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मजबूरी में खिलाड़ी बना मजदूर, राज्य के लिए फिर पदक जीतने की चाहत - एथलीट अर्जुन टुडू कर रहा मजदूरी का काम

कल तक रेसिंग ट्रैक पर सरपट भागने वाले पूर्वी सिंहभूम के नेशनल एथलीट अर्जुन की आज पहचान बदल गई है. आज अर्जुन एथलीट नहीं, ठेका-मजदूर के रूप में जाने जाते हैं. ट्रैक पर पसीना बहाने वाले आज दो वक्त की रोटी के लिए मेहनत-मजदूरी करते हैं.

athlete arjun tudu
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Published : Jul 20, 2020, 2:20 PM IST

जमशेदपुर: झारखंड में प्रतिभाओं की कमी नहीं है. आज भी कुछ ऐसे प्रतिभावान खिलाड़ी हैं जो राज्य का नाम रौशन कर सकते हैं. लेकिन उदासीनता और गुमनामी का शिकार ये खिलाड़ी आज मिट्टी में अपने भविष्य को तलाशने में लग गए हैं. कुछ ऐसी ही कहानी है पूर्वी सिंहभूम जिले के राष्ट्रीय एथलीट अर्जुन टुडू की.

देखें स्पेशल स्टोरी

जमशेदपुर लोकसभा क्षेत्र के पोटका विधानसभा के अंतर्गत नागाडीह गांव का रहने वाला 24 वर्षीय नेशनल एथलीट अर्जुन टुडू आज मजबूरी में मजदूरी कर रहे हैं. गांव में कच्चे रास्ते से होकर गुजरने के बाद एथलीट अर्जुन टुडू का घर है. बचपन में ही सिर से मां-बाप का साया उठ जाने के बाद अर्जुन को उसकी बुआ ने पाल-पोस कर बड़ा किया. 2010 में 14 साल की उम्र में अर्जुन ने ग्रामीण क्षेत्र में आयोजित खेलकूद प्रतियोगिता में भाग लेना शुरू किया और पहली जीत अपने गांव के मैदान में दर्ज की. इस दौरान अर्जुन टुडू ने मंजिल पाने के लिए एथेलेटिक्स की शुरूआत की.

कम उम्र में मिली कामयाबी, अब हुआ मजबूर

2011 में जिला और राज्यस्तरीय एथेलेटिक्स में गोल्ड मेडल हासिल किया. दर्जनों बार राज्य के सीनियर एथेलेटिक्स में अपनी पहचान बनाते हुए जूनियर नेशनल एथेलेटिक्स टीम में अपनी जगह बनाई. उसने फेडरेशन कप 2015 अंडर-20 में कांस्य पदक जीतने के बाद ईस्ट जोन एथेलेटिक्स चैंपियनशिप में दो बार कांस्य पदक जीता. बंगलुरू, हैदराबाद, श्रीकाकुलम, कोलकाता और भोपाल में 10 हजार मीटर के दौड़ में भी हिस्सा ले चुके हैं. अर्जुन 2015 में केरल में आयोजित 35वें राष्ट्रीय खेल में झारखंड का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. इस दौरान अर्जुन ने ओपन बोर्ड से इंटरमीडिएट की पढ़ाई भी पूरी की है. मेडल और कप से अर्जुन का एक कमरा भरा हुआ है. अर्जुन ने उन्हें बड़े सलीके से संजोकर रखा है. लेकिन इतनी कम उम्र में कामयाबी मिलने के बाद भी अर्जुन को कोई पूछनेवाला नहीं है. यही वजह है कि अर्जुन के हाथ में आज कुदाल है और वो ठेका मजदूरी का काम कर रहा है. काम के दौरान अर्जुन थकता है लेकिन पेट की भूख को बुझाने के लिए वो आराम नहीं करता, अभी भी वो अपने सपने को हकीकत में बदलते देखना चाहता है.

ये भी पढ़ें- जैविक खेती से जिंदगी संवार रहे रांची के किसान, डबल मुनाफा के साथ-साथ सेहत भी बरकरार

राज्य सरकार से नहीं मिली कोई मदद

एथलेटिक्स अर्जुन टुडू बताते हैं कि ईमानदारी के साथ वो खेल के मैदान में दौड़ता रहा. कई मेडल और कप मिला, कुछ पैसे भी मिले. जिससे घर की आर्थिक कमजोरी को दूर करने का प्रयास किया. इस उम्मीद में था कि सरकार उसे नौकरी देगी, उसे आगे बेहतर करने के लिए मौका देगी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. अर्जुन ने बताया कि 2012 में जूनियर नेशनल चैंपियनशिप में गोल्ड जीतने के बाद झारखंड सरकार वार्षिक सहायता राशि के लिए आवेदन दिया था. आज तक कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली. उनका कहना है कि क्षेत्र के जनप्रतिनिधि से भी कोई मदद नहीं मिली. उसे मलाल है कि झारखंड में खेल नीति में खिलाड़ियों की पूछ नहीं है. उसे काम की तलाश है लॉकडाउन में काम नहीं मिलने से उसे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. वे आत्मविश्वास के साथ कहते हैं कि मौका मिलने पर वो आज भी राज्य के लिए खेलना चाहते हैं.

परिजनों और साथियों को भी अब भी है उम्मीद

अर्जुन को पाल-पोस कर बड़ा करने वाली उसकी बुआ साकरो टुडू का कहना है उसका अर्जुन खूब दौड़ा. प्राइज भी मिला लेकिन काम नहीं मिलने से घर की हालत ठीक नहीं है.वहीं अर्जुन के गांव के ग्राम प्रधान माधो मार्डी ने बताया कि उसे अपने गांव के नौजवान अर्जुन पर गर्व है लेकिन उसे काम मिलना चाहिए. उसके साथी धरमू टुडू को अपने दोस्त अर्जुन की कामयाबी पर गर्व है लेकिन उसे इस बात का दुख है कि एथलीट का कोई सम्मान नहीं है वो चाहते हैं कि अर्जुन को राज्य की तरफ से खेलने का मौका और काम मिले.

