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जलकुंभी से बनेगा खादः कृषि वैज्ञानिक की नयी खोज से खेतों में आएगी हरियाली, दूर होगा प्रदूषण

हजारीबाग में कृषि वैज्ञानिक ने जलकुंभी से खाद बनाने का तरीका खोजा है. जो खेत की हरियाली और फसल बढ़ाने में मददगार साबित होगा और जलकुंभी से होने वाले प्रदूषण पर भी लगाम लगेगी. क्या कुछ खास है इस नयी खोज में, जानिए ईटीवी भारत की स्पेशल रिपोर्ट से.

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जलकुंभी से बनेगा खाद
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Published : Nov 20, 2021, 4:58 PM IST

Updated : Nov 20, 2021, 7:14 PM IST

हजारीबागः जलकुंभी एक बड़ी समस्या के रूप में पूरे देशभर में जाना जाता है. जिस जिला में भी झील या डैम है वहां जलकुंभी की समस्या उत्पन्न हो जाती है. ऐसे तो जलकुंभी का उपयोग की बात पहले कभी नहीं आई थी. लेकिन अब एक शोध कर जलकुंभी से खाद बनाने का तरीका खोजा गया है, जो किसानों के लिए लाभदायक साबित हो रहा है.

इसे भी पढ़ें- पाकुड़ के प्रो. मुखर्जी की खोज ने जलकुंभी को अभिशाप से बनाया वरदान, लेकिन सरकार नहीं उठा सकी लाभ

पानी में जलकुंभी से पानी के इस्तेमाल में परेशानी होती है. अगर जलकुंभी को पानी से निकाल भी दिया जाए तो जानवर भी इसे नहीं खाते हैं. जहां जलकुंभी को भी फेंका जाता है वहां दुर्गंध के साथ-साथ मच्छर बहुत हो जाते हैं. ऐसे में जलकुंभी प्रदूषण का बड़ा कारण भी बनता है. जलकुंभी जल स्रोत में ही है तो वह भी उस तालाब या डैम के लिए ठीक नहीं है. लेकिन अब आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हजारीबाग कृषि विज्ञान केंद्र (Hazaribagh Krishi Vigyan Kendra) होलीक्रॉस के कृषि वैज्ञानिकों (Agricultural Scientists of Holy Cross) ने इस जलकुंभी का उपयोग कैसे किया जाए इसे खोज निकाला है. अब जलकुंभी खेत की हरियाली और फसल को बढ़ाने में मददगार साबित होने जा रही है. कैसे देखते ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट (ETV Bharat special report) के जरिए.

देखें स्पेशल रिपोर्ट
हजारीबाग कृषि विज्ञान केंद्र होलीक्रस के कृषि वैज्ञानिक डॉ. प्रशांत (Agricultural Scientist Dr. Prashant) ने जलकुंभी से खाद बनाने का तरीका खोज निकाला है. प्रयोग करने के दौरान यह पाया गया है कि खेती के लिए जलकुंभी से बना खाद बेहद ही लाभदायक है. कृषि वैज्ञानिक का कहना है कि जलकुंभी के खाद में पोषक तत्व की भरमार रहती है. जिसमें माइक्रो न्यूट्रेंस नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाशियम पाया जाता है. लगभग 2.5% नाइट्रोजन, 1% फास्फोरस और 5.3% पोटाशियम जलकुंभी के बने खाद में पाए जाते हैं, जो फसल के लिए बेहद ही महत्वपूर्ण है.
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जलकुंभी से खाद तैयार करता किसान

उनका कहना है कि जलकुंभी से खाद दो तरह से बनाया जा सकता है. एक जलकुंभी को लाल केंचुआ के साथ मिक्स कर दिया जाता है और वह 60 से 90 दिनों के अंदर खाद बन जाता है. वहीं दूसरा तरीका गोबर और जलकुंभी को मिलाकर खाद बनाने से और भी अधिक लाभदायक खेती के लिए हो सकता है. कृषि वैज्ञानिक ने हजारीबाग झील से निकला जलकुंभी से खाद भी बना लिया है और उसका टेस्ट भी किया गया है. जिसमें खाद शत-प्रतिशत लाभदायक बताया जा रहा है. होलीक्रॉस में ही इसे तैयार भी किया जा रहा है, खाद को व्यापारिक दृष्टिकोण से बेचा जाएगा. जिस तरह से वैज्ञानिक ने जलकुंभी से खाद बनाने का तरीका निकाला है या भविष्य में रोजगार की भी संभावनाएं बना रहा है.

इसे भी पढ़ें- असम : आपदा में अवसर, महिलाओं ने बनाए जलकुंभी से शिल्प


जलकुंभी प्रदूषण का सबसे बड़ा कारक है. अगर जल स्रोत से बाहर निकाल दिया जाए तो बाहर भी जलकुंभी प्रदूषण फैलाता है मतलब ये दोनों दृष्टिकोण से खतरनाक है. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि जलकुंभी मछुआरों के लिए बड़ी मुसीबत है. जलकुंभी होने से मछली नहीं पकड़ा जा सकता है. जलकुंभी के अलावा कृषि वैज्ञानिक ने ये भी सुझाया कि हरियाणा और पंजाब में धान की फसल की कटाई के बाद जलाई जाने वाली पराली से भी खाद बनाया जा सकता है. जिससे इसे ना तो जलाने की दरकार होगी और ना ही राजधानी दिल्ली में स्मॉग की समस्या होगी.

