बगोदर, गिरिडीह: एकीकृत बिहार के समय 7 जुलाई 1998 को पुलिस वर्दीधारी नक्सलियों ने पंचायत में बैठे निहत्थे लोगों पर गोलियों की बौछार कर दी थी. इस नरसंहार ने राज्य की राजनीति में भूचाल ला दिया था. आज भी लोग इसे यादकर सिहर उठते हैं. घटना में तत्कालीन मुखिया मथुरा प्रसाद मंडल सहित 10 लोग मारे गए थे.
घटना के बाद तत्कालीन सीएम राबड़ी देवी सहित कई आला अधिकारी घटनास्थल पहुंचे थे. घटना में मारे गए लोगों के प्रति शोक व्यक्त करते हुए आश्रित परिवारों के एक-एक सदस्य को नौकरी, मुआवजा के तौर पर एक-एक लाख नगद और इंदिरा आवास देने की घोषणा की गई थी. घोषणा के मुताबिक इंदिरा आवास और मुआवजा राशि तो आश्रितों को मिल गई, मगर घटना के 22 साल पूरे हो गए हैं और किसी को नौकरी नहीं मिली है, हालांकि नौकरी की आस अब भी आश्रित परिवारों ने नहीं छोड़ी है. उन्हें आज भी नौकरी मिलने की उम्मीद है.
10 लोगों की हुई थी हत्या
इस घटना में अटका के तत्कालीन मुखिया मथुरा प्रसाद मंडल, बिहारी महतो, भोपाली महतो, जगन्नाथ महतो, सरजू महतो, दशरथ महतो, सीताराम महतो, रघुनाथ प्रसाद, मिलन प्रसाद और तुलसी महतो की मौत हो गई थी. बताया जा रहा है कि इलाके में उस समय नक्सलियों का उदय हुआ था.
घटना में मारे गए तत्कालीन मुखिया मथुरा प्रसाद मंडल के पुत्र सह भाजपा नेता दीपू मंडल ने बताया कि तत्कालीन सीएम ने घटना में मारे गए लोगों के आश्रित परिवार के एक-एक सदस्य को सदस्य को इंदिरा आवास, एक लाख मुआवजा राशि और एक-एक सदस्य को सरकारी नौकरी दिए जाने की घोषणा की गई थी, लेकिन अब तक किसी को सरकारी नौकरी नहीं मिल पाई है. इससे लोगों में मायूसी है.
ये भी पढ़ें- वर्चस्व की लड़ाई में मारा गया माओवादी एरिया कमांडर, पुलिस ने बरामद किया शव
विधानसभा में भी उठाया जा चुका है मामला
7 जुलाई 1998 की नक्सली घटना में मारे गए लोगों के आश्रितों को सीएम की घोषणा के बाद भी नौकरी न मिलने का मामला झारखंड विधानसभा में कई बार उठाया जा चुका है. 2005 में जब विनोद कुमार सिंह बगोदर के विधायक बने तब उनके द्वारा यह मामला विधान सभा में उठाया गया था.
इसके बाद 2014 के चुनाव में नागेंद्र महतो भाजपा से विधायक निर्वाचित हुए. उस समय झारखंड में भाजपा की सरकार भी थी, लेकिन अब तक इस मामले में सरकारी स्तर पर कोई पहल नहीं शुरू हुई है. बताया जाता है नरसंहार की घटना के बाद अलग राज्य झारखंड का गठन होने से इसकी फाइलें हीं गुम हो गईं.