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झारखंड में भाषा को लेकर विवाद जारी: मैथिली भाषा को जिलावार भाषा सूची से हटाने का विरोध - जमशेदपुर के मैथिली भाषियों ने नाराजगी जताई

झारखंड में भाषा को लेकर विवाद जारी है. मैथिली भाषा को जिलावार भाषा सूची से हटाने का जमशेदपुर में विरोध प्रदर्शन किया गया है. राज्य सरकार के इस फैसले को लेकर मैथिली भाषियों में रोष व्याप्त है.

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झारखंड में भाषा को लेकर विवाद
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Published : Dec 25, 2021, 10:12 PM IST

जमशेदपुरः झारखंड सरकार के द्वारा जिलावार भाषा सूची से मैथिली भाषा हटाए जाने का विरोध शुरू हो गया है. इससे झारखंड के मैथिली भाषियों में आक्रोश देखा जा रहा है. इसको लेकर जमशेदपुर के मैथिली भाषियों ने नाराजगी जताई है. इसके अलावा अलग-अलग सामाजिक संस्थाएं एक मंच पर आकर राज्य सरकार के फैसले का विरोध करने का निर्णय लिया है.

इसे भी पढ़ें- झारखंड में भाषा विवाद फिर से शुरू, मैथिली-उर्दू के साथ नाइंसाफी का आरोप, मामला पहुंचा हाई कोर्ट


मिथिला सांस्कृतिक परिषद के अध्यक्ष लक्ष्मण झा ने बताया है कि झारखंड सरकार के द्वारा इस प्रकार का फैसला लिया जाना काफी दुर्भाग्यपूर्ण है. यहां झारखंड में रह रहे 20 लाख से अधिक मैथिली भाषा भाषियों में इससे नाराजगी व्याप्त है. इसके लिए एक बार फिर झारखंड के रहने वाले लोग आंदोलन करेंगे. वहीं मिथिला सांस्कृतिक परिषद के महासचिव ललन चौधरी ने कहा कि सरकार का ये फैसला यहां रह रहे मैथिली भाषा भाषियों के साथ भेदभाव वाली नीति है.

देखें पूरी खबर

उन्होंने कहा कि इस मामले को लेकर पूरे झारखंड में मैथिली समुदाय के लोग एक मंच पर आकर विरोध करेंगे. अगर जरूरत पड़ी तो विधानसभा का भी घेराव करेंगे या फिर राजभवन घेराव करेंगे या मुख्यमंत्री आवास का घेराव भी करेंगे. उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि यह फैसला गैर-जिम्मेदाराना है. उन्होंने कहा कि न्याय के लिए माननीय उच्च न्यायालय में भी इसे चुनौती दी जाएगी. संविधान प्रदत्त अल्पसंख्यक भाषा के संरक्षण के अधिकार के साथ यह समानता के मौलिक अधिकारों का भी हनन करती है.

झारखंड के 39 प्लस 2 विद्यालयों में एवं 2 विश्वविद्यालयों में मैथिली पढ़ाई जाती है और यह मैथिली बिहार और झारखंड राज्य की मूल भाषा है. शायद सरकार या भूल गयी है कि झारखंड राज्य के निर्माण में मैथिली भाषाओं का महत्वपूर्ण योगदान है. संसद में सर्वप्रथम झारखंड राज्य के गठन का प्रस्ताव मिथिला नरेश महाराज दरभंगा कामेश्वर सिंह ने रखा था. जमशेदपुर सरायकेला का क्षेत्र अनोखेलाल मिश्रा के नेतृत्व में किए गए आंदोलनों के कारण ही आज झारखंड अलग राज्य बना है और झारखंड राज्य के लिए पहला बलिदान भी सदानंद झा ने ही दिया था.

इसे भी पढ़ें- झारखंड में बंपर बहाली, 956 पदों पर होगी वैकेंसी, भोजपुरी, अंगिका और मगही को भी जगह

शहर की सामाजिक सांस्कृतिक संस्था ललित नारायण मिश्रा के महासचिव शकंर झा ने कहा है कि झारखंड सरकार द्वारा जारी जिलावार भाषा सूचित पूर्ण रूप से भेदभावपूर्ण एवं पूर्वाग्रह से ग्रसित है, हर स्तर पर इसका विरोध किया जाएगा. संविधान की अष्टम सूची में सम्मिलित एवं झारखंड के द्वितीय राजभाषा के रूप में मान्यता प्राप्त मैथिली भाषा की उपेक्षा राज्य के 20 लाख से अधिक मैथिली वासियों के लिए हतप्रभ करने वाला है, यह निर्णय गैर-कानूनी एवं और असंवैधानिक है.

