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झारखंड की इस आदिम जाति की समस्याएं नहीं हो रही कम, नारकीय जीवन जीने को मजबूर - etv bharat jharkhand

मुसाबनी प्रखंड का एक ऐसा गांव है जहां सरकारी दावे खोखले साबित हो रहे हैं. गांव के सबर टोला में लोगों का रहना मुश्किल हो गया है. कहीं लोगों के घर की छत टूट कर नीचे गिर रही है तो कुछ घरों में दरवाजे तक नहीं है. सालों से लोग इसी हालत में गुजर-बसर करने को मजबूर हैं. प्रशासन के लोग आते हैं सर्वे करते हैं और चले जाते हैं. इसके बावजूद कोई कार्रवाई नहीं की जाती.

सबर जाति का टूटा घर
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Published : Jul 13, 2019, 3:31 PM IST

घाटशिला/जमशेदपुर: झारखंड में आदिम जाति सबर विलुप्ति के कगार पर है इन्हें बचाने के लिए सरकार कई तरह के कार्यक्रम चला रही है. बावजूद इसके मुसाबनी प्रखंड के ऊपरबाधा गांव के सबर टोला में सबर लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. उनके घरों की हालत इतनी खराब है कि वहां रहना मुश्किल है. कभी घर की छत टूट कर गिर जाती है तो किसी के घर में दरवाजे तक नहीं हैं.

वीडियो में देखें पूरी खबर

सबर जाति आदिवासी जनजातियों में से एक है सरकार लगातार इन जनजातियों के लिए अनेक कल्याणकारी योजनाएं लाती है. दावा किया जाता है कि योजनाए सफल हो रही हैं. लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और बयां कर रही है. सबर टोला में न तो प्रधानमंत्री आवास है और न ही बिरसा आवास.

35-40 साल पहले बने इंदिरा आवास बेहद जर्जर हैं और अब टूटने की कगार पर हैं. बरसात के दिनों में लोगों का यहां रहना और मुश्किल हो जाता है. कई बार आवेदन देने के बाद भी प्रशासन की तरफ से इन्हें किसी तरह की कोई मदद नहीं मिली है.

घाटशिला/जमशेदपुर: झारखंड में आदिम जाति सबर विलुप्ति के कगार पर है इन्हें बचाने के लिए सरकार कई तरह के कार्यक्रम चला रही है. बावजूद इसके मुसाबनी प्रखंड के ऊपरबाधा गांव के सबर टोला में सबर लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. उनके घरों की हालत इतनी खराब है कि वहां रहना मुश्किल है. कभी घर की छत टूट कर गिर जाती है तो किसी के घर में दरवाजे तक नहीं हैं.

वीडियो में देखें पूरी खबर

सबर जाति आदिवासी जनजातियों में से एक है सरकार लगातार इन जनजातियों के लिए अनेक कल्याणकारी योजनाएं लाती है. दावा किया जाता है कि योजनाए सफल हो रही हैं. लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और बयां कर रही है. सबर टोला में न तो प्रधानमंत्री आवास है और न ही बिरसा आवास.

35-40 साल पहले बने इंदिरा आवास बेहद जर्जर हैं और अब टूटने की कगार पर हैं. बरसात के दिनों में लोगों का यहां रहना और मुश्किल हो जाता है. कई बार आवेदन देने के बाद भी प्रशासन की तरफ से इन्हें किसी तरह की कोई मदद नहीं मिली है.

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घाटशिला (पूर्वी सिंहभूम)

मुसाबनी प्रखंड के एक ऐसा गांव है जहां सरकारी दावे खोखले साबित हो रहे हैं
मुसाबनी प्रखंड के ऊपरबाधा गांव के सबर टोला में सबर लोगों का रहना मुश्किल हो गया है क्योंकि उनके घर के छत टूट कर नीचे गिर रहे हैं किसी के घर के भीतर से ही दिन में तारे नजर आते हैं और किसी के घर में ना तो दरवाजे हैं और ना ही छतBody:दरअसल सरकार इन विलुप्त होती सबर जाति के लिए अनेक कल्याणकारी योजनाएं लाती है और इसका पूर्ण लाभ देने का भी खोखले दावे करते हैं इस सबर टोला में पिछले कई साल से नाही इंदिरा आवास बना है ना प्रधानमंत्री आवास और ना ही विरसा आवास
पिछले कई वर्ष पहले जो सरकार ने इनके लिए घर बना कर दिया था वह अभी टूटने के कगार पर है बरसात में इन लोगों का जीना दुश्वार हो जाता है इन्होंने कई बार आवेदन प्रखंड कार्यालय में भी दिए मुखिया तक को इसकी सूचना दी गई लेकिन इन लोगों का दुख कोई नहीं दूर कर सका
पिछले साल ही एक सर्वे टीम इस गांव में आए और सर्वे करके चली गई वह फाइल साहब के अलमारी में ही दब कर रह गईConclusion:अभी बरसात आने को है लेकिन सर छुपाने के लिए छत नहीं इन सभी लोगों के पास, वह लोग कहते हैं कि बरसात के समय में हम पास वाले क्लब भवन में रात गुजारते हैं और उस क्लब भवन कभी स्थिति ठीक नहीं है इस गांव में लगभग 30 से 40 सबर परिवार निवास करते हैं
अब यह देखना है कि कब तक इन ब्लू होती सबर जाती को विश आवास मिल पाता है या नहीं या फिर इन लोगों को इन्हें टूटी-फूटी घर में ही रहने दिया जाए

बाईट
1.संदीप सबर
2.मालती सबर
3.नीरज सबर


रिपोर्ट
कनाई राम हेंब्रम
घाटशिला
9279289270
9304805270
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