझौता हुआ. उन्होंने बताया कि 100 साल पुराने टाटा वर्कर्स यूनियन में जितने भी पूर्वज रहे हैं उनमें नेताजी प्रमुख रहे हैं. नेताजी की जयंती को यूनियन एक प्रेरणा दिवस के रूप में मनाती है. हमारे लिए गर्व की बात है कि जिस यूनियन के अध्यक्ष पद पर मैं पदस्थापित हूं उस यूनियन का नेताजी सुभाष चंद्र बोस जैसे युवा क्रांतिकारी नेता कमान संभाल चुके हैं.


नेताजी सुभाष चंद्र बोस आज भी यूनियन के लिए एक प्रेरणा के स्रोत हैं. टाटा वर्कर्स यूनियन के उपाध्यक्ष शाहनवाज आलम बताते हैं कि लोग नेताजी को स्वतंत्रता सेनानी के रूप में जानते हैं, लेकिन नेताजी एक कुशल ट्रेड यूनियन लीडर भी रहे हैं. उनके द्वारा प्रस्तावित नियम आज देश के कानून में मजदूरों के लिए भी है. जी टाउन मैदान में उनके द्वारा अंतिम बार मज़दूरों के साथ सभा हुई, जिसमें नेताजी ने मजदूरों को समझाया कि अपनी मांग के साथ कंपनी की शाख बनी रहे, इस पर भी ध्यान देना चाहिए और हड़ताल समस्या का समाधान नहीं है जिसके बाद हड़ताल खत्म हुई. बहरहाल कुशल नेतृत्व के परिचायक रहे नेताजी सुभाष चंद्र बोस देश की आजादी के साथ-साथ जमशेदपुर में मजदूर नेता बनकर रहे. जिसे आज भी टाटा वर्कर्स यूनियन और मजदूर याद कर गर्वान्वित महसूस करते हैं.

Last Updated : Jan 23, 2022, 12:14 PM IST
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