हजारीबाग: झारखंड के हजारीबाग जिले को अपने गौरवशाली अतीत पर गुमान है. उन्हीं में से एक पदमा किला भी है. ये रामगढ़ के राजा का किला था, लेकिन अब देखभाल के अभाव में अपनी पहचान खोता जा रहा है.
पदमा किला नहीं रही पहले जैसी रौनक
पदमा किला हजारीबाग शहर से महज 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. राजा राम नारायण सिंह के वंशजों का ऐतिहासिक किला. जिसे देखने लोग दूर दूर से आते हैं. आज रजवाड़े में न तो पहले जैसी रौनक रही, न ही पहले जैसी ठाट. बाकी है तो सिर्फ यहां से जुड़ी यादें. रजवाड़े की ठाट की धुंधली तस्वीर आज भी यहां देखरेख में लगे चौकीदार को याद है. अब किला में सन्नाटा है इसके अवशेष के अस्तित्व पर भी खतरा मंडरा रहा है.
1366 में रखी गई थी नींव
वर्तमान समय में इस वंशज के युवराज सौरव नारायण सिंह जो कभी-कभार इस मिलकियत को देखने आते हैं. कभी यहां इम्पोर्टेड गाड़ियों की कतार होती थी और हाथी दरवाजे पर आगंतुक का सवागत करते थे. रामगढ़ राज की नींव राजा रामगढ़ कामाख्या नारायण सिंह के पूर्वज बाघदेव और सिंह देव नाम के सगे भाइयों ने 1366 में रखी थी. बाद में रामगढ़ राज के लोग बड़कागांव, इचाक होते हुए पदमा में आकर बस गए.
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जनता के काफी नजदीक थे राजपरिवार
राज परिवार के बारे में कहा जाता था ये जनता के काफी नजदीक थे. इस कारण राजतंत्र के बाद भी प्रजातंत्र में भी इस परिवार को जनता ने जनप्रतिनिधि बनाया और सदन तक भेजा. कामाख्या नारायण सिंह से रामगढ़ राज परिवार का राजनीतिक जीवन शुरू होता है. वे बिहार विधानसभा में चार बार विधायक रहे. दो बार बगोदर और दो बार हजारीबाग सदर का उन्होंने प्रतिनिधित्व किया. इससे पहले 1947 में वे हजारीबाग जिला परिषद के पहले निर्वाचित अध्यक्ष रहे और लगातार 12 वर्षों तक इस पद पर बने रहे.
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हजारीबाग संसदीय क्षेत्र का उन्होंने चार बार 1962, 1967, 1977 और 1980 में प्रतिनिधित्व किया. इसी परिवार की विजया राजे प्रथम राज्यसभा की सदस्य रहीं. इसी परिवार की पूर्वज राजमाता शशांक मंजरी देवी ने बिहार विधानसभा में दो बार जरीडीह और डूमरी का प्रतिनिधित्व किया. इसके अलावा भी इस राज परिवार के कई लोग ने प्रजातंत्र में हिस्सा लिया.
पदमा किला का इतिहास
- राजा शासन
- बाघदेव सिंह 1403 तक
- करेत सिंह 1449 तक
- राम सिंह 1537 तक
- माधव सिंह 1554 तक
- जुगत सिंह 1604 तक