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पानी से निकाला गया जलकुंभी

हजारीबागः जलकुंभी एक बड़ी समस्या के रूप में पूरे देशभर में जाना जाता है. जिस जिला में भी झील या डैम है वहां जलकुंभी की समस्या उत्पन्न हो जाती है. ऐसे तो जलकुंभी का उपयोग की बात पहले कभी नहीं आई थी. लेकिन अब एक शोध कर जलकुंभी से खाद बनाने का तरीका खोजा गया है, जो किसानों के लिए लाभदायक साबित हो रहा है.

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पानी में जलकुंभी से पानी के इस्तेमाल में परेशानी होती है. अगर जलकुंभी को पानी से निकाल भी दिया जाए तो जानवर भी इसे नहीं खाते हैं. जहां जलकुंभी को भी फेंका जाता है वहां दुर्गंध के साथ-साथ मच्छर बहुत हो जाते हैं. ऐसे में जलकुंभी प्रदूषण का बड़ा कारण भी बनता है. जलकुंभी जल स्रोत में ही है तो वह भी उस तालाब या डैम के लिए ठीक नहीं है. लेकिन अब आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हजारीबाग कृषि विज्ञान केंद्र (Hazaribagh Krishi Vigyan Kendra) होलीक्रॉस के कृषि वैज्ञानिकों (Agricultural Scientists of Holy Cross) ने इस जलकुंभी का उपयोग कैसे किया जाए इसे खोज निकाला है. अब जलकुंभी खेत की हरियाली और फसल को बढ़ाने में मददगार साबित होने जा रही है. कैसे देखते ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट (ETV Bharat special report) के जरिए.

देखें स्पेशल रिपोर्ट
हजारीबाग कृषि विज्ञान केंद्र होलीक्रस के कृषि वैज्ञानिक डॉ. प्रशांत (Agricultural Scientist Dr. Prashant) ने जलकुंभी से खाद बनाने का तरीका खोज निकाला है. प्रयोग करने के दौरान यह पाया गया है कि खेती के लिए जलकुंभी से बना खाद बेहद ही लाभदायक है. कृषि वैज्ञानिक का कहना है कि जलकुंभी के खाद में पोषक तत्व की भरमार रहती है. जिसमें माइक्रो न्यूट्रेंस नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाशियम पाया जाता है. लगभग 2.5% नाइट्रोजन, 1% फास्फोरस और 5.3% पोटाशियम जलकुंभी के बने खाद में पाए जाते हैं, जो फसल के लिए बेहद ही महत्वपूर्ण है.
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जलकुंभी से खाद तैयार करता किसान

उनका कहना है कि जलकुंभी से खाद दो तरह से बनाया जा सकता है. एक जलकुंभी को लाल केंचुआ के साथ मिक्स कर दिया जाता है और वह 60 से 90 दिनों के अंदर खाद बन जाता है. वहीं दूसरा तरीका गोबर और जलकुंभी को मिलाकर खाद बनाने से और भी अधिक लाभदायक खेती के लिए हो सकता है. कृषि वैज्ञानिक ने हजारीबाग झील से निकला जलकुंभी से खाद भी बना लिया है और उसका टेस्ट भी किया गया है. जिसमें खाद शत-प्रतिशत लाभदायक बताया जा रहा है. होलीक्रॉस में ही इसे तैयार भी किया जा रहा है, खाद को व्यापारिक दृष्टिकोण से बेचा जाएगा. जिस तरह से वैज्ञानिक ने जलकुंभी से खाद बनाने का तरीका निकाला है या भविष्य में रोजगार की भी संभावनाएं बना रहा है.

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जलकुंभी प्रदूषण का सबसे बड़ा कारक है. अगर जल स्रोत से बाहर निकाल दिया जाए तो बाहर भी जलकुंभी प्रदूषण फैलाता है मतलब ये दोनों दृष्टिकोण से खतरनाक है. कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि जलकुंभी मछुआरों के लिए बड़ी मुसीबत है. जलकुंभी होने से मछली नहीं पकड़ा जा सकता है. जलकुंभी के अलावा कृषि वैज्ञानिक ने ये भी सुझाया कि हरियाणा और पंजाब में धान की फसल की कटाई के बाद जलाई जाने वाली पराली से भी खाद बनाया जा सकता है. जिससे इसे ना तो जलाने की दरकार होगी और ना ही राजधानी दिल्ली में स्मॉग की समस्या होगी.

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पानी से निकाला गया जलकुंभी
Last Updated : Nov 20, 2021, 7:14 PM IST
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