हजारीबाग: जिले के चुरचू प्रखंड में चूडियों की खनक के सामने नक्सलियों की धमक मंद पड़ गई है. कभी जिस इलाके में गोलियों की गड़गड़ाहट से लोग कांप जाते थे अब उसी इलाके की महिलाएं ऊंची उड़ान भरने को तैयार है. लाह से बनने वाली चूड़ियों की खनक ने इस इलाके की तस्वीर बदल दी है.
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हजारीबाग में लाह की खेती
हजारीबाग लाह की खेती के लिए पूरे देश में मशहूर है. लेकिन जंगली क्षेत्र में नक्सलियों के खौफ से यह उद्योग धंधा जिले में नहीं पनपा. लेकिन अब तस्वीर बदल गई है. यहां की महिलाएं आत्मनिर्भर होने के लिए लाह से जुड़े व्यापार कर रही हैं. यहां की बनी चूड़ियों को कई महानगरों में बेचा जा रहा है. इस उद्योग से जुड़ी महिलाएं बताती है कि हमारा क्षेत्र पहाड़ी और दुर्गम वाला है. जहां सुख सुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं है. लेकिन हम लोगों को सिनी ट्रस्ट टाटा एवं सपोर्ट के माध्यम से रोजगार के लिए जोड़ा गया. पहले हम लोगों को ट्रेनिंग दी गई. फिर हम लोगों ने दूसरी महिलाओं को ट्रेंड किया गया. महिलाओं ने बताया कि वे सिर्फ लाह की खेती नहीं करते बल्कि लाह को रिफाइन करते है और फिर उसकी चुड़ी बनाकर बाजारों में उपलब्ध करा रहे हैं.
महानगरों में खूब बिक रही है लाह की चूड़ी
हजारीबाग में बनी चूड़ियों की महानगरों में काफी डिमांड है. कहा जाए तो जयपुर की चूड़ियों को हजारीबाग की चूड़ियां मात दे रही हैं. महिलाओं को प्रशिक्षण देने वाले प्रशिक्षक भी कहते हैं कि हजारीबाग में जब लाह की खेती होती है तो यहां चूड़ी भी बननी चाहिए. ऐसे में हम लोगों ने महिलाओं को ट्रेनिंग दिया. अब बहुत ही सुंदर और आकर्षक चुड़ियां यहां कि महिलाएं बना रही हैं.
आर्थिक रूप से सबल हो रही है महिलाएं
सिनी ट्रस्ट टाटा एवं सपोर्ट के पदाधिकारी भी बताते हैं कि हम लोगों ने पहले 56 महिलाओं को चूड़ी बनाने की ट्रेनिंग दिया है. इनमें से आज कई महिलाएं चूड़ी बनाकर आत्मनिर्भर हो रही हैं. इनमें से कई महिलाएं 5 हजार से 6 हजार घर बैठे कमा रही हैं. महत्वपूर्ण बात यह है कि हजारीबाग की चूड़ी अब विभिन्न मेलों में बेचा जा रहा है. जिससे महिलाएं आर्थिक रूप से सबल हो रही हैं. कहा जाए तो चूड़ी की खनक ने सुदूरवर्ती आदिवासी महिलाओं की चेहरे में चमक ला दिया है. लाह जो पहले हजारीबाग से बाहर बेचा जाता था. अब यहां की महिलाएं इसी लाह से चुडियां बना कर अपना जीवन यापन कर रही हैं.