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ऊंची उड़ानः हजारीबाग की 'आकांक्षा' बनीं भूमिगत खदान में काम करने वाली देश की पहली महिला माइनिंग इंजीनियर

महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं. जमीन से लेकर आसमान तक अपना परचम लहरा रही हैं. हजारीबाग की आकांक्षा ने एकबार फिर साबित कर दिया है कि महिलाएं किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं हैं. वो भूमिगत खदान में काम करने वाली देश की पहली महिला माइनिंग इंजीनियर हैं.

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ऊंची उड़ानः हजारीबाग की 'आकांक्षा' बनीं भूमिगत कोयला खदान में काम करने वाली देश की पहली महिला माइनिंग इंजीनियर
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Published : Sep 2, 2021, 8:34 AM IST

Updated : Sep 2, 2021, 9:31 AM IST

हजारीबागः बड़कागांव की धरती रत्नगर्भा के रूप में पूरे सूबे में जानी जाती है. इस रतनगर्भा में आज एक और रत्न जुटा है जिसका नाम है 'आकांक्षा'. अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह महारत्न कम्पनी कोल इंडिया लिमिटेड में दूसरी महिला खनन इंजीनियर और भूमिगत कोयला खदान में काम करने वाली पहली महिला हैं.

ये भी पढ़ेंः NIT आदित्यपुर के 57 छात्रों को मिला 30 लाख से अधिक का पैकेज, विदेशी कंपनी ने गुंजन कुमार को दिया 35 लाख का ऑफर

हजारीबाग के बड़कागांव की रहने वाली आकांक्षा कुमारी ने आज इतिहास लिख दिया है. वो सेंट्रल कोलफील्ड लिमिटेड की उत्तरी कर्णपुरा क्षेत्र के चूरी में भूमिगत खदान में काम करने वाली देश की पहली महिला इंजीनियर बनी है. नारी शक्ति ने आज यह बता दिया कि वह सिर्फ घर की बागडोर नहीं संभाल सकती है, बल्कि राफेल उड़ाने से लेकर ओलंपिक में पदक जीतने से लेकर भूमिगत कोयला भी निकाल सकती है. आकांक्षा सीसीएल के 4 दशक के इतिहास में पहली बार महिला माइनिंग इंजीनियर के रूप में योगदान देने वाली कर्मी बनी है. जिसने मंगलवार को नॉर्थ कर्णपुरा क्षेत्र के चूरी भूमिगत खदान में ड्यूटी ज्वाइन की है. जिसने आज भ्रांति तोड़ दी है कि पुरुष ही सिर्फ माइनिंग में अपनी सेवा दे सकते हैं.

देखिए पूरी खबर
अब बड़कागांव में उनके परिवार में खुशी का ठिकाना नहीं है. परिवार वाले एक दूसरे को शुभकामना दे रहे हैं और आकांक्षा के बारे में बता भी रहे हैं. घर वाले बताते हैं कि वह शुरू से ही पढ़ने में काफी जुझारू थी. उसे कोयला से बेहद ही लगाव था. क्योंकि घर के अगल-बगल कोयला का खदान था. वह कोयला हमेशा कहा करती थी कि मैं 1 दिन कोयला जमीन के अंदर से निकाल लूंगी. उस वक्त उनके परिवार वाले यह समझ नहीं पाए और आज उस छात्रा ने इतिहास रच दिया. उनके पिता भी आकांक्षा के बारे में कहते हैं कि वह एक होनहार और जुझारू लड़की है. मां कहती हैं कि मुझे अपनी बेटी पर गर्व है. वहीं चाचा-चाची, घर के बूढ़े दादा सभी आकांक्षा के बारे में बताते हैं कि वह जो भी कहती थी उसे करती थी. आज उसी का परिणाम है कि वह आज उस मुकाम पर है जहां उसने इतिहास रचा है.
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आकांक्षा के परिजन
आकांक्षा ने अपनी स्‍कूली पढ़ाई नवोदय विद्यालय से की है. बचपन से ही उसने अपने आसपास कोयला खनन की गतिविधियों को करीब से देखा है. इसके चलते खनन के प्रति उनकी रुचि शुरू से ही रही है. यही कारण है कि उन्होंने इंजीनियरिंग में माइनिंग शाखा का चुनाव किया. उन्होंने 2018 में बीआईटी (सिंदरी) धनबाद से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की. कोल इंडिया में अपना योगदान देने से पहले उन्‍होंने तीन वर्ष तक हिन्‍दुस्‍तान जिंक लिमिटेड की राजस्‍थान स्थित बल्‍लारिया खदान में काम किया. उनके पिता अशोक कुमार बड़कागांव के एक स्कूल में शिक्षक हैं और मां कुमारी मालती गृहणी हैं.

