हजारीबाग: कभी-कभी छोटा सा प्रयास भी रंग लाता है और उसकी ख्याति दूर-दराज तक पहुंचती है. टाटीझरिया प्रखंड के शिक्षक महादेव महतो ने पेड़ पौधों की रक्षा को लेकर रक्षाबंधन कार्यक्रम की शुरुआत की थी. 1995 में शुरू हुआ यह अभियान आज पूरे देश भर में देखने को मिल रहा है. कहा भी जाता है कि इनसे ही प्रेरणा लेकर अन्य राज्यों में भी इस तरह की वृक्ष बचाने कि शुरुआत हुई. अब आलम ऐसा है कि यहां छात्र पहुंचते हैं और वृक्षा बंधन करते हैं इसके साथ ही अपने गांव या फिर शहर में वृक्षों को कैसे बचाएं उसकी मुहिम की शुरुआत भी करते हैं. ऐसे में दूध मटिया जंगल प्रेरणा का स्रोत बनता जा रहा है.
महादेव महतो एक ऐसा नाम जो पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में काम करने के लिए झारखंड-बिहार समेत अन्य प्रदेश में जाना जाता है. महादेव महतो ने 1995 को टाटीझरिया के दूध मटिया जंगल में पेड़ों को बचाने के लिए लाल डोर बंधन की शुरुआत की थी. उस जंगल में जंगल माफियाओं की हुकूमत चलती थी. कई पेड़ काट दिए जा रहे थे, ऐसे में महादेव महतो ने सोचा कि क्यों न पेड़ पौधे को संरक्षित किया जाए और वनों को भी बचाया जाए. इसे देखते हुए उन्होंने रक्षाबंधन कार्यक्रम की शुरुआत की. दूध मटिया से शुरू हुआ अभियान कई राज्य में अपनाया गया है. कोई ना कोई छात्र, समाजसेवी इस जंगल में हमेशा वृक्षों को रक्षाबंधन बांधते दिख जाते हैं. यहां विनोबा भावे विश्वविद्यालय के छात्र भी पहुंचे और पेड़ों को रक्षाबंधन बांधा.
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दूध मटिया जंगल संरक्षित जंगलों में एक है. जहां पहले कुछ पेड़ थे लेकिन आज यहां लाखों पेड़ लगाए गए हैं और उन्हें संरक्षित भी किया गया है. रक्षाबंधन करने का एकमात्र उद्देश्य वृक्षों का रक्षा करना है. अगर कोई भी व्यक्ति इस जंगल में पेड़ को क्षति पहुंचाता है तो उसके खिलाफ पर्यावरण संरक्षण समिति कार्रवाई भी करती है. महादेव महतो फिलहाल अस्वस्थ चल रहे हैं इस कारण वह हमेशा घर पर ही रहते हैं. लेकिन यह संयोग की बात है कि जब छात्र वहां पहुंचे तो महादेव महतो भी मौजूद थे. ऐसे में उन्होंने ईटीवी भारत के साथ बात भी किया और पर्यावरण बचाने की मुहिम को फिर से दोहराया.