जमशेदपुर: झारखंड में प्रतिभाओं की कमी नहीं है. आज भी कुछ ऐसे प्रतिभावान खिलाड़ी हैं जो राज्य का नाम रौशन कर सकते हैं. लेकिन उदासीनता और गुमनामी का शिकार ये खिलाड़ी आज मिट्टी में अपने भविष्य को तलाशने में लग गए हैं. कुछ ऐसी ही कहानी है पूर्वी सिंहभूम जिले के राष्ट्रीय एथलीट अर्जुन टुडू की.

देखें स्पेशल स्टोरी

जमशेदपुर लोकसभा क्षेत्र के पोटका विधानसभा के अंतर्गत नागाडीह गांव का रहने वाला 24 वर्षीय नेशनल एथलीट अर्जुन टुडू आज मजबूरी में मजदूरी कर रहे हैं. गांव में कच्चे रास्ते से होकर गुजरने के बाद एथलीट अर्जुन टुडू का घर है. बचपन में ही सिर से मां-बाप का साया उठ जाने के बाद अर्जुन को उसकी बुआ ने पाल-पोस कर बड़ा किया. 2010 में 14 साल की उम्र में अर्जुन ने ग्रामीण क्षेत्र में आयोजित खेलकूद प्रतियोगिता में भाग लेना शुरू किया और पहली जीत अपने गांव के मैदान में दर्ज की. इस दौरान अर्जुन टुडू ने मंजिल पाने के लिए एथेलेटिक्स की शुरूआत की.

कम उम्र में मिली कामयाबी, अब हुआ मजबूर

2011 में जिला और राज्यस्तरीय एथेलेटिक्स में गोल्ड मेडल हासिल किया. दर्जनों बार राज्य के सीनियर एथेलेटिक्स में अपनी पहचान बनाते हुए जूनियर नेशनल एथेलेटिक्स टीम में अपनी जगह बनाई. उसने फेडरेशन कप 2015 अंडर-20 में कांस्य पदक जीतने के बाद ईस्ट जोन एथेलेटिक्स चैंपियनशिप में दो बार कांस्य पदक जीता. बंगलुरू, हैदराबाद, श्रीकाकुलम, कोलकाता और भोपाल में 10 हजार मीटर के दौड़ में भी हिस्सा ले चुके हैं. अर्जुन 2015 में केरल में आयोजित 35वें राष्ट्रीय खेल में झारखंड का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. इस दौरान अर्जुन ने ओपन बोर्ड से इंटरमीडिएट की पढ़ाई भी पूरी की है. मेडल और कप से अर्जुन का एक कमरा भरा हुआ है. अर्जुन ने उन्हें बड़े सलीके से संजोकर रखा है. लेकिन इतनी कम उम्र में कामयाबी मिलने के बाद भी अर्जुन को कोई पूछनेवाला नहीं है. यही वजह है कि अर्जुन के हाथ में आज कुदाल है और वो ठेका मजदूरी का काम कर रहा है. काम के दौरान अर्जुन थकता है लेकिन पेट की भूख को बुझाने के लिए वो आराम नहीं करता, अभी भी वो अपने सपने को हकीकत में बदलते देखना चाहता है.

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राज्य सरकार से नहीं मिली कोई मदद

एथलेटिक्स अर्जुन टुडू बताते हैं कि ईमानदारी के साथ वो खेल के मैदान में दौड़ता रहा. कई मेडल और कप मिला, कुछ पैसे भी मिले. जिससे घर की आर्थिक कमजोरी को दूर करने का प्रयास किया. इस उम्मीद में था कि सरकार उसे नौकरी देगी, उसे आगे बेहतर करने के लिए मौका देगी लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. अर्जुन ने बताया कि 2012 में जूनियर नेशनल चैंपियनशिप में गोल्ड जीतने के बाद झारखंड सरकार वार्षिक सहायता राशि के लिए आवेदन दिया था. आज तक कोई आर्थिक सहायता नहीं मिली. उनका कहना है कि क्षेत्र के जनप्रतिनिधि से भी कोई मदद नहीं मिली. उसे मलाल है कि झारखंड में खेल नीति में खिलाड़ियों की पूछ नहीं है. उसे काम की तलाश है लॉकडाउन में काम नहीं मिलने से उसे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. वे आत्मविश्वास के साथ कहते हैं कि मौका मिलने पर वो आज भी राज्य के लिए खेलना चाहते हैं.

परिजनों और साथियों को भी अब भी है उम्मीद

अर्जुन को पाल-पोस कर बड़ा करने वाली उसकी बुआ साकरो टुडू का कहना है उसका अर्जुन खूब दौड़ा. प्राइज भी मिला लेकिन काम नहीं मिलने से घर की हालत ठीक नहीं है.वहीं अर्जुन के गांव के ग्राम प्रधान माधो मार्डी ने बताया कि उसे अपने गांव के नौजवान अर्जुन पर गर्व है लेकिन उसे काम मिलना चाहिए. उसके साथी धरमू टुडू को अपने दोस्त अर्जुन की कामयाबी पर गर्व है लेकिन उसे इस बात का दुख है कि एथलीट का कोई सम्मान नहीं है वो चाहते हैं कि अर्जुन को राज्य की तरफ से खेलने का मौका और काम मिले.

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