इस मामले में अंतरराष्ट्रीय मिथिला परिषद के महासचिव पंकज झा ने कहा कि राज्य के सभी मैथिली भाषी संस्थाएं अपने अपने क्षेत्र के विधायकों को ज्ञापन देकर इसके लिए सार्थक प्रयास करने के लिए पहल करेगी. सभी दलों से सहयोग एवं समर्थन की भी अपेक्षा मैथिली भाषियों को है. उन्होंने कहा कि अगले माह रांची में राज्य स्तरीय बैठक आयोजित कर आंदोलन का रूपरेखा तय की जाएगी और मुख्यमंत्री से भी भूल-सुधार करने के लिए आग्रह किया जाएगा.

जमशेदपुरः झारखंड सरकार के द्वारा जिलावार भाषा सूची से मैथिली भाषा हटाए जाने का विरोध शुरू हो गया है. इससे झारखंड के मैथिली भाषियों में आक्रोश देखा जा रहा है. इसको लेकर जमशेदपुर के मैथिली भाषियों ने नाराजगी जताई है. इसके अलावा अलग-अलग सामाजिक संस्थाएं एक मंच पर आकर राज्य सरकार के फैसले का विरोध करने का निर्णय लिया है.

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मिथिला सांस्कृतिक परिषद के अध्यक्ष लक्ष्मण झा ने बताया है कि झारखंड सरकार के द्वारा इस प्रकार का फैसला लिया जाना काफी दुर्भाग्यपूर्ण है. यहां झारखंड में रह रहे 20 लाख से अधिक मैथिली भाषा भाषियों में इससे नाराजगी व्याप्त है. इसके लिए एक बार फिर झारखंड के रहने वाले लोग आंदोलन करेंगे. वहीं मिथिला सांस्कृतिक परिषद के महासचिव ललन चौधरी ने कहा कि सरकार का ये फैसला यहां रह रहे मैथिली भाषा भाषियों के साथ भेदभाव वाली नीति है.

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उन्होंने कहा कि इस मामले को लेकर पूरे झारखंड में मैथिली समुदाय के लोग एक मंच पर आकर विरोध करेंगे. अगर जरूरत पड़ी तो विधानसभा का भी घेराव करेंगे या फिर राजभवन घेराव करेंगे या मुख्यमंत्री आवास का घेराव भी करेंगे. उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि यह फैसला गैर-जिम्मेदाराना है. उन्होंने कहा कि न्याय के लिए माननीय उच्च न्यायालय में भी इसे चुनौती दी जाएगी. संविधान प्रदत्त अल्पसंख्यक भाषा के संरक्षण के अधिकार के साथ यह समानता के मौलिक अधिकारों का भी हनन करती है.

झारखंड के 39 प्लस 2 विद्यालयों में एवं 2 विश्वविद्यालयों में मैथिली पढ़ाई जाती है और यह मैथिली बिहार और झारखंड राज्य की मूल भाषा है. शायद सरकार या भूल गयी है कि झारखंड राज्य के निर्माण में मैथिली भाषाओं का महत्वपूर्ण योगदान है. संसद में सर्वप्रथम झारखंड राज्य के गठन का प्रस्ताव मिथिला नरेश महाराज दरभंगा कामेश्वर सिंह ने रखा था. जमशेदपुर सरायकेला का क्षेत्र अनोखेलाल मिश्रा के नेतृत्व में किए गए आंदोलनों के कारण ही आज झारखंड अलग राज्य बना है और झारखंड राज्य के लिए पहला बलिदान भी सदानंद झा ने ही दिया था.

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शहर की सामाजिक सांस्कृतिक संस्था ललित नारायण मिश्रा के महासचिव शकंर झा ने कहा है कि झारखंड सरकार द्वारा जारी जिलावार भाषा सूचित पूर्ण रूप से भेदभावपूर्ण एवं पूर्वाग्रह से ग्रसित है, हर स्तर पर इसका विरोध किया जाएगा. संविधान की अष्टम सूची में सम्मिलित एवं झारखंड के द्वितीय राजभाषा के रूप में मान्यता प्राप्त मैथिली भाषा की उपेक्षा राज्य के 20 लाख से अधिक मैथिली वासियों के लिए हतप्रभ करने वाला है, यह निर्णय गैर-कानूनी एवं और असंवैधानिक है.

इस मामले में अंतरराष्ट्रीय मिथिला परिषद के महासचिव पंकज झा ने कहा कि राज्य के सभी मैथिली भाषी संस्थाएं अपने अपने क्षेत्र के विधायकों को ज्ञापन देकर इसके लिए सार्थक प्रयास करने के लिए पहल करेगी. सभी दलों से सहयोग एवं समर्थन की भी अपेक्षा मैथिली भाषियों को है. उन्होंने कहा कि अगले माह रांची में राज्य स्तरीय बैठक आयोजित कर आंदोलन का रूपरेखा तय की जाएगी और मुख्यमंत्री से भी भूल-सुधार करने के लिए आग्रह किया जाएगा.

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