जमशेदपुर: देश के इतिहास में 1999 में भारत पाकिस्तान के बीच सीमा पर हुई जंग को आज भी देश नहीं भुला है. मई महीने से 25 जुलाई तक हुए इस अघोषित युद्ध में 26 जुलाई के दिन भारत की सेना ने दुश्मनों के मंसूबे पर पानी फेर दिया था और कारगिल की ऊंचाई पर तिरंगा लहराकर कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) मनाया था. उस दिन से हर साल 26 जुलाई को कारगिल दिवस मनाया (Kargil Vijay Diwas)जाने लगा. दरअसल, 30 हजार से ज्यादा सैनिक कारगिल युद्ध (Kargil War) में शामिल हुए थे. जिनमें 557 जवान शहीद हुए थे और कई जवानों ने अपने शरीर का अंग खोया था. आज कारगिल युद्ध के 22 साल बाद भी युद्ध में शामिल जवानों में वही जोश और देश के खातिर मर मिटने का जुनून देखने को मिलता है.
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कारगिल युद्ध की कहानी माणिक वरदा की जुबानी
जमशेदपुर के ग्रामीण पंचायत इलाके में रहने वाले माणिक वरदा बचपन से ही पुलिस वैन को देखकर पुलिस बनना चाहते थे और 1980 में सेना में भर्ती हुए और हवलदार के पद पर उन्होंने देश सेवा शुरू की. इस दौरान अलग-अलग पोस्ट पर उनका तबादला होता रहा. माणिक वरदा बताते हैं कि राजस्थान में पोस्टिंग के दौरान उन्हें कहा गया था कि कारगिल जाना है, अर्जेंट कॉल पर उनकी टीम कारगिल दराज पहुंची. 8 मई से युद्ध शुरू हो चुका था. बोफोर्स तोप और एयर बम के साथ गोलीबारी हो रही थी. कारगिल की ऊंची बर्फीली पहाड़ों में रात्रि गश्ती में 1 अफसर के साथ 13 जवान की टीम दुश्मन की टोह ले रही थी. इस दौरान अफसर समेत 10 जवान आगे बढ़ गए और अचानक हिमस्खलन होने से चार जवान दब गए.
हाथ गंवाने का गम नहीं: माणिक वरदा
माणिक आगे बताते हैं कि टीम की गिनती में जवान कम पाए जाने पर खोजबीन शुरू हुई और दूसरे दिन 18 घंटे बाद खोजी टीम ने उनके साथ दबे तीन जवानों को बाहर निकाला और अन्य सामान को बरामद किया. इस दौरान बर्फ में दबे चारों जवान बेहोश थे. अस्पताल में जाने के बाद जब होश आई तो पता चला उनका दोनों हाथ और पैर के पंजा पूरी तरह जख्मी हो गया है, जिसे काटकर हटा दिया गया है. उस वक्त मन में दुख हुआ और इस बात की चिंता थी कि युद्ध कैसे जीतेंगे पर हमें विश्वास था हमारी सेना जीत दर्ज करेगी और हम विजयी हुए. माणिक वरदा कहते हैं कि कारगिल विजय दिवस पर शहीद जवानों और युद्ध में शामिल जवानों को याद कर देश के लिए संकल्प लेने की जरूरत है.
माणिक वरदा भी जवानों को देते हैं श्रद्धांजलि
कारगिल युद्ध में अपने दोनों हाथ गंवा चुके माणिक वरदा आज भी विजय दिवस पर शहीद जवानों को श्रद्धांजलि देते हैं. जबकि माणिक वरदा की पत्नी सुराजमणी वरदा बताती हैं कि शादी के बाद दो छोटे बच्चों के साथ वो अकेली थी और माणिक कारगिल युद्ध में थे. जब घटना का पता चला तो दुख हुआ लेकिन गर्व हुआ कि वे देश के लिए काम आए हैं. भले ही पति ने हाथ गंवाई लेकिन विजय पताका लहराया है और आज उनके साथ है. इससे बड़ी खुशी और कुछ भी नहीं.
कई परेशानियों को झेल कारगिल युद्ध को जीता: गौतम लाल
जमशेदपुर राहरगोडा के रहने वाले गौतम लाल झांसी में सेना के वायरलेस आपरेटर के पद पर पोस्टेड थे. वो बताते हैं कि मई माह में अचानक शाम के वक्त मैसेज आया कि उन्हें और उनकी टीम को राजौरी रिपोर्ट करना है. वहां पहुंचने पर काफी परेशानी का सामना करना पड़ा. दुश्मन कारगिल की पहाड़ी की ऊंचाई पर था और वे पहाड़ की तलहटी में थे. पाकिस्तानी सेना देखे जाने पर वायरलेस से अविलंब अपने अफसर को जानकारी देने का काम करते थे. कभी-कभी वायरलेस काम करना बंद कर देता था, उन दिनों संचार के साधन सीमित थे. जो एक चुनौती थी, काफी परेशानी के साथ कई दिन भूखे रहना पड़ा लेकिन भारतीय सेना ने कारगिल युद्ध जीता. गौतम लाल बताते हैं कि कारगिल युद्ध के दौरान देशवासियों की प्रार्थना से हिम्मत मिला है.
कारगिल युद्ध में शामिल जवानों के परिवार करते हैं याद
1999 में संचार का साधन सीमित था. कारगिल युद्ध में शामिल जवानों का परिवार भी विजय दिवस को याद करता है. पूर्व सैनिक गौतम लाल की पत्नी रीना सिन्हा बताती हैं कि वो युद्ध के दौरान झांसी में थी. जब उनके पति को कारगिल जाने के लिए कहा गया था वो घबरा गई थी. लेकिन रोक ना सकी, उन्हें पूरा भरोसा था कि भारतीय सेना विजय हासिल करेगी. युद्ध के दौरान सिर्फ रेडियो से जानकारी मिलती थी. वही सहारा था, लेकिन जब भारतीय सेना ने विजय हासिल किया तो उस पल को बताना मुश्किल है.
देश के जवानों के जज्बा को सलाम
बहरहाल, कारगिल युद्ध में देश के जवानों के जज्बा और हौसला का परिणाम है कि हम विजयी रहे. 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मानते हैं और इस युद्ध में शामिल जवान आज भी इस पल को याद कर गर्व महसूस करते हैं. जबकि कई जवान शहीद हुए कई अपने शरीर के किसी अंग को खोया लेकिन उनमें जज्बा आज भी जिंदा है. कारगिल विजय दिवस पर ईटीवी भारत देश के जवानों को शत-शत नमन करता है.