हजारीबागः जिला का चौपारण प्रखंड एक विशेष मिठाई के नाम से जाना जाता है. चौपारण का खीर मोहन की पहचान देश विदेश तक है. आलम यह है कि भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी ने भी यहां का मिठाई चखा था. अपने साथ जो भी स्वतंत्र सेनानी थे, उन्हें भी मिठाई खिलाया था. 1932 से यह दुकान लोगों को मिठास की अनुभूति करवा रहा है.
इसे भी पढ़ें- आंखों में आंसू, जुबान में मिठास, अनोखे रसगुल्ले की अनोखी तासीर
चौपारण का खीर मोहन मिठाई की पहचान देश विदेश में है, जो भी चौपारण से गुजरता है तो खीर मोहन जरूर चखता है. चाहे वह दिल्ली जाए, बनारस, गया या फिर चौपारण से किसी और शहर तो अपने सगे संबंधी के लिए यहां का मिठाई जरूर ले जाता है. आलम यह है कि हर दिन यहां हजारों हजार गाड़ियां रूकती भी है.
प्रारंभिक दौर में 1932 में यहां एकमात्र दुकान हुआ करता था जो खीर मोहन बेचा करता था. प्रतिष्ठान के मालिक बताते हैं कि उनके पिता, दादा यहां मिठाई बेचा करते थे. जिसे विशेष तरीके से बनाया जाता है. भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जब चौपारण से गुजरे थे तो उन्होंने मिठाई यहां खाई थी. साथ ही साथ अपने साथ चल रहे स्वतंत्रता सेनानियों को भी खीर मोहन खिलाया था.
उस वक्त भारतीय इस मिठाई को कम खाया करते थे. क्योंकि भारतीयों के पास पैसा नहीं हुआ करता था. इस कारण अंग्रेज ही अधिक मात्रा में मिठाई खाया करते थे. धीरे-धीरे समय बदलता चला गया और भारतीयों के बीच में यह मिठाई खूब प्रसिद्ध हो गया. यही नहीं यहां की मिठाई अब विदेशों तक पहुंच रहा है, जिससे यहां की खीर मोहन को बड़ी प्रसिद्धी मिली है.
इसे भी पढ़ें- रसगुल्ला के बाद अब खाइए 'इम्यून बूस्टर' चॉकलेट, रहिए कोरोना से दूर
इस दुकान के संचालक बताते हैं कि कोरोना कल के बाद दुकानों की संख्या में भारी इजाफा हुआ. चौपारण चौक पर ही लगभग 250 दुकान खीर मोहन के खुल गए हैं. जो व्यक्ति बाहर काम करने के लिए गया और वापस चौपारण आया तो फिर वह चौपारण से वापस नहीं लौटा. बल्कि यहीं दुकान खोलकर अपना व्यापार शुरु किया. उनका यह भी कहना है कि यहां कोई भी दुकान क्यों ना हो लेकिन उसके सामने खीर मोहन का फोटो जरूर देखने को मिलेगा. यह ही नहीं पान गुमटी भी है खीर मोहन के नाम से ही शुरु होता है. ऐसे में आप समझ सकते हैं की खीर मोहन यहां की धड़कन है.