हजारीबागः बड़कागांव की धरती रत्नगर्भा के रूप में पूरे सूबे में जानी जाती है. इस रतनगर्भा में आज एक और रत्न जुटा है जिसका नाम है 'आकांक्षा'. अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह महारत्न कम्पनी कोल इंडिया लिमिटेड में दूसरी महिला खनन इंजीनियर और भूमिगत कोयला खदान में काम करने वाली पहली महिला हैं.

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हजारीबाग के बड़कागांव की रहने वाली आकांक्षा कुमारी ने आज इतिहास लिख दिया है. वो सेंट्रल कोलफील्ड लिमिटेड की उत्तरी कर्णपुरा क्षेत्र के चूरी में भूमिगत खदान में काम करने वाली देश की पहली महिला इंजीनियर बनी है. नारी शक्ति ने आज यह बता दिया कि वह सिर्फ घर की बागडोर नहीं संभाल सकती है, बल्कि राफेल उड़ाने से लेकर ओलंपिक में पदक जीतने से लेकर भूमिगत कोयला भी निकाल सकती है. आकांक्षा सीसीएल के 4 दशक के इतिहास में पहली बार महिला माइनिंग इंजीनियर के रूप में योगदान देने वाली कर्मी बनी है. जिसने मंगलवार को नॉर्थ कर्णपुरा क्षेत्र के चूरी भूमिगत खदान में ड्यूटी ज्वाइन की है. जिसने आज भ्रांति तोड़ दी है कि पुरुष ही सिर्फ माइनिंग में अपनी सेवा दे सकते हैं.

देखिए पूरी खबर
अब बड़कागांव में उनके परिवार में खुशी का ठिकाना नहीं है. परिवार वाले एक दूसरे को शुभकामना दे रहे हैं और आकांक्षा के बारे में बता भी रहे हैं. घर वाले बताते हैं कि वह शुरू से ही पढ़ने में काफी जुझारू थी. उसे कोयला से बेहद ही लगाव था. क्योंकि घर के अगल-बगल कोयला का खदान था. वह कोयला हमेशा कहा करती थी कि मैं 1 दिन कोयला जमीन के अंदर से निकाल लूंगी. उस वक्त उनके परिवार वाले यह समझ नहीं पाए और आज उस छात्रा ने इतिहास रच दिया. उनके पिता भी आकांक्षा के बारे में कहते हैं कि वह एक होनहार और जुझारू लड़की है. मां कहती हैं कि मुझे अपनी बेटी पर गर्व है. वहीं चाचा-चाची, घर के बूढ़े दादा सभी आकांक्षा के बारे में बताते हैं कि वह जो भी कहती थी उसे करती थी. आज उसी का परिणाम है कि वह आज उस मुकाम पर है जहां उसने इतिहास रचा है.
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आकांक्षा के परिजन
आकांक्षा ने अपनी स्‍कूली पढ़ाई नवोदय विद्यालय से की है. बचपन से ही उसने अपने आसपास कोयला खनन की गतिविधियों को करीब से देखा है. इसके चलते खनन के प्रति उनकी रुचि शुरू से ही रही है. यही कारण है कि उन्होंने इंजीनियरिंग में माइनिंग शाखा का चुनाव किया. उन्होंने 2018 में बीआईटी (सिंदरी) धनबाद से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की. कोल इंडिया में अपना योगदान देने से पहले उन्‍होंने तीन वर्ष तक हिन्‍दुस्‍तान जिंक लिमिटेड की राजस्‍थान स्थित बल्‍लारिया खदान में काम किया. उनके पिता अशोक कुमार बड़कागांव के एक स्कूल में शिक्षक हैं और मां कुमारी मालती गृहणी हैं.
Last Updated : Sep 2, 2021, 9:31 AM IST
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